यह विडंबना है कि चित्रगुप्त भगवान को यमराज का मुंशी बता दिया जाता है। खुद कायस्थ भाई भी बिना जाने-समझे ऐसी ही बात कहते हैं। जबकि यह पूर्णतः गलत है।
कृपया निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करें--
## प्रत्येक वर्ष चित्रगुप्त पूजा में राजा सौदास की कहानी पढ़ते हैं। एक बार फिर उस कथा को ध्यानपूर्वक पढ़ें। श्लोक संख्या 20 एवं 21 पर ध्यान दें।
## ब्रह्मा जी की दस हज़ार दस सौ वर्ष की तपस्या के बाद उनके शरीर से चित्रगुप्त जी प्रकट हुए।
## ब्रह्मा जी ने उनसे कहा-
*मच्छरीरात्समुद्भूतस्मात्कायस्थसंज्ञकः।*
*चित्रगुप्तेति नाम्ना तु ख्यातं भुवि भविष्यति।।20।।*
*धर्माधर्म-विवेकार्थं धर्मराजपुरे शुभे।*
*भविष्यन्ति हि भो वत्स! निवासः सुविनिश्चितम्।।21।।*
अर्थात्
## ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त जी से कहा कि मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए तुम्हारी संज्ञा *कायस्थ* है और पृथ्वी पर *चित्रगुप्त* नाम विख्यात होगा।।20।।
## हे वत्स! धर्म और अधर्म के विवेकपूर्वक विचार के लिए धर्मराजपुरी में तुम्हारा निवास सुनिश्चित हो।।21।।
## *धर्मराजपुरी* यानि न्याय का स्थान।
## *धर्माधर्म-विवेकार्थं* का अर्थ है, धर्म तथा अधर्म का विवेकपूर्वक विचार यानि न्याय करना।
## इन श्लोकों से स्वतः स्पष्ट है कि चित्रगुप्त जी का कार्य न्याय करना है।
## कुछ अन्य उद्धरणों में भी कहा गया है कि ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त जी से कहा-धर्मराजपुरी में वास करो, तीनों लोकों के प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखो और धर्माधर्म यानि धर्म व अधर्म का विचार करो।
## भ्रमवश हमसब सिर्फ लेखाजोखा रखने तक की बात को पकड़ कर चित्रगुप्त जी को मुंशी, लिपिक बता देते हैं।
## सच तो यह है कि ब्रह्मा जी ने *न्याय करने का कार्य* ही तो चित्रगुप्त जी को सौंपा है।
## चित्रगुप्त जी सभी प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं, ताकि न्याय कार्य में सहूलियत हो।
## वह *विश्व न्यायाधीश* हैं, न कि मुंशी या लिपिक, क्योंकि उन्ही की इच्छा से कोई भी प्राणी स्वर्ग का पुरस्कार या नरक का दंड प्राप्त करता है।
## भीष्म पितामह को *इच्छामृत्यु का वरदान* चित्रगुप्त जी ने ही दिया था।
## राजा सौदास को भी चित्रगुप्त जी की इच्छा के कारण ही स्वर्गलोक प्राप्त हुआ।
*अब आप सब तय करें की आप मुंशी की संतान हैं या विश्व न्यायाधीश के।*
-कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि विश्व न्यायाधीश को मुंशी या लिपिक कहने वालों की आँखें खुल जाएं।
श्री चित्रगुप्ताय नमः
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