काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सुन भ्राता ।।
राम ,लखन सीताजी का श्रंगवेरपुर में जमीन पर रात्रि विश्राम🐦तीनलोक के नाथ का जमीन पर सोना अदभुद
सिय रघुबीर कि कानन जोगू ।
करम प्रधान सत्य कह लोगू ।।🚩
✍️यह चौपाई अयोध्या कांड मे राम बनगमन काल की है। जब भगवान राम अपनी पिता की आज्ञानुसार बन गमन को भैय्या लक्ष्मण और माता सीता चलने पर निषाद राज के यहां रात्री विश्राम को रुके। कहां चक्रवर्ती सम्राट के यहां पैदा हुए। कहा आज फूस की झोपड़ी और पत्तो के बिछावन मे लेटे है। बाहर भैय्या लक्ष्मण और निषादराज दोनो कुटी के बाहर बैठे है।
निषाद राज जी राम जी को इस तरह देख कर दुख प्रकट करते हुए लखन जी से प्रश्न किया कि लखन जी यह सब भोग क्यों
तब लखन जी कते है हे निषाद राज कोई भी किसी भी अन्य किसी के सुख दुख का हेतु नही होता है। आगे कह रहे है जीव के स्वयं के कर्म ही सुख और दुख का हेतु है। यह हमारे हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण विधान है। इसलिए जीव को कर्मो को सजग हो कर कर्म करने चाहिए। शास्त्र विरूद्ध। निसिद्ध कर्म नही करने चाहिए। गीता मे भी भगवान श्रीकृष्ण ने लिखा है
योगःकर्मसु कौशलः।
किंतु कर्म तभी तक फलदायक है जब तक कर्मो के साथ अहंता ममता जुड़ी हुई है। किंतु साधना करते करते जैसै जैसे साधक की साधना मे परिपक्वता आती है वैसे वैसे अहंता और कर्ताभाव विगलित होने लगता है। उसके अनुभव मे आने लगता है कि गुणा गुषणेषु वर्ततन्ते
वैसे तो भगवान कर्म और कर्म फल से सदैव मुक्त ही है। कितु भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम है। ऋषियों के श्राप को लोकमर्यादा की रक्षा हेतु लीला कर रहे है।
इसलिये जब तक ज्ञानोदय हो कर चित्त पूर्णतः शुद्ध ना हो जाय तब तक कर्मो को सावधानी पूर्वक करते रहे।
जय सच्चिदानंद
🐦जय हो प्रभु राम की🐦जय हो राजाराम की🐦
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