सहारनपुर की टेम्स
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अमर उजाला 20, सितंबर 2010सहारनपुर के बीचोंबीच पांवधोई और ढमोला नदियां बहती हैं। डीएम ने जब दोनों नदियों की सफाई का साहसिक संकल्प लिया था, तो उन्हें इस बात का बखूबी एहसास था कि अपराध के लिए बदनाम पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इस नगरी में ऐसा संकल्प प्रशासनिक डंडे से नहीं, बल्कि लोगों को जागृत करने से ही पूरा हो सकता है। अभियान की शुरुआत तीन चरणों में की गई- नदी को ठोस अवशिष्ट से मुक्ति, गंदे पानी और सीवर से मुक्ति तथा जल प्रवाह से मुक्ति। नगर निगम और स्थानीय नगरपालिका ने पांवधोई को गंदे नाले से ज्यादा अहमियत कभी नहीं दी। यही कारण था कि दो किलोमीटर के मार्ग में ही 50 से ज्यादा गंदे नालों का समागम पांवधोई में होता था। सबसे पहले नगर निगम को इस अभियान से जोड़ा गया। स्थानीय लोगों के अलावा पांवधोई बचाओ समिति और सिटीजन फाउंडेशन ने भी भरपूर साथ दिया। लोगों को बताया गया कि नगर को साफ रखने के लिए सैफ्टी टैंक जैसे वैकल्पिक प्रबंध किए जा रहे हैं, लिहाजा ठोस कचरा और पॉलिथिन नदी में न डालें।फिर तो पूरा शहर पांवधोई की सफाई में जुट गया। सफाई के दौरान पांच हजार ट्रक कचरा निकाला गया। लोगों ने अपने घरों की सीवर लाइन का नदी में प्रवाह रोककर घर के बाहर टैंक बनवा लिए। इस अभियान में ‘पांवधोई बचाओ समिति’ के सिर्फ दस लाख रुपये खर्च हुए। बाद में बड़ी कंपनियां भी साथ जुड़ती चली गईं।
सहारनपुर की यह पहल पूरे देश के लिए मिसाल बन सकती है। यमुना को नाले में तबदील करने वाले दिल्ली के बाशिंदों के लिए भी। पांवधोई तो तीस साल से बजबजाते नाले में तबदील हो चुकी थी, लेकिन यमुना की अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है। शुक्र है कि इस बार की बारिश में यमुना अपने यौवन पर है और लोगों को अपना रूप दिखा रही है। लिहाजा, अब सिर्फ जोश-जुनून, संकल्प की जरूरत रह गई है।
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