मन रे तू ना भटक ---केवल एक में अटक*/ प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
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जो भी ऋषिवर के आश्रम मॆ सच्ची श्रद्धा और पूरे विश्वास के साथ गया शायद वो कभी खाली हाथ नही लौटा !
ऐसे ही एक दिन एक सुन्दर आत्मा ने आश्रम मॆ प्रवेश किया और ऋषिवर को प्रणाम करने के बाद दोनो की वार्ता शुरू हुई !
राहगीर - हॆ देव मॆ बड़ी उलझन मॆ हूँ की मै किसकी साधना करू और किसकी नही मेरा मन कभी किसे पूजे कभी किसे पूजे ! कभी कभी डर लगता है की एक को पुजु तो कहीँ दूसरा नाराज़ नही हो जाये !हॆ देव क्या किसी एक को चुनना जरूरी है ?
ऋषिवर - तुम्हारा प्रश्न अतिसुन्दर है बेटा !
बेटा जो उलझन आज तुम्हारे सामने है वो तो कइयों के जीवन मॆ आती है ! अच्छे अच्छों के जीवन मॆ आ जाती है !
राहगीर - हॆ देव क्या आप के जीवन मॆ भी आई ये उलझन ?
ऋषिवर - हाँ वत्स ! बिल्कुल जैसै तुम गुजर रहे हो कभी मै भी गुजरा ! हम दो शिष्य गुरुकुल मॆ रहते थे एक दिन गुरुदेव ने हमें कहा आप दोनो को 7 दिन का समय देता हूँ आप दोनो 50 फिट गड्डा खोदना और जो पानी निकले उसमे से एक लौटा जल मुझे लाकर देना ! हम दोनो को अलग अलग दिशा मॆ भेज दिया !
7 दिन बाद हम दोनो आश्रम मॆ पहुँचे मेरा लौटा खाली था और मेरे मित्र का लौटा भरा हुआ था !
जब गुरुदेव ने मुझसे पुछा तो मैने कहा हॆ गुरुदेव मैने तो 100 फिट जमीन खोदी पर पानी मिला नही !
गुरुदेव अंतर्यामी थे वो सब जानते थे फिर उन्होने मुझे प्यार से समझाया !
गुरुदेव - देखो वत्स तुमने दस जगह गड्डे खोदे इसलिये पानी नही मिला और तुम्हारे मित्र ने सारी ताकत एक जगह लगा दी और इसे 50 फिट पर ही पानी मिल गया !
सारा जगत उसी का रचाया हुआ है सब उसी की माया है
अलग कॊई नही है पर अन्तर्मन मॆ एक छवि जरूरी है ! जब आँखो को बँद करे तो बस केवल वही एक छवि दिखे ! आदर सभी का करना कभी किसी का अनादर मत करना ! एक निष्ठा बहूत जरूरी है पर उदारवादी बनना संकीर्ण नही , क्योंकि उदारता ही जीवन है और संकीर्णता ही मृत्यु ! जैसै बेइंतिहा प्रेम सिर्फ एक से होता है बस उसी तरह से अन्तर्मन मॆ सिर्फ एक हो ताकि हम कह सके
"अनन्त गहराई मॆ मै और सिर्फ मेरा ईष्ट"
दीक्षागुरू एक होते है पर शिक्षागुरू अनेक हो सकते है !
और घबराना मत नाराज़ कॊई न होगा सब एक ही माया है !
भजन सभी के गा , नतमस्तक सभी के आगे हो आदर सभी का कर पर साध एक को ! जैसै अर्जुन को लक्ष्य भेदन मॆ सिर्फ पक्षी की आंख दिखी बस तु भी अर्जुन बन जा फिर देख आयेगा जीवन का असली मजा !
राहगीर - मै किसे बिठाउ अन्तर्मन मॆ ?
गुरुदेव - बेटा इसके लिये तु पूरी तरह से स्वतंत्र है , जो तुझे सबसे ज्यादा भाये , आँखो को बन्द कर के देखना जो सबसे पहले दिखे बस उसी छवि को बिठा ले अपने अन्तर्मन मॆ ! पर आदर सब का करना सब एक ही माया है !
बस उसी दिन से भजन सभी के गाते है नाम सभी का लेते है पर अन्तर्मन मॆ बस एक छवि को ही रखते है !
राहगीर - मै आपको कौटि कौटि सादर प्रणाम करता हूँ नाथ अब मै समझ गया की मुझे क्या करना है !
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