**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1
-( 60)- 23 जून 1948
को प्रेमी भाई बाबा बंदगी दास के चोला छोड़ जाने पर हुजूर की आज्ञानुसार मौज से एक शब्द निकाला गया-
सूरत सरकत पार,-वार त्याग देही तजत।
घट का घोर सुनाय, रात दिवस लागी रहत ।।
(सारबचन, बचन 36, शब्द 15)
हुजूर ने एक और शब्द मौज से निकलवाया-
सतगुरु प्यारे ने सुनाई, घट झनकारी हो।।
( प्रेमबानी, भाग 3, बचन 12(4) शब्द 2)
इसके बाद हुजूर ने फरमाया- यदि किसी मनुष्य ने दयालबाग में रह कर सतसँगियों को आराम पहुँचाया तो उसमें बाबा बाबा बंदगीदास का नाम अव्वल है। हमको प्रसन्नता है कि हममें से एक और सुरत इस संसार के बंदी ग्रह से छूट कर कुल मालिक के चरणो में वापस चली गई।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]
- कल से आगे:-
अगर मैंने आप की महिमा (बुजुर्गी) से अनजान रहते हुए मोहब्बत के जोश में लापरवाह होकर और आपको सिर्फ मित्र समझकर बेअदबी से "हे कृष्ण, "हे यादव,"हे मित्र" कह कर पुकारा यह दिल्लगी में, खेल कूद में, आराम के वक्त , उठते बैठते या खाते पीते, एकांत में या दूसरों के सामने कुछ अनुचित वाक्य मेरी जबान से निकल गये तो हे यह प्रभु! हे अनंत! मेरे वे सब अपराध क्षमा करें।
हे सब लोको के और सब चर और अचर पदार्थों के पिता पूजने के योग्य परमगुरु! हे अतुल प्रताप वाले! तीन लोक में आपके बराबर ही कोई दूसरा नहीं है फिर आप से बढ़कर कौन हो सकता है? हे मेरे प्रभु! आपकी प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए मैं झुक कर आपके चरणों में गिरता हूँ।
जैसे पिता पुत्र से, मित्र मित्र से, प्रेमी प्रीतम से निभाता हूं आप मेरे साथ निभायें।आज मैंने वह कुछ देख लिया है जो आज से पहले किसी के देखने में नहीं आया । इस से मेरा दिल बाग बाग हो रहा है लेकिन साथ ही मारे डर के बैठा जाता है।
इसलिए हे भगवान्! अपना पहला स्वरुप फिर से प्रकट करें। हेे देवों के देव ! जगत की शरण! मेरे हाल पर रहम करें
【45】
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 2-
कल से आगे:- (6)-
इसी वास्ते सच्चे प्रमार्थियों ने खौफ़ और रंज और फिक्र को वास्ते इलाज अपने मन की बीमारी के मुकद्दम(जरूरी) रक्खा है ।
बल्कि बाजों ने अपने मालिक से आप यह बात माँगी है कि किसी किस्म की बीमारी यानी रोग और किसी किस्म की चिंता उनको जरूर बख्शिश होवे कि उसके सबब से उनका मन किसी कदर दुबला और कमजोर रहा आवे और भोगों में बहुत चंचलता न करें। संतों ने डर की महिमा इस तौर करी है:- दोहा:-
डर करनी डर परम गुरु, डर पारस(पारस पत्थर) डर सार(असली वस्तु)। डरत रहें स़ो ऊबरे(बच जाता है), गाफिल खाई मार ।।और रोग और सोग और चिंता की निस्बत ऐसा कहा है:-
रोगी सद जीवत रहे, बिन रोगहि मर मर जाय।।
सोगी(दुखी) नित हर्षत रहे, बिन सोग चौरासी जाय।।
चिंता में जो नित रहे, सो मिले अचिंते(अचिंत पुरुष) आय।।
खुलासा यह है कि जो अपने मन को चिंता में परमार्थ के रक्खेगा और सच्चे मालिक और सतगुरु की अप्रसन्नता का खौफ दिलाता रहेगा और अपने प्रीतम के बिछड़ने यानी जुदाई का सोग और रंज उसके मन में जब तब पैदा होता रहेगा और दुनियाँ और अपने मन की बीमारी का हाल देखकर सुस्त और उदास होता रहेगा, वही शख्स जल्दी मन और इंद्रियों को काबू में लावेगा और परमार्थ का असली फायदा उठावेगा।।
और चंचल मन हमेशा धक्के खाता रहेगा, क्योंकि उसको दरबार में दखल नहीं मिल सकता और रास्ते ही में से काल और माया उसको उसकी चाह के मुआफिक अनेक तरह की तरंगे उठवा कर गिरा देंगे ,
यानी नीचे की तरफ को वापिस कर देंगे और उसके चढ़ाई नहीं होने देवेंगे ।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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