यमुना तो फिर भी मैली
पांच दिन के सफाई अभियान में नदी से करीब 600 टन कचरा निकाला गया मगर यमुना जल को वाकई स्वच्छ बनाने के लिए बहुत कुछ करना जरूरी है
अगर यमुना नदी रो सकती तो जरूर रो पड़ती। लोगों ने उसके सीने पर जिस बेदर्दी से कूड़े और गंदगी का ढ़ेर लगा दिया है, उससे उसकी आत्मा कराह उठी है। इसके तटों पर इतनी तबाही मचाई गई है कि यह ऐतिहासिक नदी मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई है। अब दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने इस नदी को साफ करने का बीड़ा उठा लिया है- नदी में हुए भारी प्रदूषण को देखते हुए भले ही ये प्रयास पिछले प्रयासों की तरह नगण्य साबित हों।
ऐसा प्रयास पिछले साल जनवरी से जून के बीच किया गया था। छह पैनलों ने नदी के प्रदूषण की समीक्षा की थी, लेकिन कोई खास नतीजा नहीं निकला। लेकिन फिर से जोर-शोर से सफाई अभियान शुरू हुआ। हर रोज दो घंटे तक सफाई का काम जारी रहा। पांच दिन चला यह अभियान विश्व पर्यावरण दिवस-5 जून को पूरा हुआ। भविष्य में सफाई अभियान की निगरानी के लिए एक विशेष कार्यदल का गठन करने वाली मुख्यमंत्री दीक्षित कहती हैं ''ये प्रयास तो प्रतीकात्मक थे। अब हम पूरी समस्या का आकलन करेंगे तब युद्ध स्तर पर यमुना सफाई अभियान शुरू होगा।'' इस अभियान के तहत जिस भी स्थान को छुआ गया, परिणाम उत्साहवर्धक रहे। नदी का पानी गंदे काले रंग से धूसर होता गया। यह बदलाव दिल्ली की पानी समस्या के निदान के लिए कुछ उम्मीद बंधाता है। सफाई से निकले स्थानों की जमीन डीडीए (जो कि शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है) ने लेकर दिल्ली सरकार को सौंप दी। इसके अलावा विभिन्न स्थानों पर लगभग 20,000 पेड़ लगाए गए। इससे यह संकेत मिलता है कि भविष्य में इन्हें पिकनिक स्थल के तौर पर विकसित किया जा सकता है और इनका इस्तेमाल पानी के छोटे-मोटे खेलों के लिए भी किया जा सकता है।
दीक्षित मानती हैं, ''यदि हम तटों का विकास करें तो इससे व्यावसायिक लाभ भी उठाया जा सकता है।'' पांच दिन चले सफाई अभियान में लगभग 600 टन कचरा, प्लास्टिक की थैलियां और दूसरी गंदगी 200 ट्रकों में लादी गई। इसमें 11,000 नागरिकों (जिसमें 7,500 तो राज्य सरकार के ही कर्मचारी थे) ने भाग लिया। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री अशोक वालिया, जिन्हें एसएजी अध्यक्ष बनाया गया है, कहते हैं, ''यह अभियान दर्शाता है कि यमुना के सुधार की उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं।'' दिल्ली की पर्यावरण सचिव सिंधुश्री खुल्लर भी सहमत हैं, ''नदी को साफ किया जा सकता है और इसके भारी प्रदूषण स्तर से छुटकारा पाया जा सकता है।'' लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है।
इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं है। दीक्षित और वालिया के सामने वास्तव में एक भगीरथ कार्य है। नदी के तट पर लगभग 65,000 झुग्गी-झोंपड़ियां हैं। जिनमें 3-4 लाख लोग बसे हुए हैं और यह बसावट वजीराबाद बैराज से ही शुरू हो जाती है। इल लोगों के पुर्नवास के लिए लगभग 300 हेक्टेयर जमीन ढूढना खासा मुश्किल काम है, जबकि अब तक एक भी एकड़ जमीन नहीं ढूंढी गई है। ये झुग्गियां भी नदी को प्रदूषित कर रही हैं लेकिन उनमें से निकलने वाला अपरिशोधित कचरा उस कचरे के मुकाबले कुछ भी नहीं है, जो रोज यमुना में गिरता है।
सबसे बड़े नजफगढ़ नाले समेत 17 नाले दिल्ली के एक करोड़ से ज्यादा निवासियों और एक लाख औद्योगिक इकाईयों का लगभग 7.15 करोड़ गैलन गंदा पानी इस नदी में पहुंचता हैं। इस गंदे पानी का अधिकांश भाग परिशोधित नहीं हो पाता। नदी के प्रदूषण की निगरानी करने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर. सी. चतुर्वेदी कहते हैं, ''यमुना देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी है। किसी और नदी में इतने ज्यादा लोगों द्वारा इतनी अधिक मात्रा में गंदगी और विषैला कचरा नहीं फेंका जाता।''
नदी के जल के विपरीत कचरे का परिशोधन न होने की वजहें स्पष्ट हैं। दिल्ली में हर रोज 75 करोड़ गैलन पानी की खपत होती है। इसका लगभग 90 फीसदी (लगभग 67.5 करोड़ गैलन) पानी इस्तेमाल के बाद नालों में आ जाता है लेकिन इसमें से कुल 35 करोड़ गैलन गंदा पानी ही मौजूदा कचरा संशोधन संयंत्रों में परिषोधित हो पाता है। इन संयंत्रों की परिशोधन क्षमता प्रतिदिन 40.2 करोड़ गैलन कचरा ही परिशोधित करने की है। अपरिशोधित कचरे का खासा बड़ा हिस्सा- लगभग 5 करोड़ गैलन- अपरिशोधित औद्योगिक कचरा ही होता है।
नदी के लिए यही सर्वाधिक घातक है। लंदन में जब वहां की टेम्स नदी को स्वच्छ करने का अभियान शुरू किया गया तो टेम्स वाटर अथॉरिटी ने स्वच्छ जल का एक मानदंड रखा कि उस जल में समान मछली पैदा होनी चाहिए। यानी पानी एकदम स्वच्छ होना चाहिए। लेकिन दिल्ली में तो जल प्रदूषण बहुत अधिक है। यहां के लिए यह मानदंड लागू करना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। इसके लिए बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) यानी जैविक ऑक्सीजन मांग के स्तर को 30 बीओडी से घटाकर 3 बीओडी पर लाना होगा। तब यह सी वर्ग का पेयजल बन सकेगा। वर्षों की लापरवाही के चलते ही प्रदूषण इतने भयावह स्तर पर पहुंचा है।
पर्यावरण से जुड़े वकील एम. सी. मेहता ने 1985 में जो जनहित याचिका दायर की थी उस पर 1989 में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यमुना नदी को साफ करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद और भी निर्देश जारी किए गए और दिल्ली सरकार को गंदा जल परिशोधन के 15 अतिरिक्त संयंत्र और दिल्ली के 28 मान्यताप्राप्त ओद्यौगिक क्षेत्रों के लिए 16 संयुक्त कचरा संशोधन संयंत्र (सीईटीपी) स्थापित करने के निर्देश दिए गए। इन औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण रोकने के लिए न कोई संयंत्र था और न कोई अन्य व्यवस्था। 1997 तक सीईटीपी समेत पूरी व्यवस्था हो जानी चाहिए थी।
अब तक इस मामले में तो प्रगति हुई है उससे इस प्रदूषित नदी के उद्धार की कोई उम्मीद नहीं बंधती। 15 संशोधन संयंत्रों में से दर्जन भर का निर्माण हो चुका है, और सरकार का दावा है कि इनमें से पांच ने तो काम करना भी शुरू कर दिया है। लेकिन मेहता समेत कई लोग सरकार के इस दावे पर यकीन नहीं करते। जहां तक सीईटीपी को स्थापित करने का सवाल है तो खुद मुख्यमंत्री दीक्षित का भी मानना है कि अब तक एक भी संयंत्र तैयार नहीं हुआ है। लेकिन दिल्ली सरकार ने वादा किया है कि कुछ वर्षों में ये जरूर तैयार हो जाएंगे। इनके तैयार होने पर परिशोधन क्षमता 58 करोड़ गैलन प्रतिदिन हो जाएगी।
मगर, गौरतलब है कि तब तक पानी की मांग भी 85 करोड़ गैलन तक पहुंच जाएगी। यानी अपरिशोधित गंदे पानी का अनुपात उतना ही रहेगा। हताशा से भरे मेहता कहते हैं ''सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, कानून लागू करने की इच्छा किसी में नहीं नजर आती। ऐसी परियोजनाओं का लागू करने का पिछला रिकॉर्ड इतना निराशाजनक है कि मुझे तो यकीन ही नहीं आता कि यमुना कभी साफ भी हो पाएगी।
राज्य भाजपा भी मेहता की निराशा भरी भविष्यवाणी से सहमत है। उसे तो यमुना की सफाई का पूरा अभियान प्रचार का एक हथकंडा ही लगता है। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता जगदीश मुखी कहते हैं,''यह पूरी कवायद एक नाटक है, आंखों में धूल झोंकने की एक कोशिश। इस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के तीन आदेशों का उल्लंघन किया है। इससे पहले भी उसने सफाई अभियानों की घोषणा की थी लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।''
मुखी का यह भी कहना है कि 11 महीने पहले नदी को स्वच्छ करने के लिए समिति गठित की गई थी, लेकिन पहले दौर के विचार-विमर्श के लिए सदस्यों की बैठक अब तक नहीं हुई है। दिल्ली सरकार यदि यमुना- जिसे अब एक नाला माना जाने लगा है- के पुनरूद्धार के बारे में वाकई गंभीर है तो उसे अपने काम में तेजी लानी होगी। उसे परिशोधन संयंत्रों को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर तैयार करना होगा। उन स्थानों को, जहां मौजूदा अभियान शुरू हुआ, भी साफ रखना होगा। इससे यह भी साबित होगा कि अभियान महज दिखावा नहीं था। जल प्रवाह को भी सुधारना होगा। एसएजी को तट प्रबंधन में सुधार लाना होगा।
तट पर बसी झुग्गी-झोंपड़ियों को हटाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। और हर महीने जल स्वच्छ होने की प्रगति को जनता के सामने रखना होगा ताकि उसे यह यकीन हो सके कि वाकई इस दिशा में काम हो रहा है। जब तक यह नहीं होता तब तक यमुना नदी चुपचाप राजधानी का कूड़ा उठाती रहेगी, अपने सुधार के प्रति नाउम्मीद-सी!
- सायंतन चक्रवर्ती
अगर यमुना नदी रो सकती तो जरूर रो पड़ती। लोगों ने उसके सीने पर जिस बेदर्दी से कूड़े और गंदगी का ढ़ेर लगा दिया है, उससे उसकी आत्मा कराह उठी है। इसके तटों पर इतनी तबाही मचाई गई है कि यह ऐतिहासिक नदी मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई है। अब दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने इस नदी को साफ करने का बीड़ा उठा लिया है- नदी में हुए भारी प्रदूषण को देखते हुए भले ही ये प्रयास पिछले प्रयासों की तरह नगण्य साबित हों।
ऐसा प्रयास पिछले साल जनवरी से जून के बीच किया गया था। छह पैनलों ने नदी के प्रदूषण की समीक्षा की थी, लेकिन कोई खास नतीजा नहीं निकला। लेकिन फिर से जोर-शोर से सफाई अभियान शुरू हुआ। हर रोज दो घंटे तक सफाई का काम जारी रहा। पांच दिन चला यह अभियान विश्व पर्यावरण दिवस-5 जून को पूरा हुआ। भविष्य में सफाई अभियान की निगरानी के लिए एक विशेष कार्यदल का गठन करने वाली मुख्यमंत्री दीक्षित कहती हैं ''ये प्रयास तो प्रतीकात्मक थे। अब हम पूरी समस्या का आकलन करेंगे तब युद्ध स्तर पर यमुना सफाई अभियान शुरू होगा।'' इस अभियान के तहत जिस भी स्थान को छुआ गया, परिणाम उत्साहवर्धक रहे। नदी का पानी गंदे काले रंग से धूसर होता गया। यह बदलाव दिल्ली की पानी समस्या के निदान के लिए कुछ उम्मीद बंधाता है। सफाई से निकले स्थानों की जमीन डीडीए (जो कि शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है) ने लेकर दिल्ली सरकार को सौंप दी। इसके अलावा विभिन्न स्थानों पर लगभग 20,000 पेड़ लगाए गए। इससे यह संकेत मिलता है कि भविष्य में इन्हें पिकनिक स्थल के तौर पर विकसित किया जा सकता है और इनका इस्तेमाल पानी के छोटे-मोटे खेलों के लिए भी किया जा सकता है।
दीक्षित मानती हैं, ''यदि हम तटों का विकास करें तो इससे व्यावसायिक लाभ भी उठाया जा सकता है।'' पांच दिन चले सफाई अभियान में लगभग 600 टन कचरा, प्लास्टिक की थैलियां और दूसरी गंदगी 200 ट्रकों में लादी गई। इसमें 11,000 नागरिकों (जिसमें 7,500 तो राज्य सरकार के ही कर्मचारी थे) ने भाग लिया। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री अशोक वालिया, जिन्हें एसएजी अध्यक्ष बनाया गया है, कहते हैं, ''यह अभियान दर्शाता है कि यमुना के सुधार की उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं।'' दिल्ली की पर्यावरण सचिव सिंधुश्री खुल्लर भी सहमत हैं, ''नदी को साफ किया जा सकता है और इसके भारी प्रदूषण स्तर से छुटकारा पाया जा सकता है।'' लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है।
इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं है। दीक्षित और वालिया के सामने वास्तव में एक भगीरथ कार्य है। नदी के तट पर लगभग 65,000 झुग्गी-झोंपड़ियां हैं। जिनमें 3-4 लाख लोग बसे हुए हैं और यह बसावट वजीराबाद बैराज से ही शुरू हो जाती है। इल लोगों के पुर्नवास के लिए लगभग 300 हेक्टेयर जमीन ढूढना खासा मुश्किल काम है, जबकि अब तक एक भी एकड़ जमीन नहीं ढूंढी गई है। ये झुग्गियां भी नदी को प्रदूषित कर रही हैं लेकिन उनमें से निकलने वाला अपरिशोधित कचरा उस कचरे के मुकाबले कुछ भी नहीं है, जो रोज यमुना में गिरता है।
सबसे बड़े नजफगढ़ नाले समेत 17 नाले दिल्ली के एक करोड़ से ज्यादा निवासियों और एक लाख औद्योगिक इकाईयों का लगभग 7.15 करोड़ गैलन गंदा पानी इस नदी में पहुंचता हैं। इस गंदे पानी का अधिकांश भाग परिशोधित नहीं हो पाता। नदी के प्रदूषण की निगरानी करने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर. सी. चतुर्वेदी कहते हैं, ''यमुना देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी है। किसी और नदी में इतने ज्यादा लोगों द्वारा इतनी अधिक मात्रा में गंदगी और विषैला कचरा नहीं फेंका जाता।''
नदी के जल के विपरीत कचरे का परिशोधन न होने की वजहें स्पष्ट हैं। दिल्ली में हर रोज 75 करोड़ गैलन पानी की खपत होती है। इसका लगभग 90 फीसदी (लगभग 67.5 करोड़ गैलन) पानी इस्तेमाल के बाद नालों में आ जाता है लेकिन इसमें से कुल 35 करोड़ गैलन गंदा पानी ही मौजूदा कचरा संशोधन संयंत्रों में परिषोधित हो पाता है। इन संयंत्रों की परिशोधन क्षमता प्रतिदिन 40.2 करोड़ गैलन कचरा ही परिशोधित करने की है। अपरिशोधित कचरे का खासा बड़ा हिस्सा- लगभग 5 करोड़ गैलन- अपरिशोधित औद्योगिक कचरा ही होता है।
नदी के लिए यही सर्वाधिक घातक है। लंदन में जब वहां की टेम्स नदी को स्वच्छ करने का अभियान शुरू किया गया तो टेम्स वाटर अथॉरिटी ने स्वच्छ जल का एक मानदंड रखा कि उस जल में समान मछली पैदा होनी चाहिए। यानी पानी एकदम स्वच्छ होना चाहिए। लेकिन दिल्ली में तो जल प्रदूषण बहुत अधिक है। यहां के लिए यह मानदंड लागू करना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। इसके लिए बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) यानी जैविक ऑक्सीजन मांग के स्तर को 30 बीओडी से घटाकर 3 बीओडी पर लाना होगा। तब यह सी वर्ग का पेयजल बन सकेगा। वर्षों की लापरवाही के चलते ही प्रदूषण इतने भयावह स्तर पर पहुंचा है।
पर्यावरण से जुड़े वकील एम. सी. मेहता ने 1985 में जो जनहित याचिका दायर की थी उस पर 1989 में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यमुना नदी को साफ करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद और भी निर्देश जारी किए गए और दिल्ली सरकार को गंदा जल परिशोधन के 15 अतिरिक्त संयंत्र और दिल्ली के 28 मान्यताप्राप्त ओद्यौगिक क्षेत्रों के लिए 16 संयुक्त कचरा संशोधन संयंत्र (सीईटीपी) स्थापित करने के निर्देश दिए गए। इन औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण रोकने के लिए न कोई संयंत्र था और न कोई अन्य व्यवस्था। 1997 तक सीईटीपी समेत पूरी व्यवस्था हो जानी चाहिए थी।
अब तक इस मामले में तो प्रगति हुई है उससे इस प्रदूषित नदी के उद्धार की कोई उम्मीद नहीं बंधती। 15 संशोधन संयंत्रों में से दर्जन भर का निर्माण हो चुका है, और सरकार का दावा है कि इनमें से पांच ने तो काम करना भी शुरू कर दिया है। लेकिन मेहता समेत कई लोग सरकार के इस दावे पर यकीन नहीं करते। जहां तक सीईटीपी को स्थापित करने का सवाल है तो खुद मुख्यमंत्री दीक्षित का भी मानना है कि अब तक एक भी संयंत्र तैयार नहीं हुआ है। लेकिन दिल्ली सरकार ने वादा किया है कि कुछ वर्षों में ये जरूर तैयार हो जाएंगे। इनके तैयार होने पर परिशोधन क्षमता 58 करोड़ गैलन प्रतिदिन हो जाएगी।
मगर, गौरतलब है कि तब तक पानी की मांग भी 85 करोड़ गैलन तक पहुंच जाएगी। यानी अपरिशोधित गंदे पानी का अनुपात उतना ही रहेगा। हताशा से भरे मेहता कहते हैं ''सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, कानून लागू करने की इच्छा किसी में नहीं नजर आती। ऐसी परियोजनाओं का लागू करने का पिछला रिकॉर्ड इतना निराशाजनक है कि मुझे तो यकीन ही नहीं आता कि यमुना कभी साफ भी हो पाएगी।
राज्य भाजपा भी मेहता की निराशा भरी भविष्यवाणी से सहमत है। उसे तो यमुना की सफाई का पूरा अभियान प्रचार का एक हथकंडा ही लगता है। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता जगदीश मुखी कहते हैं,''यह पूरी कवायद एक नाटक है, आंखों में धूल झोंकने की एक कोशिश। इस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के तीन आदेशों का उल्लंघन किया है। इससे पहले भी उसने सफाई अभियानों की घोषणा की थी लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।''
मुखी का यह भी कहना है कि 11 महीने पहले नदी को स्वच्छ करने के लिए समिति गठित की गई थी, लेकिन पहले दौर के विचार-विमर्श के लिए सदस्यों की बैठक अब तक नहीं हुई है। दिल्ली सरकार यदि यमुना- जिसे अब एक नाला माना जाने लगा है- के पुनरूद्धार के बारे में वाकई गंभीर है तो उसे अपने काम में तेजी लानी होगी। उसे परिशोधन संयंत्रों को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर तैयार करना होगा। उन स्थानों को, जहां मौजूदा अभियान शुरू हुआ, भी साफ रखना होगा। इससे यह भी साबित होगा कि अभियान महज दिखावा नहीं था। जल प्रवाह को भी सुधारना होगा। एसएजी को तट प्रबंधन में सुधार लाना होगा।
तट पर बसी झुग्गी-झोंपड़ियों को हटाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। और हर महीने जल स्वच्छ होने की प्रगति को जनता के सामने रखना होगा ताकि उसे यह यकीन हो सके कि वाकई इस दिशा में काम हो रहा है। जब तक यह नहीं होता तब तक यमुना नदी चुपचाप राजधानी का कूड़ा उठाती रहेगी, अपने सुधार के प्रति नाउम्मीद-सी!
- सायंतन चक्रवर्ती
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