राधास्वामी!
07-12-2021-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-
उमँग मेरे हिये अंदर जागी।
हुआ मन गुरु चरनन रागा ॥ १ ॥
बचन सुन हिरदे बाढ़ी प्रीति ।
शब्द की आई मन परतीत ॥ २ ॥ दरश गुरु करूँ सम्हार सम्हार ।
मगन होय पिऊँ अमी रस धार ॥ ३ ॥ हुआ मोहि गुरु भक्ती आधार ।
पंथ गुरु चलूँ बिचार विचार ॥ ४ ॥
गुरू मोहि दई प्रेम की दात ।
गाऊँ गुन उनका दिन और रात ॥ ५ ॥
चलो हे सखियो मेरे साथ ।
गुरू का पकड़ो दृढ़ कर हाथ ॥ ६ ॥
करो तुम सतसँग मन को मार जगत की तजो बासना फाड़ ॥ ७ ॥
सुरत से करो शब्द का खोज।
निरख घट अंतर मारो चौज ॥ ८ ॥
गुरू ने मोहि दीना भेद अपार ।
देखती घट में अजब बहार ॥ ९ ॥
सराहूँ छिन छिन भाग अपना ।
गुरू ने मेट दिया तपना ॥१० ॥
जगत का फीका लागा रंग ।
जगत हुए मन माया दोनों तंग ॥११ ॥
काल का करज़ा दिया उतार ।
करम का उतर गया सब भार ॥१२ ॥
हुई गुरु चरनन दृढ़ परतीत ।
दीनता धारी बाढ़ी प्रीति ॥१३ ॥ छोड़ दिया मन ने जग ब्योहार ।
भोग सब हो गये अब बीमार ।।१४ ।। मेहर बिन कस पाती यह दात ।
जगत में बहती दिन और रात ॥१५।। कभी नहिं मिलता यह आनंद ।
काल ने डाले थे बहु फद ।।१६।।
लिया मोहि गुरु ने आप निकाल।
काट दिये माया के सब जाल ॥ १७ ॥
कहूँ कस महिमा सतसँग गाय ।
भाग बिन कैसे यह सुख पाय ॥१८ ॥ पड़ी थी जग में निपट अजान ।
गुरू ने संग लगाया आन ॥१९॥
शुकर उन कस कस करूँ बनाय । कहन और लेखन में नहिं आय ॥ २० ॥ सुरत मन नभ पर पहुँचे धाय ।
शब्द धुन घंटा संख बजाय ॥ २१ ॥
सुना त्रिकुटी में भारी शोर ।
गरज और मिरदँग बजते घोर ॥२२ ॥
सुन्न में पिया अमीरस धाय ।
बाँसरी सुनी गुफा में जाय ॥२३ ॥
बीन धुन सतपुर में जागी ।
अलख लख अगम सुरत लागी ॥२४ ।।
दरश राधास्वामी पाया आय ।
प्रेम और उमँग रहा हिये छाय ॥ २५ ॥
आरती सन्मुख धारी आय ।
चरन राधास्वामी हिये बसाय ॥ २६ ॥
हुए राधास्वामी आज दयाल ।
सरन दे मुझको किया निहाल ॥ २७ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-8- पृ.सं.242,243,244,245)*
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