आप सिखों से एक बहुत अच्छी बात सीख सकते हैं। मान लीजिए एक ऐसे गांव जो दस हजार की जनसंख्या वाला है मगर उसमे सिर्फ 10 सिख परिवार रहते हैं
फिर भी गुरुद्वारा बनाने की कोशिश करेंगे।
शुरू कर देंगे।
कोई जमीन दान कर देगा !
कोई पैसा दान कर देगा !!
हर परिवार खुले हाथ से चंदा देगा गुरुद्वारे के निर्माण के लिए।
फिर भी अगर धन की कमी आ जाये तो साथ लगते गांवों या अन्य गांवों/शहरों के सिखों को पता लगते ही भारी चंदा एकत्रित कर देंगे।
गुरद्वारे का निर्माण रुकने नही दिया जाएगा।
पूरा हो गया....
फिर उस गुरद्वारे के संचालन के लिए
वहां दिल खोल के फिर चढ़ावा आयेगा नियमित रूप से।
बड़े गुरद्वारों में गुरद्वारे के भवन में ही लंगर बना के खिलाया जाता है कुछ में तो 24 घण्टे चलता है
लेकिन गांवों में शायद हर गुरद्वारे में लंगर हर वक़्त नही बनता।
लेकिन आप रात के 12 बजे जाकर भोजन मांग ले उसी गुरद्वारे में।
वहां का पाठी फोन करेगा गांव में और किसी सिख की बेटी रात को भोजन बनाएगी आपके लिए !!
आपको भूखा न जाने दिया जाएगा वहां से !!!!
क्या वो बेटी आपकी नौकर है ??
सैलरी देते हो उसे ??
आजकल कलियुग में खुद के रिस्तेदारों की थोड़ी सी आवभगत में जान निकल जाती है
और यहाँ कोई बेटी आप अंजान व्यक्ति के लिए भोजन बना रही है
क्यों ??
सिर्फ इसीलिए न की उसकी आस्था पर कोई आंच न आये !!!
कितनी कड़ी मेहनत करते हैं न ये सिख अपने गुरुद्वारे को बनाने और उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए ??
अपनी आस्था की इज्जत बनाये रखने के लिए ??
●क्या किसी सिख को गुरद्वारे से व्यक्तिगत लाभ मिलता है??
●गांव के सिखों को क्या गुरद्वारे से तनख्वाह मिलती है ??
●क्या कोई सिख बीमार हो जाये तो दवा मिलती है उसे गुरद्वारे से ???
●कोई प्राकतिक आपदा आ जाये तो उसे गुरद्वारे से आर्थिक सहायता मिलती है ??
नहीं न ..... तो क्या किसी सिख को आपने गुरद्वारे को दोष देते देखा है इन सब लिए ???
■उसे पता है ये उसकी व्यक्तिगत समस्याएं है और उन्हें उसे खुद ही सुलझाना होगा ??
गुरद्वारा उसके लिए व्यक्तिगत लाभ का केंद्र नही बल्कि उसकी आस्था,उसके विश्वास,उसके अस्तित्व का केंद्र है!!
कोई स्वार्थ की भावना नही रखता वो अपने गुरद्वारे के लिए।।
क्या यही भाव हम अपने देश के लिए नही रख सकते ??
अपने देश को गुरुद्वारा नही मान सकते ???
हमे गैस पर सब्सिडी चाहिए,खाद पर चाहिए, खेती के उपकरणों पर चाहिए, कृषि उत्पादों पर चाहिए, सौर ऊर्जा के उपकरणों पर चाहिए,
हमे लाखों में सैलरी चाहिए, बुढापा पेंशन चाइये, किसान निधि चाहिए, विधवा पेंशन चाहिए, ट्रैन में न बराबर किराया चाहिए,
आपदा में मुहावजा चाहिए, मुफ्त में पक्के मकान चाहिए,
24 घण्टे बिजली सस्ते दाम पर चाहिए ??
देश मे लग्जरी सड़कों का जाल चाहिए,एयरपोर्ट, ट्रैन लग्ज़री चाइये etc.....
सब कुछ मुफ्त में चाहिए हमे देश के खजाने से!!!
लेकिन उसको भरने की बारी आये तो ??
टैक्स चुराने की 100% कोशिश करते हैं हम ??
पेट्रोल बढ़ते ही नंगे होकर सड़क पर तांडव करते हैं
सरकारों को दोष देते है चाहे किसी की भी सरकार हो ??
खजाने को खाना ही खाना चाहते हो ??
भरेगा नहीं तो खाओगे कैसे ??
गुरद्वारे में कोई चढ़ावा ही न चढ़ाए तो लंगर कैसे बनेगा ??
खैर मुफ्त खाने वालों को तो फर्क भी नहीं पड़ता कि लंगर की व्यवस्था कैसे हो रही ??
वो तो करने वाले ही करते हैं !!!
मुफ्त खाने वाला तो खाना खाता है और जाते जाते गाली ही देकर जाता है
"कि सरदार रोटी हाथ मे फेंक के मारता है रोटी के लिये हाथ जुड़वाता है"
ये 2 गज की जीभ चलाने में मेहनत ही कितनी लगती है
चलाते रहो।
रोते रहो।
पेट्रोल तो इतने का ही मिलेगा !!
लेना है तो लो !!
वरना बैलगाड़ी ले लो !!!
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