Tuesday, November 30, 2010

श्री शिव दयाल सिंह साहब



शिव दयाल सिंह

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श्री शिव दयाल सिंह साहब
Swami Ji Maharaj.jpg
वरिष्ठ पदासीन
क्षेत्र
उपाधियाँराधास्वामी मत के संस्थापक
काल1861 - 1878
उत्तराधिकारीहुज़ूर राय सालिगराम जी और बाबा जैमल सिंह जी [१]
वैयक्तिक
जन्म तिथिअगस्त 24, 1818
जन्म स्थानपन्नी गली,[ [आगरा]], उत्तर प्रदेश, भारत
Date of deathजून 15, 1878 (60 वर्ष)
मृत्यु स्थानपन्नी गली,[ [आगरा]], उत्तर प्रदेश, भारत
श्री शिव दयाल सिंह साहब (1861 - 1878) (परम पुरुश पुरन धनी हुजुर स्वामी जी महाराज) राधास्वामी मत की शिक्षाओं का प्रारंभ करने वाले पहले सन्त सतगुरु थे. उनका जन्म नाम सेठ शिव दयाल सिंह था. उनका जन्म 24 अगस्त, 1818 में आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत में जन्माष्टमी के दिन हुआ. पाँच वर्ष की आयु में उन्हें पाठशाला भेजा गया जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी और गुरमुखी सीखी. उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया. उनके माता-पिता हाथरस, भारत के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे. [२] [३][४]
छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ. उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं. शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए. वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई. उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फारसी अध्यापक की नौकरी कर ली. सांसारिक उपलब्धियाँ उन्हें आकर्षित नहीं करती थीं और उन्होंने वह बढ़िया नौकरी भी छोड़ दी. वे अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए. [३][५]
उन्होंने 5 वर्ष की आय से ही सुरत शब्द योग का साधन किया. 1861 में उन्होंने वसंत पंचमी (वसंत ऋतु का त्यौहार) के दिन सत्संग आम लोगो के लिये जारी किया.
स्वामी जी ने अपने दर्शन का नाम "सतनाम अनामी" रखा. इस आंदोलन को राधास्वामी के नाम से जाना गया. "राधा" का अर्थ "सुरत" और स्वामी का अर्थ "आदि शब्द या मालिक", इस प्रकार अर्थ हुआ "सुरत का आदि शब्द या मालिक में मिल जाना." स्वामी जी द्वारा सिखायी गई यौगिक पद्धति "सुरत शब्द योग" के तौर पर जानी जाती है.
स्वामी जी ने अध्यात्म और सच्चे 'नाम' का भेद वर्णित किया है.
उन्होंने 'सार-वचन' पुस्तक को दो भागों में लिखा जिनके नाम हैं: [६][७]
  • 'सार वचन वार्तिक' (सार वचन गद्य)
  • 'सार वचन छंद बंद' (सार वचन पद्य)
'सार वचन वार्तिक' में स्वामी जी महाराज के सत्संग हैं जो उन्होंने 1878 तक दिए. इनमें इस मत की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ हैं. 'सार वचन छंद बंद' में उनके पद्य की भावनात्मक पहुँच बहुत गहरी है जो उत्तर भारत की प्रमुख भाषाओं यथा खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा, राजस्थानी और पंजाबी आदि विभिन्न भाषाओं की पद्यात्मक अभिव्यक्तियों का सफल और मिलाजुला रूप है.
उनका निधन जून 15, 1878 को आगरा, भारत में हुआ. इनकी समाधि दयाल बाग, आगरा में बनाई गई है जो एक भव्य भवन के रूप में है.

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