**राधास्वामी!! 08-04-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) सुन सुन रह्या न जाय महिमा सतगुरु की।।टेक।।
मछरी पडी भँवर के माहीं बहती बेबस धार।
ठहरन को कहिं ठौर न पावे मछुआ खडा रे किनार।।-
(सतगुरु पुरुष सुजान है रे राधास्वामी के औतार।
प्रीति कर जिव बन्द छुडावें आस त्रास दें टार।।)
(प्रेमबिलास-शब्द-117-पृ.सं.174- )
(डेढगाँव ब्राँच-96-उपस्थिति!)
(2) होली खेले रँगीली नार। सतगुरु से प्रेम लगाई।।टेक।।
मन माया की धूल उडाई। कल करम दोउ गये ठगाई।।
ऐसी दया राधास्वामी कराई।।-
(राधास्वामी ऐसी दया बिचारी।
मन मायख दोउ बाजी हारीः।
राधास्वामी सबको पार लगाई।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-17-पृ.सं.154,155)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा
- कल से आगे।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
(प्रे.भा. मेलारामजी)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!! 08-04-2021-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-
[वेदों और शास्त्रों की निन्दा]-(202)-का भागः-
सूत्र का अर्थ यह है-
"न लौटना शब्द से, न लौटना शब्द से"। अर्थात् यह प्रकट किया गया कि उपनिषदों में जो 'अनावृति' शब्द आया है उसी से स्पष्ट होता है कि लौटना नहीं होता। अनावृत्ति का अर्थ 'वापिस न आना' है पर स्वामी दयानन्दजी के पक्ष की रक्षा करते हुए पंडित राजारामजी, प्रोफेसर डी०ए०वी० कॉलेज में अपने भाष्य के अंत में निम्नांकित नोट लिखा है-"
यह वापिस न आने का नियम एक कल्प के लिए है••••••••••••• पितृयान से गए हुए वापिस आते हैं, और देवयान से गए हुए नहीं। इस 'अनावृति'( वापस न आने) का अभिप्राय महाप्रलय तक है। परे तक इसलिए नहीं जा सकता कि महाप्रलय में ब्रह्मलोक ही नहीं रहता, वह प्रकृति में मिल जाता है, तो वापिस न लौटना कैसा?"
इत्यादि( पृष्ठ 614)। स्वामी दयानंदजी रचित 'सत्यार्थ- प्रकाश' के नवे समुल्लास में भी मुक्ति से लौटना अत्यंत स्पष्ट और ओजस्वी शब्दों में सिद्ध किया गया है और है भी ठीक। क्योंकि जब ब्रह्मलोक ही न रहा तो उस में निवास करने वाली आत्माएँ मुक्ति अवस्था में कैसे रह सकती हैं ?
असली बात यह है कि वेदों में जिन स्थानों का वर्णन है उन सब में प्रकृति का आधिपत्य है और प्रकृति सत्त्व,रज, तम इन गुणों से संगठित है । क्रमश:
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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