Feb 03, 12:26 am
आगरा। सफेद संगमरमर पर खिलता कमला, बेल पर लटके अंगूर और अशोक की लहराती पत्तियां। आंखें इस कला को देखें तो दिमाग से जुबान के लिए यह संदेश आता है कि वह पूछे कि आखिर किन हाथों ने इन्हें छुआ है। क्या इसके आगे वास्तुकला में स्थापत्य कला का कोई ताज है। जी हां, यहां बात हो रही है राधा स्वामी मत के स्वामी जी बाग की समाधि की। यह बेजोड़ रहने की ही आर्ट है कि इसके निर्माण को शुरू हुए 105 साल पूरे हो चुके हैं परंतु स्थापत्य कला का अद्भूत नमूना बन रही इस समाधि का निर्माण कार्य अभी आधा ही पूरा हो सका है। जल्द इस कार्य के होने की संभावना भी नजर नहीं आ रही।
राधा स्वामी मत के धर्मगुरू स्वामी जी महाराज की समाधि का निर्माण मत के तीसरे गुरू महाराज साहब के आदेश पर सन् 1904 में शुरू हुआ था, तबसे 1911-22 की अवधि को छोड़कर लगातार चल रहा है। राधास्वामी ट्रस्ट एवं केन्द्रीय प्रशासनिक समिति इस कार्य में जुटे हैं। समाधि की योजना एवं परिकल्पना मूल रूप से भारतीय है, किंतु वास्तुशिल्प भारत के परंपरागत शिल्प से भिन्न है। निर्माण किसी विशेष शैली के स्थान पर मिलीजुली कला का ऐसा नमूना है, जो सहजता से किसी को भी आकर्षित करने में सक्षम है। दीवारों, खम्भों के सिरों और मेहराबों पर फूल पत्तियां इस प्रकार से गढ़ी गई हैं कि प्रथम दृष्टया तो असली ही जान पड़ती हैं। कमल, केला, पपीता, अशोक, अंगूर की बेल तथा अन्य फूल-पत्तियों को पत्थर पर तराशने का जो काम यहां देखने को मिलता है, वह प्रकृति के अनुकूल है और शिल्प कला का अनूठा एवं श्रेष्ठ उदहारण है।
इमारत की आधार शिला 52 कुओं पर रखी है, जिन्हें 40 से 45 फुट की गहराई तथा साढ़े पांच से दस फुट तक के व्यास में खोदकर ईटों, गिट्टी तथा चूने से भर दिया है। मुख्य भवन 110 फुट लम्बा और 55 फुट चौड़े वर्गाकार का चबूतरा है।
प्रथम तल पर मुख्य हाल 68 फुट का वर्गाकार है। इसके चारों ओर 15 फुट का बरामदा है। आगे चलकर इसी हाल में स्वामी जी महाराज की महापवित्र रज जो इस समय तहखाने में स्थित है, प्रतिष्ठित किये जाने की योजना है। इमारत में प्रयुक्त श्वेत तथा गुलाबी पत्थर मकराना की खानों से आया है। हरा पत्थर बड़ोदरा व पीला जैसलमेर की खानों का है। बहुरंगी झलक वाले पत्थर नौशेरा की खानों से मंगवाये हुए हैं। प्रारंभ में समाधि के निर्माण पर 50 लाख का व्यय आना अनुमानित था, किंतु अब तक इससे कई गुना धन व्यय किया जा चुका है। इसका एक मात्र स्त्रोत राधा स्वामी सत्संग, स्वामी बाग के सत्संगियों की भेंट है
राधा स्वामी मत के धर्मगुरू स्वामी जी महाराज की समाधि का निर्माण मत के तीसरे गुरू महाराज साहब के आदेश पर सन् 1904 में शुरू हुआ था, तबसे 1911-22 की अवधि को छोड़कर लगातार चल रहा है। राधास्वामी ट्रस्ट एवं केन्द्रीय प्रशासनिक समिति इस कार्य में जुटे हैं। समाधि की योजना एवं परिकल्पना मूल रूप से भारतीय है, किंतु वास्तुशिल्प भारत के परंपरागत शिल्प से भिन्न है। निर्माण किसी विशेष शैली के स्थान पर मिलीजुली कला का ऐसा नमूना है, जो सहजता से किसी को भी आकर्षित करने में सक्षम है। दीवारों, खम्भों के सिरों और मेहराबों पर फूल पत्तियां इस प्रकार से गढ़ी गई हैं कि प्रथम दृष्टया तो असली ही जान पड़ती हैं। कमल, केला, पपीता, अशोक, अंगूर की बेल तथा अन्य फूल-पत्तियों को पत्थर पर तराशने का जो काम यहां देखने को मिलता है, वह प्रकृति के अनुकूल है और शिल्प कला का अनूठा एवं श्रेष्ठ उदहारण है।
इमारत की आधार शिला 52 कुओं पर रखी है, जिन्हें 40 से 45 फुट की गहराई तथा साढ़े पांच से दस फुट तक के व्यास में खोदकर ईटों, गिट्टी तथा चूने से भर दिया है। मुख्य भवन 110 फुट लम्बा और 55 फुट चौड़े वर्गाकार का चबूतरा है।
प्रथम तल पर मुख्य हाल 68 फुट का वर्गाकार है। इसके चारों ओर 15 फुट का बरामदा है। आगे चलकर इसी हाल में स्वामी जी महाराज की महापवित्र रज जो इस समय तहखाने में स्थित है, प्रतिष्ठित किये जाने की योजना है। इमारत में प्रयुक्त श्वेत तथा गुलाबी पत्थर मकराना की खानों से आया है। हरा पत्थर बड़ोदरा व पीला जैसलमेर की खानों का है। बहुरंगी झलक वाले पत्थर नौशेरा की खानों से मंगवाये हुए हैं। प्रारंभ में समाधि के निर्माण पर 50 लाख का व्यय आना अनुमानित था, किंतु अब तक इससे कई गुना धन व्यय किया जा चुका है। इसका एक मात्र स्त्रोत राधा स्वामी सत्संग, स्वामी बाग के सत्संगियों की भेंट है
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