Thursday, December 2, 2021

सूर्यदेव मंदिर देव और छठ का संबंध

 

प्रस्तुति - विक्की राजपूत



कहा जाता है कि देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।


इस मंदिर में छठ करने का अलग ही महत्व है. कहा जाता है कि यहां भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विराजमान हैं. पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है. मंदिर के गर्भ गृह में भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में विराजमान हैं. गर्भगृह के मुख्य द्वार पर बाईं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा है और दायीं ओर भगवान शंकर के गोद में बैठी प्रतिमा है।

ऐसी प्रतिमा सूर्य के अन्य मंदिरों में देखने को नहीं मिलती है. छठ पर्व के दौरान यहां भव्य मेला लगता है. हर साल पूरे देश से लाखों श्रद्धालु यहां छठ करने आते हैं. मान्यता है कि जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. छठ के दौरान इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था और बढ़ जाती है।

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