**राधास्वामी!!13-04-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) मेरे तपन उठत हिय भारी।
गुरु प्रेम की बरषा कीजे।।टेक।।
बिरह अगिन सुलगत नित घट में।
कस निरखूँ छबि तिल घट में।।-
(तुम चरन रहूँ रस राता। मेरी सुरत सरन लीजे।। )
(प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.24,25-)
( डेढगाँव ब्राँच-अधिक्तम उपस्थिति-92)
(2) भूल भरम गफलत अब छोडो।
शब्द गुरू में सूरत जोडो।।
-(फिर और औसर अस मिले न भाई। चौरासी में रहै भरमाई। माया देस में भटका खाई।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-21-पृ.सं.158,159)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस!)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!!
13-04-2021-आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-( 204) का भाग:-
वेद-वाक्यों अर्थात् वेद के वचनों से गड़बड़ाये हुए लोगों यदि वेदपशु कह दिया जाय तो क्या गजब है?
कठ उपनिषद् के पहले अध्याय की दूसरी बल्ली में आया है-" बड़ा भेद रखने वाले और भिन्न-भिन्न तरफ को ले जाने वाले हैं ये दोनों, जो अविद्या है और जो विद्या, इस नाम से जानी गई है। मानता हूँ कि नचिकेता विद्या का चाहने वाला है क्योंकि तुझे बहुत कामनाएँ भी नहीं ललचा सकीं
(४)।
मूढजन अविद्या के अंदर रहते हुए आप ही धीर पुरुष बने हुए और अपने आपको पंडित मानते हुए ठोकरें खाते हुए चक्कर लगाते हैं। जैसे अंधे से ही ले जाये हुए अन्धे
(५)"।
ऐसे ही मुंडक उपनिषद के पहले मुंडक के दूसरे खंड में फर्माया है-" वे बालक अविद्या के अंदर बहुत प्रकार से जाते हुए, हम कृतार्थ है ऐसा मान लेते हैं••••••••
•(९) इष्ट और पूर्त (यज्ञ और दूसरे नेक कामों) को सबसे उत्तम मानते हुए ये मुफ्त उससे बढ़कर और कल्याण (भलाई) नहीं देखते हैं•••••
(१०)"।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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