सहजीवन के दो उदाहरण - प्रेमचंद से
राजकिशोर
प्रेमचंद को जितनी बार पढ़ा जाए, उतनी बार लगता है कि वे अपने समय से आगे थे। उन्होंने सिर्फ बात बनाने के लिए नहीं कहा था कि साहित्य राजनीति की मशाल है। वे इसमें यकीन भी रखते थे। यह दुख की बात है कि प्रेमचंद के प्रशंसक कुछ खास बातों के लिए ही उन्हें याद रखते हैं। यह प्रेमचंद जैसे महान लेखक के साथ अन्याय है। उनकी और भी ढेर सारी बातें विचारणीय हैं।
उदाहरण के लिए, प्रेमचंद विवाह संस्था के विरोधी थे। उनका विश्वास सहजीवन में था। स्त्री-पुरुष संबंधों के विशाल ताने-बाने का उन्होंने तरह-तरह से परीक्षण किया है। इसी परीक्षण के दौरान उन्होंने एक कहानी लिखी थी - मिस पद्मा। कहानी के अनुसार, मिस पद्मा एक सफल वकील थी। उसके पास अपार पैसा था। साहिर लुधियानवी की लाइनें है - तन्हा न कट सकेंगे जवानी के रास्ते, पेश आएगी किसी की जरूरत कभी-कभी। पद्मा को भी किसी की जरूरत पेश आई। प्रेमचंद लिखते हैं, 'यों उसके दर्जनों आशिक थे - कई वकील, कई प्रोफेसर, कई रईस। मगर सब-के-सब ऐयाश थे - बेफिक्र, केवल भौंरे की तरह रस ले कर उड़ जानेवाले। ऐसा एक भी न था, जिस पर वह विश्वास कर सकती।'
'उसके प्रेमियों में एक मि. प्रसाद था - बड़ा ही रूपवान और धुरंधर विद्वान। एक कालेज में प्रोफेसर था। वह भी मुक्त भोग के आदर्श का उपासक था और मिस पद्मा उस पर फिदा थी। चाहती थी उसे बांध कर रखे, संपूर्णत: अपना बना ले, लेकिन प्रसाद चंगुल में ही न आता था।' एक दिन वह चंगुल में आ गया। मिस पद्मा ने उससे अपने प्रेम का इजहार किया। प्रसाद ने भी अपना दिल खोल दिया। दोनों ने प्रतिज्ञा की कि वे एक-दूसरे से बंधेंगे और उनके बीच किसी तीसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं होगी। मिस पद्मा वकील थी। प्रसाद प्रोफेसर था। दोनों में से किसी ने भी विवाह करने पर जोर नहीं दिया। सहजीवन ही उनका आदर्श था। प्रसाद मिस पद्मा की कोठी में आ कर रहने लगा।
मिस पद्मा के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी। प्रसाद को खुली छूट थी। वह मौज-मस्ती के समन्दर में डूब गया। विलासिता के साथ रंगीनी भी आई। प्रसाद ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी। वह मिस पद्मा की उपेक्षा करने लगा। इधर, मिस पद्मा उसके प्रति एकनिष्ठ बनी रही। जब वह गर्भवती हो गई, तो वह प्रसाद के लिए और अवांछित हो गई। एक दिन जब प्रसाद जब आधी रात को घर लौटा, तो पद्मा ने उस पर बेवफाई का आरोप लगाया। प्रसाद घर छोड़ कर चले जाने की धमकी लगा।ल पद्मा झुक गई। प्रेमचंद लिखते हैं, प्रसाद ने पूरी विजय पाई।
इस विजय का नतीजा यह निकला कि जब मिस पद्मा प्रसव वेदना में थी, तब प्रसाद का कुछ अता-पता नहीं था। पांच दिनों के बाद प्रसव संबंधी बिल अदा करने के लिए जब पद्मा ने नौकर को बैंक भेजा, तब मालूम हुआ कि खाता खाली था। सारे रुपए निकाल कर प्रसाद विद्यालय की एक बालिका को ले कर इंग्लैंड की सैर करने चला गया था। सहजीवन का प्रयोग विफल हो गया। कहानी का अंतिम दृश्य यह है : 'एक महीना बीत गया था। पद्मा अपने बंगले के फाटक पर शिशु को गोद में लिए खड़ी थी। उसका क्रोध अब शोकमय निराशा बन चुका था। बालक पर कभी दया आती, कभी प्यार आता, कभी घृणा आती। उसने देखा, सड़क पर एक यूरोपियन लेडी अपने पति के साथ अपने बालक को बच्चों की गाड़ी में बिठा कर चली जा रही थी। उसने हसरत भरी निगाहों से खुशनसीब जोड़े को देखा और उसकी आंखें सजल हो गईं।'
इस कहानी में प्रेमचंद ने सहजीवन पर विवाह की विजय दिखाई है। लेकिन इससे सहजीवनवादियों को निराश नहीं होना चाहिए। इसके माध्यम से प्रेमचंद ने वस्तुत: यह स्पष्ट किया है कि सहजीवन किन स्थितियों में विफल होने को बाध्य है। विवाह की तरह सहजीवन भी एक नैतिक व्यवस्था है। जैसे विवाह के नियम तोड़ने पर वह सफल नहीं हो सकता, उसी तरह सहजीवन की शर्तों के टूटने पर वह भी बिखर जाता है। प्रेमचंद ने शुरू में ही इशारा कर दिया था कि यह रिश्ता क्यों गड़बड़ था। पद्मा और प्रसाद दोनों मुक्त भोग के उपासक थे। 'मुक्त भोग' से प्रेमचंद का आशय शायद फ्री सेक्स से था। सहजीवन शुरू करने के बाद पद्मा ने तो अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लिया, पर प्रसाद जल्द ही पहले की तरह आसमान में उड़ने लगा। इसके बाद सर्वनाश को कौन रोक सकता था?
'गोदान' प्रेमचंद की सबसे प्रौढ़ रचना है। इसमें भी प्रेमचंद ने सहजीवन का एक उदाहरण पेश किया है। यह जोड़ी मालती और मेहता की है। मालती डाक्टर है। मेहता प्रोफेसर है। दोनों का एक-दूसरे के प्रति अनुराग था। मेहता मालती के घर पर रहने लगा। दोनों के बीच प्रेम का बंधन और। मजबूत हुआ। अब उपासक उपास्य में लीन होना चाहता था। लेकिन मेहता ने जब विवाह का प्रस्ताव रखा, तो मालती ने एकदम से इनकार कर दिया। उसका गंभीर जवाब था -- 'नहीं मेहता, मैं महीनों से इस प्रश्न पर विचार कर रही हूं और अंत में मैंने यह तय किया है कि मित्र बन कर रहना स्त्री-पुरुष बन कर रहने से कहीं सुखकर है। ... अपनी छोटी-सी गृहस्थी बना कर अपनी आत्माओं को छोटे-से पिंजड़े में बंद करके, अपने सुख-दु:ख को अपने ही तक रख कर, क्या हम असीम के निकट पहुंच सकते हैं? वह तो हमारे मार्ग में बाधा ही डालेगा। ... जिस दिन मन में मोह आसक्त हुआ और हम बंधन में पड़े, उस क्षण हमारा मानवता का क्षेत्र सिकुड़ जाएगा, नई-नई जिम्मेदारियां आ जाएंगी और हमारी शक्ति उन्हीं को पूरा करने में लगेगी। तुम्हारे जैसे विचारवान, प्रतिभावान मनुष्य की आत्मा को मैं इस कारागार में बंदी नहीं करना चाहती।'
नतीजा? 'और दोनों एकांत हो कर प्रगाढ़ आलिंगन में बंध गए। दोनों की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।'
प्रेमचंद ने यह नहीं बताया कि भविष्य में क्या हुआ। हम अनुमान कर सकते हैं कि दोनों के बीच प्रेम का बंधन और मजबूत हुआ होगा तथा दोनों ने एक-दूसरे से बल पाते हुए और एक-दूसरे को बल प्रदान करते हुए आदर्श जीवन बिताया होगा। सहजीवन का यह आदर्श एक रूप है।- राजकिशोर्
(अलग रंग से इटालिक्स मे लिखी पंक्तियों से मै सहमत हूँ ,पर लेख की प्रस्थापना से नही। सो, अगली पोस्ट में प्रेमचन्द को ही लेकर मेरा दृष्टिकोण व्यक्त होगा- सुजाता)
Subscribe to: Post Comments (Atom)
12 comments: