राधास्वामी!! आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-
( 203)- प्रश्न-पर सारबचन पुस्तक में तो लिखा है:-
संत पुकारे भेद, वेद पशु माने नहीं। अब क्या करें उपाय, जीव पडे सब भरम में।।
लोक वेद में जो पड़े, नाग पाँच डस खायँ। जन्म जन्म दुःख में रहे, रोवें अरु चिल्लायँ।। षट शास्त्र और चारों वेदा, यह सन्तन ने किये निषेधा।।
बानी अपनी जुदी बनाई, मूरख उनसे विधि मिलाई ।। ? ?
उत्तर- इस प्रश्न का बहुत कुछ उत्तर तो ऊपर आ चुका है। इन कडियों में यही तो आदेश हुआ है कि संत दया करके सत्यदेश का भेद वर्णन करते हैं पर 'वेद पशु' उनका बचन नहीं मानते। अब क्या उपाय किया जाय?
सब जीव भ्रम में पड़े हुए हैं । जो व्यक्ति लोकाचार और वेद में अटकेगा( अर्थात तीन गुणों की हद में रहेगा ) उसे पाँच नाग अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह ,अहंकार, अवश्य डसेंगे और उनके विष के प्रभाव से वह संसार की वासनाओं से लिथड कर बार-बार जन्म ग्रहण करेगा और दुःख और क्लेश सहेरगा और चिल्लाएगा।
संतों में इसी कारण वेदों और शास्त्रों का निषेध किया और मनुष्यों की भूल भरम मिटाने और उन्हें कल्याण का मार्ग बतलाने के लिए अपनी अलग बानी रची।
**-【किंतु मूर्ख लोग उनकी बानी वर्णन के हुए उपदेश को स्वीकार करने के बदले उसका शास्त्रों से मिलान करते हैं और मिलान न होने पर शंकाएं उठाते हैंं। 】
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
**राधास्वामी!! 11-04-2021-
(रविवार) आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) राधास्वामी दीन दयाला। मोहि दरशन दीजे।।
मेरे प्यारे गुरु दातारा। निज किरपा कीजे।।-
(मुझ से कुछ बन नहिं आई। क्योंकर मेरा काज बनाई।।
तुम राधास्वामी होव सहाई। तब सभी बात बन आई।।)
(प्रेमबानी-3-शब्द-8-पृ.स.279,280,281-
डेढगाँव ब्राँच-122- उपस्थिति।)
(2) यह देह मलीन और नाशमान।
जगय कलेश और दुख की खान।।
और कहीं नहिं अमन अमाध। माया देश के पार चलान।।
सुरत शब्द का गहै निशान। राधास्वामी धाम बसान।।
(चरन समान) (प्रेमबानी-4-शब्द-19-पृ.सं.157)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
11-04- 2021-आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 204)-
कोई आक्षेपक 'वेद पशु' शब्द से यह परिणाम निकालते हैं कि यहाँ वेदों और वेदों के मानने वालों को प्रश्न कहा गया है पर यह उनका सरासर अन्याय है। हर कोई जानता है कि पशु का अर्थ 'जानवर' है और जोकि गाय भैंस आदि जानवर मनुष्य से कम दर्जे की बुद्धि रखते हैं इसलिए मंदबुद्धि मनुष्यों के लिए मूर्ख, अज्ञ आदि शब्दों के समान 'पशु' शब्द भी प्रयुक्त होता है। मंदबुद्धि लोग बुद्धिमान और चतुर मनुष्यों की तरह जीवन व्यतीत नहीं करते और न ही उनकी तरह अपने लाभ और कल्याण की बात सुनते और मानते हैं।
वे अपनी मंद बुद्धि के कारण अनुचित वस्तुओं और बातों में अटके रहते हैं। वे धार्मिक बनने के बदले धर्म पुस्तकों के शब्दों में अटक जाते हैं। उन पुस्तकों को पढ़ते और रटते हैं पर न उनके उपदेशों को समझते हैं और न उन पर चलते हैं।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️🙏🙏
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