*"कर्म की गति बड़ी गहन है"*
प्रस्तुति -मनोज कुमार
एक कार्यपालक इंजीनियर था जो नर्मदा नहर का कार्यभार सँभालता था। वही आदेश देता था कि किस क्षेत्र में पानी देना है।
एक बार एक बड़े किसान ने उसे 1000-1000 रूपयों की दस नोटें एक लिफाफे में देते हुए कहाः “साहब ! कुछ भी हो, पर फलाने व्यक्ति को पानी न मिले। मेरा इतना काम आप कर दीजिये।”
साहब ने सोचा किः “दस हजार रूपये मेरे भाग्य में आने वाले हैं इसीलिए यह दे रहा है। किन्तु गलत ढंग से रुपये लेकर मैं क्यों कर्मबन्धन में पड़ूँ ? दस हजार रुपये आने वाले होंगे तो कैसे भी करके आ जायेंगे। मैं गलत कर्म करके दस हजार रूपये क्यों लूँ ? मेरे अच्छे कर्मों से अपने-आप रूपये आ जायेंगे।ʹ अतः उसने दस हजार रूपये उस किसान को लौटा दिये।
कुछ दिनों के बाद इंजीनियर मुंबई से ट्रेन से लौट रहा था। मुंबई से एक व्यापारी का लड़का भी उसके साथ बैठा। वह लड़का सूरत आकर जल्दबाजी में उतर गया और अपनी अटैची ट्रेन में ही भूल गया। वह इंजीनियर समझ गया कि अटैची उसी लड़के की है। अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रूकी। अटैची पड़ी थी लावारिस… उस इंजीनियरने अटैची उठा ली और घर ले जाकर खोली। उसमें से पता और टैलिफोन नंबर लिया।
इधर सूरत में व्यापारी का लड़का बड़ा परेशान हो रहा था किः “हीरे के व्यापारी के इतने रूपये थे, इतने लाख का कच्चा माल भी था। किसको बतायें ? बतायेंगे तब भी मुसीबत होगी।” दूसरे दिन सुबह-सुबह फोन आया किः “आपकी अटैची ट्रेन में रह गयी थी जिसे मैं ले आया हूँ और मेरा यह पता है, आप इसे ले जाइये।”
बाप-बेटे गाड़ी लेकर वहां पहुँचे और साहब के बँगले पर पहुँचकर उन्होंने पूछाः “साहब ! आपका फोन आया था ?”
साहबः “आप तसल्ली रखें। आपका सभी सामान सुरक्षित हैं।”
साहब ने अटैची दी। व्यापारी ने देखा कि अंदर सभी माल-सामान एवं रुपये ज्यों-के-त्यों हैं। ʹये साहब नहीं, भगवान हैं….ʹ ऐसा सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ गये, उसका दिल भर आया। उसने कोरे लिफाफे में कुछ रुपये रखे और साहब के पैरों पर रखकर हाथ जोड़ते हुए बोलाः
“साहब ! फूल नहीं तो फूल की पंखुड़ी ही सही, हमारी इतनी सेवा जरूर स्वीकार करना।”
साहबः “दस हजार रूपये रखे हैं न ?”
व्यापारीः “साहब ! आपको कैसे पता चला कि दस हजार रूपये हैं ?”
साहबः “दस हजार रूपये मुझे मिल रहे थे बुरा कर्म करने के लिए। किन्तु मैंने वह बुरा कार्य नहीं किया यह सोचकर कि यदि दस हजार रूपये मेरे भाग्य में होंगे तो कैसे भी करके आयेंगे।”
व्यापारीः “साहब ! आप ठीक कहते हैं। इसमें दस हजार रूपये ही हैं।”
जो लोग टेढ़े-मेढ़े रास्ते से कुछ लेते हैं वे तो दुष्कर्म कर पाप कमा लेते हैं लेकिन जो धीरज रखते हैं वे ईमानदारी से उतना ही पा लेते हैं जितना उनके भाग्य में होता है।
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