भाग - सात
एक प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान मार्क ट्वेन ने कहा है - " मानव के इतिहास में जो भी मूल्यवान एवं सृजनशील सामग्री है , उसका भंडार अकेले भारत में है । यह ऐसी भूमि है जिसके दर्शन के लिए सभी लालायित रहते हैं ।"
ऐसी पवित्र भारत - भूमि के कुरुक्षेत्र के रण - क्षेत्र में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को आज से 5157 वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण ने परमात्म-भाव में स्थित होकर जिस भगवत् - वाणी के माध्यम से भक्त अर्जुन को शाश्वत अध्यात्म - रस से आप्लावित किया था , वही भगवत् - गीता के नाम से जगत - विख्यात है ।
आइंस्टाइन ने कहा - " जब मैं भगवत् - गीता पढ़ता हूं एवं ईश्वर ने किस प्रकार विश्व ब्रह्मांड की सृष्टि की है , इस पर गंभीर मनन करता हूं , तब अन्य सभी कुछ मेरे लिए अप्रयोजनीय मालूम पड़ता है।"
When I read the Bhagavad-Gita and reflect about how God created this universe and everything else seems to me so superfluous.- Einstien
" दुनिया के पास जो भी है , उसमें सबसे अधिक गंभीर एवं महान ग्रंथ भगवत् - गीता है " - जर्मन विद्वान हंबोल्ट।
The Bhagavad-Gita is the deepest and the subliment production that the world possesses . -- German philosopher Humbolt
दार्शनिक ब्रुक्स ने कहा - " भावी विश्व धर्म का सूत्र ग्रंथ बनने के लिए भगवत गीता सर्वथा उपयुक्त है । "Bhagwat Geeta is pre-eminently a scripture of the future World religion . --philosopher F.T. Brooks
जब 16 जुलाई 1945 को अल्मोड़ा में परमाणु - शक्ति का परीक्षण किया गया ,तब मीलों दूर उसकी शक्ति एवं ऊर्जा को मापने के लिए यंत्र लगाए गए थे । निर्धारित समय पर जब महा- विस्फोट हुआ , तो सारे यंत्र टूट गए । उस से निकले प्रकाश से सभी की आंखें चौंधिया गई थी। ऐसी अवस्था में स्वत: स्फूर्त भाव से गीता के अध्येता एवं परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर के मुख से भगवत्- गीता के विश्वरूप दर्शन के समय के वर्णन का निम्नलिखित श्लोक - दिवि सूर्यसहस्त्रय भवद्युगपदुत्थिता। यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन:। - का अंग्रेजी रूपांतरण फूट निकला। उनके शब्द थे -- If the radiance of a thousand suns were burnt into the sky that would be like that Splendour of the mighty one .
भगवत्-गीता के प्रादुर्भाव के 5000 वर्ष से अधिक व्यतीत हो जाने के बाद भी यह काल -सीमा का अतिक्रमण कर अपनी सर्व व्यापक एवं सर्वकालिक प्रभाव को अक्षुण्ण बनाए रखने में सफल रही है । अतः मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि पूर्ण तत्वज्ञान को पूर्ण सत्ता (पूर्ण अवतार भगवान श्री कृष्ण ) से ही प्राप्त किया जाए तथा अपूर्णता से पूर्णता की ओर एक कदम बढ़ाया जाए ।
इसी दृष्टि से गहन - भाव से भरपूर तत्वज्ञान से ओतप्रोत भगवत्- गीता को सरल , सहज एवं सुबोध बनाने हेतु मेरी लेखनी चल रही है , जिससे सामान्य- जन में भी भगवत्- गीता के पठन-पाठन एवं अध्ययन - मनन के प्रति रुचि उत्पन्न हो सके ।
भक्ति भाव से बोलिए भगवत्- गीता की जय।
प्रेम से बोलिए भगवान श्री कृष्ण की जय।।
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