**राधास्वामी!!15-04-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला पाठ:-
(1) चौका बरतन किया अचंभी।
स़फा किया मन अपना हम भी।।
-(सतगुरु सेवा में रहूँ लागी। छिन छिन चरन कँवल में पागी।।)
(सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ।सं.900,901)
(- राजाबरारी ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-84)
(2) गुरु प्यारे की प्यारी कर परतीत।।टेक।।
भाव सहित सतसँग कर उनका। धार हिये में गहिरी प्रीत।।-
(राधास्वामी चरन पकड ले दृढ कर। वोही है तेरे सच्चे मीत।।)
(प्रेमबानी-3-शब्द-26-पृ.सं.28)
सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल से आगे
Hh:- इसलिए डर और दहशत मालूम होने के बजाय वहीं पर इत्मीनान से लेटने के लिए तैयार हुए। इसके बाद तुरंत ही उन्होंने देखा कि दुश्मन के बीच में हवाई जहाज उस जगह के ऊपर से गुजरने लगे। उनका निचला भाग बहुत रोशन और चमकदार था जिससे सारा आसमान रोशन हो गया।
तुरंत उन हवाई जहाजों से दहकते हुए गर्म लोहे की तरह चमकदार सुर्ख सुर्ख बम,जो लगभग छः फीट लंबे ढाई फीट चौड़े और 2 फीट मोटे थे, गिरने शुरू हो गये, उनमें से बहुत से बम तो उन दोनों शख्सों के दायें बायें और चारों ओर बिल्कुल पास पास गिरे और एकदम उनके ऊपर भी गिरता हुआ मालूम पड़ा लेकिन यह दोनों शख्स बिल्कुल नहीं घबराये और न एक रत्ती भर अपनी जगह से टस से मस हुए ।
इतने ही में उनमें से कहानी सुनाने वाले ने स्वपन में ही बाईं और करवट ली और उसकी आंख खुल गई। तुरंत ही वह अपने आपको दयालबाग में देखता है और यह है कि हवाई जहाज और बम सब गायब हो गये और दयालबाग में जीवन निर्भय व्यतीत हो रहा है।
3 जुलाई को जब सुबह डॉक्टर साहब तशरीफ लाये तो स्वपन देखने वाले ने उनके सामने अपना यह स्वपन पेश किया और बतलाया कि आज सुबह से तबीयत निश्चित रूप से स्वस्थ हो रही है। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[भगवद् गीता के उपदेश]
-{ 13 वाँ अध्याय}-
क्षेत्र (जिस्म) और क्षेत्रज्ञ (जान) का बयान।
[जिस्म और जान का तत्व बयान करके असली अध्यात्म(आत्म-संबंधी ज्ञान) का उपदेश होता है।]
अर्जुन ने सवाल किया- श्री महाराज! कृपा करके यह फर्मावे कि प्रकृति( माद्दा) व पुरुष(रुह) क्षेत्र (जिस्म) व क्षेत्रज्ञ( ज्ञान), ज्ञान (इल्म) व ज्ञेय(मालूम) किसे कहते हैं? श्री कृष्ण जी ने जवाब दिया- अर्जुन! यह जिस्म क्षेत्र कहलाता है और इसके जाने वाले को ऋषि (तत्वदर्शी) क्षेत्रज्ञ(जान) जान कहते हैं और कुल जिस्मों में जगन मुझे ही समझो, और जिस्म और जान का ज्ञान ही मेरी राय में ज्ञान है।
अब संक्षेप में यह बतलाऊँगा कि वह जिस्म क्या चीज है, उसके गुण क्या है, उसमें क्या विकार( परिवर्तन) होता है और उसका (जिस्म का) भंडार क्या है और यह कि जान क्या चीज है और उसका प्रभाव (असर) क्या है- तो सुनो ।।
ऋषियों ने यह भेद अनेक प्रकार से तरह-तरह के छंदों में और युक्तियुक्त और अन्वेषणापूर्ण ब्रह्मसूत्रों में वर्णन किये है।
【 5】 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे-( 7 )-
सत्संगी को चाहिए कि जो उसके घराने में पुरानी रस्में जारी है और उसके कुटुंबी उनको बिरादरी के खातिर बदस्तूर रखना चाहें, तो उनको उन रस्मों में बरतने देवे। और जो वे परमार्थ में इसका संग दे रहे हैं , तो इसको भी मुनासिब है कि जाहिरी तौर पर उन रस्मों में अपने को कुटम्बियों का संग देवें और अंतर में यह भी और कुटुंबी भी राधास्वामी का ध्यान करें। इसमें किसी तरह का प्रमार्थी हर्ज नहीं होगा।
जब तक सत्संगी गृहस्थ में बैठा है, तब तक उसको अपनी बिरादरी से थोड़ा बहुत व्यवहार रखना जरूर और मुनासिब है और इस वास्ते उनके खातिर कोई कोई पुरानी रस्म और चाल भी जारी रखना मुनासिब है।
और जिसमें बिरादरी के शरीक होने या दखल देने की खास जरूरत नहीं है, उस रस्म में कमी बेशी करने का इख्तियार है। और जिस रस्म के सबब से कोई खास तकलीफ क्या नुकसान या मुश्किल उठानी पड़े और ऐसी रस्म को बदलना मुनासिब मालूम होवे और बिरादरी का उसमें खास दखल नहीं है, तो इख्तियार है कि उस रस्म को जिस तौर से मुनासिब होवे बदल देवे, पर इस कदर एहतियात रक्खें कि कोई काम अहंकार और जबरदस्ती ( और लोगों के दिल दुखाने को) दिखावे के साथ न करें कि इसमें नाहक तकलीफ हो नुकसान उठाना पड़ेगा।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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