शिव दयाल सिंह
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वरिष्ठ पदासीन | |
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क्षेत्र | |
उपाधियाँ | राधास्वामी मत के संस्थापक |
काल | 1861 - 1878 |
उत्तराधिकारी | हुज़ूर राय सालिगराम जी और बाबा जैमल सिंह जी [१] |
वैयक्तिक | |
जन्म तिथि | अगस्त 24, 1818 |
जन्म स्थान | पन्नी गली,[ [आगरा]], उत्तर प्रदेश, भारत |
Date of death | जून 15, 1878 (60 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | पन्नी गली,[ [आगरा]], उत्तर प्रदेश, भारत |
छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ. उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं. शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए. वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई. उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फारसी अध्यापक की नौकरी कर ली. सांसारिक उपलब्धियाँ उन्हें आकर्षित नहीं करती थीं और उन्होंने वह बढ़िया नौकरी भी छोड़ दी. वे अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए. [३][५]
उन्होंने 5 वर्ष की आय से ही सुरत शब्द योग का साधन किया. 1861 में उन्होंने वसंत पंचमी (वसंत ऋतु का त्यौहार) के दिन सत्संग आम लोगो के लिये जारी किया.
स्वामी जी ने अपने दर्शन का नाम "सतनाम अनामी" रखा. इस आंदोलन को राधास्वामी के नाम से जाना गया. "राधा" का अर्थ "सुरत" और स्वामी का अर्थ "आदि शब्द या मालिक", इस प्रकार अर्थ हुआ "सुरत का आदि शब्द या मालिक में मिल जाना." स्वामी जी द्वारा सिखायी गई यौगिक पद्धति "सुरत शब्द योग" के तौर पर जानी जाती है.
स्वामी जी ने अध्यात्म और सच्चे 'नाम' का भेद वर्णित किया है.
उन्होंने 'सार-वचन' पुस्तक को दो भागों में लिखा जिनके नाम हैं: [६][७]
- 'सार वचन वार्तिक' (सार वचन गद्य)
- 'सार वचन छंद बंद' (सार वचन पद्य)
उनका निधन जून 15, 1878 को आगरा, भारत में हुआ. इनकी समाधि दयाल बाग, आगरा में बनाई गई है जो एक भव्य भवन के रूप में है.
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