वाटर डाटा टू लाइफ़
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circleofblue.orgगूगल की नई क्रांतिकारी पेशकश
आज जबकि हम 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, हर बात टेक्नोलॉजी से संचालित और प्रभावित हो रही है, सभी देश, कम्पनियाँ, लोग आपस में तकनीक की मदद से जुड़े हुए हैं, ऐसी स्थिति में भी धरती की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु जीवनदायी “जल” जो कि इस धरा पर यत्र-तत्र बिखरा पड़ा है, के बारे में कोई ठोस, एकत्रित और संगठित जानकारी किसी भी जगह उपलब्ध नहीं है। जो भी जानकारी या आँकड़े हैं वे बिखरे-बिखरे और आधे-अधूरे से हैं। इस स्थिति को देखते हुए विश्व के सबसे बड़े सर्च इंजन “गूगल” ने अपनी कई सेवाओं के साथ ही गजयपुर का पानी
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timesofindia.indiatimes.comखतरे के दौर से गुजर रहीं बडी नदियां
वैश्विक धारा के प्रवाह को लेकर हुए एक व्यापक अध्ययन के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले कुछ क्षेत्रों में नदियां अपना पानी खो रहीं हैं. अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेयरिक रिसर्च के वैज्ञानिकों के नेतृत्व हुए इस अध्ययन के मुताबिक कई मामलों में प्रवाह के कम होने की वजह जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है.
नए ज्ञान संसाधन : नाइट्रेट और कैंसर
फ्लोराइड और आर्सेनिक के बाद नाइट्रेट/नाइट्राइट प्रदूषण भारत के लिए आज एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। यह प्रदूषण मुख्यत: मनुष्यों के लिए प्रयुक्त होने वाले जल के साथ उर्वरकों और नालों में बहने वाले दूषित जल के मिश्रण से होता है। नए शोध से पता चला है कि नाइट्रेट/नाइट्राइट प्रदूषण मनुष्यों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाता है और इससे कैंसर तक हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों पर प्रभाव
जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा इस मुद्दे पर केन्द्रीय जल आयोग और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के संयुक्त संयोजन तथा जल संसाधन मंत्रालय के मार्गदर्शन में तैयार की गई यह रिपोर्ट भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई पहली आधिकारिक रिपोर्ट है। जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों, ग्लेशियरों और बर्फ पिघलनें, नदी व्यवस्था के अपवाह और भूजल में उनके योगदान पर प्रभाव आदि पर विस्तृत फील्ड डाटा इस रिपोर्ट में उपलब्ध कराया गया है। रिपोर्ट में, भारत के जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर उपलब्ध अध्ययनों, देश में पानी की जरूरतों, जलवायु, नदी घाटियों, वर्तमान जल संसाधनों और भविष्य की मांग और आपूर्ति आदि में बदलाव और संबंधित जलीय घटनाओं और खतरों की पहचान और खतरों को टालने के लिए रणनीतियों पर भी चर्चा की गई है।
पर्यावरण सुरक्षा
सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों में संभवत: यह सबसे मुश्किल लक्ष्य है क्योंकि यह मुद्दा इतना सरल नहीं है, जितना दिखता है। टिकाऊ पर्यावरण के बारे में जिस अवधारणा के साथ लक्ष्य सुनिश्चित किया गया है, सिर्फ उस अवधारणा के अनुकूल परिस्थितियां ही तय सीमा में तैयार हो जाए, तो उपलब्धि ही मानी जाएगी।
यद्यपि यह माना जाए कि विकास की राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों के बीच समन्वय एवं उनमें व्यवस्थित रूप से एकीकरण किया जाए, पर यह संभव नहीं दिखता।
यद्यपि यह माना जाए कि विकास की राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों के बीच समन्वय एवं उनमें व्यवस्थित रूप से एकीकरण किया जाए, पर यह संभव नहीं दिखता।
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