फूलों की खेती से महका जीवन
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समय लाइव, 27 अगस्त 2010हांसदा के जीवन में अचानक परिवर्तन आया और वे मिट्टी से सोना पैदा करने की लगन में आज किसानों के आदर्श बन गए। बी.ए. तक शिक्षित हांसदा को चार साल पूर्व कृषि में कोई रूचि नहीं थी। भूतपूर्व सैनिक के पुत्र होने के कारण एवं जमीन की बहुतायत से उन्हें रोजी रोटी की कोई समस्या नहीं थी।
लगभग चार वर्ष पूर्व वह आमा संस्था के सम्पर्क में आये। तब उन्हें कृषि एवं इससे संबंधित कार्यों के प्रति प्रेरणा मिली। सर्वप्रथम इन्हें प्रशिक्षण हेतु बिरसा कृषि विश्वविघालय, रांची के पशुपालन प्रभाग में एक सप्ताह के लिए भेजा गया और प्रशिक्षण के बाद हांसदा के जीवन में काफी बदलाव आया। तब उन्होंने एक यूनिट टी. एंड डी. प्रभेद का सुअरपालन कार्य प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे इनकी कृषि क्षेत्र में भी रूचि बढ़ती गई। तब दुमका-देवघर मुख्य मार्ग पर सिलान्दा और जामा के बीच रोड के किनारे उनकी लगभग ढाई से तीन एकड़ जमीन खाली पड़ी थी।
उन्होंने उस जमीन पर खेती का काम आरंभ कर दिया। आज वहां नींबू, पपीता, अमरूद और आम के लगभग 400 फलदार वृक्ष खड़े हैं। यही नहीं, हांसदा द्वारा बैंगन, टमाटर, भिंड्डी, कद्दू, करेला, खीरा, सूर्यमुखी, सरसों, मिर्च, हल्दी, अदरक आदि की खेती भी की जा रही है। आज उसी जगह पर इंटीग्रेटेड फार्मिंग का मॉडल तैयार कर वह एक साथ मछली बत्तख व मुर्गी पालन भी कर रहे हैं। हांसदा आज क्षेत्र के किसानों के प्रेरणास्रोत बन गए हैं। राह गुजरते प्राय: सभी लोग उनसे उनकी सफलता का राज पूछते रहते हैं।
हांसदा के सब्जी उपादन से होने वाली आमदनी को देखते हुए उनके अगल-बगल के किसानों ने भी अब सब्जी उगाना शुरू कर दिया है। हांसदा ग्रीन हाउस में सब्जी के उन्नत किस्म के बीज तैयार कर जामा एवं जरमुंडी प्रखंड के किसानों को उपलब्ध कराते हैं। इससे जहां किसानों को उन्नत किस्म का बीज सही समय पर मिलता है वहीं श्री हांसदा को बीज बेचने से अच्छी आमदनी हो जाती है।
हांसदा की उघानिक फसलों में सफलता को देखते हुए जामा एवं जरमुंडी प्रखंड के लगभग 250 एकड़ जमीन में विभिन्न योजनाओं से किसानों द्वारा फलदार पेड़ लगाये गए हैं। यही नहीं, वे पौधों के बीच में खाली जमीन पर सब्जी एवं फूलों की खेती कर रहे हैं। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा दिल्ली में आयोजित विपणन आधारित सेमिनार में झारखंड राज्य के प्रतिनिधि के रूप में सोनोत हांसदा ने भी भाग लिया।
दुमका की आमा संस्था के सहयोग से उन्होंने एक बीघा जमीन पर गेंदें के फूल लगाए हैं। गेंदे के फूलों की मांग वर्ष भर होती है और इसे देखते हुए वे अब फूलों की खेती को ज्यादा समय दे रहे हैं। हांसदा की सफलता और मेहनत से कृषकों को प्रेरित करने के लिए किसान विकास मेले का आयोजन भी किया जा चुका है।
फूलों की खेती से किसानों को एक नया रास्ता दिख रहा है। पहले यहां जो फूल बंगाल से आते थे, अब स्थानीय किसानों के द्वारा ही उसकी आपूर्ति की जा रही है। सोनोत जैसे कई किसान यदि इस तरह का उसाह दिखाते हैं तो सैकड़ों को किसानों को प्रेरणा मिलेगी जो उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में कारगर हो सकती है।
(लेख के संपादित अंश ‘सोपान’ से साभार)
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