Tuesday, April 6, 2021

सतसंग शाम DB 06/04

 **राधास्वामी!! 06-04-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-      

                                  

 (1) आज घडी अति पावन भावन।

राधास्वामी आये जक्त चितावन।।

-(राधास्वामी शब्द मनावन।

सुरत चढी देखि घट चाँदन।।)

 (सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.556-)

(गोरखपुर ब्राँच-170 उपस्थिति!)                                     

 (2) झूलत घट में सुरत हिंडोला।

 बाजत अनहद शब्द अमोला।।

-(प्रेम सहित  सब आरत गावें।

 छिन छिन राधास्वामी पुरुष रिझावें।।

राधास्वामी!! 06-04-2021-

 शाम सतसँग में पढे गआजये पाठ:- (1) आज घडी अति पावन भावन। राधास्वामी आये जक्त चितावन।।-(राधास्वामी शब्द मनावन। सुरत चढी देखि घट चाँदन।।) (सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.556-गोरखपुर ब्राँच-170 उपस्थिति!)

(2) झूलत घट में सुरत हिंडोला। बाजत अनहद शब्द अमोला।।-(प्रेम सहित सब आरत गावें। छिन छिन राधास्वामी पुरुष रिझावें।।)

(प्रेमबानी-4-शब्द-16-पृ.सं.152,153)

(3)यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।


 सतसँग के बाद:-

(1) राधास्वामी मूल नाम।।

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 06-04-2021-

 आज शाम सतसँग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे -(199)-

(२)- राधास्वामी मत में यह माना जाता है कि निर्मल चेतन देश की चोटी के अर्थात् छठे स्थान में, जिसे राधास्वामी धाम कहते हैं, कुल मालिक का निज स्वरूप प्रकट है और परम संत या परम गुरु उसी को कहते हैं जिसके सुरत की पहुँच उस धाम तक हो। इसलिए इस कड़ी में उस धाम को सद्गुरु का निज धाम कहा है ।

 (200)-(३)- गुरु नानक साहब के जिस बचन का आपने उल्लेख किया उसमें 'ओम्' शब्द कहीं नही आया है। पहले गिनती का प्रथम अंक अर्थात् एकाई और उसके अनन्तर गुरुमुखी भाषा का प्रथम अक्षर ऊड़ा- दोनों मिल कर '१ उ'( एक ऊडा) अंकित है।यह 'उ' (ऊडा) ख्वामख्वाह 'ओं' और पढा जाता है । (201)-

(४)- करोड़ों चाँद और सूर्य का प्रकाश एक साधारण मुहावरा है। आपको इसके शब्दार्थ न लेने चाहिएँ। आपने ग्रंथ साहब से अभिज्ञता प्रकट की है इसलिए संभवतः आपने 'आसा कि वार' का यह श्लोक भी पढ़ा या सुना होगा-" जे सौ चन्दा ऊगवेै सूरज चढ़े हजार । एते चानन को होंदिया गुरु बिन घोर अँधार "। यह खास गुरु नानक साहब का बचन है। इसे तो बच्चों की सी बात ठहराने का साहस न कीजियेगा?

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!

**)(प्रेमबानी-4-शब्द-16-पृ.सं.152,153)  

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏






                                      

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