**राधास्वामी!!13-04-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) लगाओ मेरी नइया सतगुरु पार। मैं बही जात जग धार।।-(मेहर से पहुँची दसवें द्वार। राधास्वामी दीन्ही पार उतार।।) (सारबचन-शब्द-20-पृ.सं.656-राजाबरारी ब्राँच- अधिक्तम उपस्थिति-119)
(2) गुरु प्यारे के सँग चलो घर की ओर।।टेक।। इस नगरी में सुख नहिं चैना। भाग चलो सब बंधन तोड।।-(राधास्वामी मेहर से जाय भौ पारा। काल करम का माथा फोड।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-24-पृ.सं.27)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2)अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।
।(प्रे. भां. मेलारामजी-फ्राँस!) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
-भाग 1- कल से आगे-
इस समय इस विषय को जितनी व्याख्या के साथ बयान किया जा सकता था कर दिया गया है। जो बात इस समय आपके सामने पेश की गई, यदि आप उस व्याख्या के प्रकाश में कल के अनुभव को देखें तो आप ही बतलाइये कि कल की मुलाकात अगर व्यर्थ नहीं हुई तो क्या हुई?
पिछले सालों में हमने जो देखा, पढ़ा या सुना, यदि वह शिक्षा हमारे शरीर के रग व रेशे में समा गई है और यदि उसने हमारे स्वभाव में शुभ परिवर्तन कर दिया है तो उसका सबूत लिए होना चाहिए कि यदि डॉक्टर साहबान हमारे शरीर में कहीं नश्तर लगावे और खून निकाल कर जांच करें तो वह देखें कि खून के एक सेल में सिवाय भक्ति रीति के और कोई चीज मौजूद नहीं है।
यदि बरसों से सत्संग के अंदर हाजिरी देने और गुरु महाराज के चरणों में बैठकर सत्संग करने से इतनी भी भक्ति रीती की कमाई नहीं की तो हमारी राय में ऐसे सत्संगियों ने सत्संग से कोई लाभ नहीं उठाया। उन्होंने दूसरों के लिए कोई उदाहरण पेश नहीं किया।
हम सबको भक्ति रीती से तभी लाभ हो सकता है जब कि हमारे हर काम और हर ढंग में सिवाय भक्ति रीति के और किसी अंग का बिल्कुल इजहार न हो। इस बात के वर्णन करने का जो मेरा उद्देश्य है, वह प्रकट है।
मैंने इस समय यह समाखराशी( बातचीत) इसी मतलब के लिए की कि मेरी बात कहने का असर अगर अधिक लोगों पर नहीं तो कुछ लोगों पर अवश्य पड़ेगा। विश्वास है कि वह इससे अवश्य लाभ उठावेंगे।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:-
और अगर तुम इसके लिए भी ताकत नहीं रखते तो मेरी शरण का आसरख लो और अपना मन बस में लाकर सब तरह के कर्मफल का त्याग करो। निःसंदेह ज्ञान का दर्जा अभ्यास से ऊँचा है और ध्यान का ज्ञान से कर्मफल का त्याग ध्यान से श्रेष्ठ है क्योंकि फल के त्याग से शांति प्राप्त होती है।
जिस मनुष्य के दिल में किसी के लिए नफरत नहीं है, जो ममता (चीजों में दिल की पकड़) और अंधकार से रहित है और सुख दुख से सम्मानचित्त( एकसा) रहता है, सबके साथ मित्रभाव व दया भाव से बर्तता है और क्षमा करने वाला है, जो हमेशा संतुष्ट अंतर में जुड़ा हुआ, आपे पर काबू हासिल किये, मजबूत इरादे वाला और मन व बुद्धि को मेरे अर्पण किये है, ऐसा मेरा भक्त मुझे दिल से प्यारा है।
जिससे न तो दुनिया को किसी प्रकार की घबराहट होती है और न ही जो दुनिया से किसी तरह घबराता है और जो हर्ष, क्रोध और भय के असरों से आजाद है, वह मुझे दिल से प्यारा है।
【 15 】
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेमपत्र- भाग 2- कल से आगे:-( 5)-
अपनी बिरादरी से भी राधास्वामी मत के सत्संगी को जहाँ तक मुमकिन होवे ऐसी होशियारी और सम्हाल के साथ बर्ताव करना चाहिए कि जिस में कोई झगड़ा और बखेड़ा पैदा न होवे और न किसी से दुश्मनी या अदावत कायम होवे। हर जगह और हर हालत में दीनता यानी नियाजमंदी बड़ा भारी असर वाला औजार काम देने के वास्ते सत्संगी के पास मौजूद रहता है ।
जहाँ जैसा मौका और मुनासिब देखें, वहाँ उसी मुआफिक की कार्रवाई करें और बेपरवाही और धमकी और सख्ती के बचन किसी से या किसी की निस्बत जबान से निकालना मुनासिब नहीं।
इसमें नाहक तकरार और फिसाद खड़ा होता है और सत्संगी को फिसाद और झगड़े को हमेशा जहाँ तक मुमकिन होवे बचाना चाहिए, ताकि उसके परमार्थ में खलल और नुकसान न आवे। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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