**राधास्वामी!! 09-04-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) आरत गाँउ स्वामी अगम अनामी।
सत्तपुरुष सतगुरु राधास्वामी।।
-(सब हंसन मिल आरत गाई। समरथ सब को लिया अपनाई।।) (सारबचन-शब्द- पहला-बचन-30-पृ.सं.566,567)
(- पिंडरा (pindra) ब्राँच-138-उपस्थिति!)
(2) गुरु प्यारे की सरनी जो जन आय।।
टेक।। सतसँग में गुरु लेहिं लगाई।
अमृत रुपी बचन सुनाय।।-
(राधास्वामी मेहर करें फिर अपनी। इक दिन दें निज धाम लखाय।।)
(प्रेमबानी-3-शब्द-20-पृ.सं.24)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे.भा. मेलारामजी फ्राँस)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल से आगे-( 61)
-8 जुलाई 1941 को शाम के सत्संग में हुजूर ने फरमाया- अंग्रेजी में एक कहावत है- "An ounce of practice is better than a ton of precept" यानी अगली कार्रवाई का एक औंस एक टन वजन और बातों के सुनने से बेहतर है। इससे यह नतीजा निकला कि यदि किसी शख्स ने एक औंस भक्ति रीति की कमाई की तो वह बचन सुनने से 35, 840 गुना बढ़ कर है। यदि 35,840 बचनों में से एक वचन पर भी अमल किया गया, तो यह बहुत अच्छा है वरना यह समझना चाहिए कि सारी कोशिश बेकार गई।
यह कहावत जो इस समय आपके सामने पेश की गई, पुराने बुजुर्गों से सुनने में आई है । अब जानने की बात यह है कि हम में से किस किस ने इस कहावत के अनुसार अमल किया? कल जिस दिन की गैर हाजिरी के बाद जब मुझे यहाँ आपके पास बैठने का अवसर प्राप्त हुआ तो मुझे देखने में से यह ज्ञात हुआ कि हममें से बहुत थोड़े सतसँगी ऐसे हैं जिन्होंने पिछले बचनों या पोथी में लिखी हुई हिदायतों पर अमल किया
। मुझे इस बात का अधिकार प्राप्त है कि मैं आप से इस समय यह पूछूँ कि कल के सत्संग के समय आपने कौन सी बातें इस भक्ति रीति के बारे में ग्रहण की।
मुझे कल की हालत देखकर कुछ खेद और दुख भी हुआ क्योंकि कल जो बचन 'सत्संग के उपदेश' भाग 2, से "भक्ति महात्त्म्य " शीर्षक का पढा गया था उसमें भक्ति रीति पर चलने की खास हिदायतें दी गई थी। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:-
हे हजारों बाहों वाले विराट स्वरूप ! मैं दोबारा आपको मुकुट धारण किए और हाथों में गदा और चक्र लिये देखना चाहता हूँ। कृपा करके अपना चतुर्भुज रूप फिर से धारण कीजिये।
😁 श्री कृष्ण जी ने कहा- हे अर्जुन ! मेरी कृपा से इस उत्तम रूप के देखने का सौभाग्य तुम्हें प्राप्त हुआ - यह तेजोमय (रोशन ), विराट, बेअन्त और आदि है , जो योग- शक्ति से प्रकट किया गया है और जो सिवाय तुम्हारे किसी ने नहीं देखा । मनुष्य इस स्वरूप का दर्शन न यज्ञ से, न वेदों से, न दान पूण्य करने से,न क्रियाओं से, न उम्र तप से,न स्वाध्याय से प्राप्त कर सकता है। हे
कौरवों में श्रेष्ठ! यह केवल तुम्ही को देखना नसीब हुआ है । यह रूप देख कर मत घबराओ और मत किसी तरह का डर मानो। दिल के खौफ दूर करो और खुशी मनाओ। लो। मैं फिर तुम्हे पुराना स्वरूप दिखालाता हूँ।
संजय कहता है कि कृष्ण जी ने यह बचन कह कर अपना पहला प्यारा मनुष्य रूप धारण कर लिया और अर्जुन के भय से व्याकुल चित्त को शांत किया।
【50】 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुज़ूर महाराज
- प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे:
- अब विचारना चाहिये कि सच्चे परमार्थी को किस कदर जरूरत अपने मन और इन्द्रियों की संभाल की है। इसी का नाम निरख और परख है। निरख से ये मतलब है कि अपने मन और इन्द्रियों की चाल पर नजर रक्खें और परख यह कि जब वे गैरवाजिब या नामुनासिब या गैर-जरूरी और फ़जूल कामों या ख्यालों या चीज़ों या बातों में लगे, तो उसी वक्त उनको उस तरफ से हटाकर मुनासिब और फायदेमंद काम और ख्याल में लगावे। बहुत से इल्मवाले लोग भी अपना बरताव और व्यवहार बहुत सम्हाल के साथ रखते हैं और अपना वक्त फ़जूल कामों या बातों में खर्च नहीं करते।
फिर परमार्थी पर तो उनसे भी ज्यादा फर्ज है कि अपने वक्त की सम्हाल रक्खें कि बेफायदा खर्च न होवे और अपने मन और इंद्रियों पर भी रोक रक्खें कि नामुनासिब और फजूल कामों और बातों के तरंग न उठावें। तब कोई दिन के इस किस्म के अभ्यास से वह अपने मन और इन्द्रियों की सच्ची और पूरी चौकीदारी और सम्हाल कर सकेगा और फिर परमार्थ का गहरा फायदा हासिल करता जावेगा।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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