**राधास्वामी!! 09-04-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु का सँग मोहि मिलिया कोई बड भाग जागा है।
जगत का संग मन तजिया चरन में गुरु के लागा है।।-
(चरन सेवक मेरे गुरु के सभी इक दिन यह गति पाव़े।
परम गुरु राधास्वामी दाता उन्ही यह भेद भाखा है।।)
(प्रेमबिलास-शब्द-48-पृ.सं.60,61)
-नेपाल(Kolhuwamor pur(khoalpur) ब्राँच-218-उपस्थिति।)
(2) आज बधावा राधास्वामी गाऊँ।
चरन ःकँवल गुरु प्रेम बढाऊँ।।
-(अजब बधावा राधास्वामी गाया।
उलट पलट राधास्वामी रिझाया।।)
(सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.76,77- U.K. द्वारा)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।। (प्रे.भा. मेलारामजी फ्राँस)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!! 09-04-2021-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे:
- [ वेदों और शास्त्रों की निन्दा]-
(202)-का भागः
-इसी कारण प्रकृति की सृष्टि को त्रिगुणात्मक अर्थात् तीन गुणों वाली कहते हैं। यह सृष्टग सुख-दु:ख और जन्म मरण आदि नाश होने वाले द्वन्दों से भरी हुई है। इसलिए भगवद्गीता के अध्याय 2 में फरमाया है - हे अर्जुन! वेदों में तीन गुणों वाले विषय का वर्णन है।
तुझे उनके पार जाना चाहिए। तुझे द्वन्दो से मुक्त, सदा सात्विकी वृति वाला, धन ऐश्वर्या की उलझन से उदासीन और आत्मवान बनना चाहिए(45)। सच्चे ब्रह्मज्ञानी के लिए वेद वही अर्थ रखते हैं जो किसी विस्तृत और परिपूर्ण जलाश्य की अपेक्षा एक पानी से भरे हुए गढे या कुएँ का होता है"( 46)। और इसके पूर्व श्लोक 42 में फरमाया है-" मूर्ख लोग वेदों के वाक्य पकड़ कर डींगें हाँकते हैं और कहते हैं कि वेदों में वर्णित फलों के अतिरिक्त मनुष्य और कुछ प्राप्त ही नहीं कर सकता"।
और इन्हीं कारणों से सन्तो तथा राधास्वामी दयाल ने वेदों और दूसरे हिंदू शास्त्रों में उलझने से जीव को मना किया है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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