Saturday, April 10, 2021

RS सतसंग सुबह DB 11/04

 **राधास्वामी!! 11-04-2021-(रविवार) आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-              

                                                                      

(1) गुरु आरत बिधि दीन बताई।

मोह नींद से लियि जगाई।।-

(डोर लगी और चढी गगन को। उमँगा मन राधास्वामी कहन को।।)

 (सारबचन-शब्द-7-पृ.सं.186,187-राजाबरारी ब्राँच-155- उपस्थिति!) ।    

                                                   

 (2) गुरु प्यारे की सरनी आवो धाय।

।टेक।। तन मन सँग नित रहो बँधानी।

फिर फिर जन्मों जग में आय।।

-( सरन धार करो शब्द कमाई। राधास्वामी दें तेरा काज बनाय।।)

(प्रेमबानी-3--शब्द-22-पृ.सं.26).                       

 सतसँग के बाद:-                                                 

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                          

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँश।)           

 विद्यार्थियों द्वारा पढे गये पाठ:-                                                                                      

(1) जुड मिल के हंस सारे, दर्शन को गुरु के आये। बँगला अजब बनाया, सोभा कही न जाये।।-(प्रेमबानी-4-गजल- 12-पृ.सं.13)                                                      

  (2) देख पियारे मैं समझाऊँ। रुप हमारा न्यारा।।  (सारबचन-शब्द-16-पृ,सं.650)                                                             

  (3) सुरतिया फूल रही। सतगुरु के दरशन पाय।।(प्रेमबानी-2-शब्द-41-पृ.सं.165)                                                                 


(4) लगे हैं सतगुरु मुझे पियारे। कर उनका सतसंग शब्द धारे।। छुटे है मन के बिकार सारे। कहूँ मैं कैसे गुरु की गतियाँ।।(प्रेमबानी-4-गजल-10-पृ.सं.11)                                                             

(5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरुँ या कि मेहनत करुँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुआफिक न हो। रज़ा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

भाग 1- कल से आगे:-

यदि कल आप सत्संग में एक दूसरे शख्स के ढंग पर तवज्जह रखते तो शुरु से ही आपको यह शिक्षा मिल सकती थी। कल पहले शब्द की डेढ कड़ी के पढ़े जाने के बाद मुझे यह ख्याल पैदा हुआ कि मैं एक क्षण के लिए भी साहबजी महाराज के दर्शन से अपनी दृष्टि को अलग न करूँ।

 अतएव शब्द के पाठ के समय मैंने अपनी दृष्टि बराबर हुजूरी फोटो पर लगाय रक्खी। सतसँग में आने के पहले मुझे इस बात का बिल्कुल ख्याल नहीं था परंतु उनकी दया से मुझे यहाँ यह ख्याल पैदा हुआ।

 आपको भी जब कोई अच्छी और लाभदायक बात किसी दूसरे शख्स से मिले जो चाहे वह शख्स कितनी ही नीचे पोजीशन क्यों न रखता हो, आपको उसे तुरंत ग्रहण कर लेना चाहिए।

 दस दिन के बाद कल शाम को जब आपसे मुलाकात करने का अवसर मिला तो आपने अपनी तवज्जह  साहबजी महाराज की फोटो की ओर रखने के बजाय अपना और मेरा समय व्यर्थ सिर झुकाने और तख्त पर मत्था टेकने में नष्ट कर दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि 15 मिनट के अंदर केवल 400 आदमी मुलाकात के लिए आ सके।

यदि आगे के लिए दूरदर्शिता के ख्याल से हम अपना यह ढंग बदल दें तो हमारी यह कार्रवाई बुद्धिमानी में गिनी जावेगी। इस समय हम लोगों की तादाद बहुत कम है लेकिन चार छः साल बाद तादाद बढ़ जाने पर यदि यह ढंग जारी रहा तो  किसी काम के लिए चार छः घंटे का समय देना पड़ेगा और इतनी देर बैठना पड़ेगा जो असंभव और अनुचित होगा।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे :-

【बारहवाँ  अध्याय】

{ भक्ति का बयान}[

 अवतार स्वरूप श्रीकृष्णजी की भक्ति करना श्रेष्ठ है या निराकार परमात्मा की- इस विषय का निर्णय किया जाता है और सच्चे भक्तों के लक्षण बयान होते हैं।]:- अर्जुन ने प्रश्न किया- महाराज! एक तो वे हैं जो सदा अंतर में आप से जुड़े आपकी उपासना करते हैं और दूसरे भी हैं जो निराकार अक्षर पुरुष उसकी उपासना करते हैं। इन दोनों में बढ़िया योग किसका है?                                                     

श्रीकृष्णजी ने जवाब दिया- जिनका मन मुझ में लगा है और जो अंतर में मेरे साथ जुड़े हैं और जिनके दिल में मेरे लिए परम श्रद्धा है, मेरी राय में वे लोग योग में सबसे बढ़ कर है। और जो लोग अकह, निराकार,सर्वव्यापी, विचार से परे, अडोल,एकरस ,अविनाशी अक्षर पुरुष की उपासना करते हैं और इन्द्रियों को रोक कर और बस में रखकर पदार्थों को एक दृष्टि से देखते हुए सब की भलाई में प्रसन्न रहते हैं वे भी मुझ ही को प्राप्त होते हैं । लेकिन जो लोग निराकार में मन लगाते हैं उनको ज्यादा दिक्कतें झेलनी पड़ती है क्योंकि देहधारी के लिए निराकार उपासना के मार्ग पर चलना कठिन है।

【 5】                                                   

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻



**परम गुरु हजूर महाराज-

प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे-  

                                             

 (2)- सत्संगी को चाहिए कि अपने कुटुम्ब परिवार के संग प्रीति भाव के साथ बर्ताव करें और जिसका जो हक होवे, जहाँ तक मुमकिन होवे, उसको अदा करें । जो कुटुंबी इसके साथ सच्चे प्रमार्थ में शामिल हो जावें तो बहुत अच्छा, नहीं तो एक ,दो या तीन मर्तबा इसको चाहिए कि उनको राधास्वामी मत की बडाई और उसके अभ्यास का फायदा खोलकर समझावे।

 जो यह बात उनकी समझ में आ जावे और वे अपनी राज़ी से जिस कदर शामिल होंवें,उनको अपने साथ परमार्थ में लगा लेंवे और जो वे टेकी या कर्मी और भरमी होवें और संतों के बचन को न माने और भेष और पंडितों की चाल के मुआफिक अपना बरताव जारी रक्खें, तो राधास्वामी मत के अभ्यासी को चाहिये कि उनके साथ जिद और अदावत न करें। उनकों उनके हाल पर छोड़ देवे और दुनिया का व्यवहार उनके साथ बदस्तूर बरतता रहे।।                                                    

  ( 3)-जो उसके कुटुंबी बेफायदा झगड़ा और लड़ाई इसके साथ इस निमित्त करें कि यह राधास्वामी मत को छोड़ कर उन्ही का संग देता रहे, तो (जो इसकी समझ में राधास्वामी मत की बडाई अच्छी तरह आ गई है) उनसे साफ कह देवें कि वह उनका संग नहीं दे सकता है, चाहे वे उससे प्रीति भाव और दुनियाँ के व्यवहार का बर्ताव रक्खें या नहीं, लेकिन उनके दीन और दुनियाँ के मामले में किसी तरह से दखल न देवें। जिस तरह का प्रमार्थ और व्यवहार उनको भावे में बदस्तूर करते रहे, धन की मदद जिस कदर हो सके उनकी करता रहे, और एहतियात रक्खें कि इसकी बेपरवाही के सबब से उनको किसी तरह की तकलीफ न होवे। क्रमशः                                                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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