**राधास्वामी!
10-12-2021-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-
चरन गुरु बढ़त हिये अनुराग ।
बासना जग की दीन्ही त्याग ॥ १ ॥
गुरू मोहि दीन्हा परम सोहाग ।
सुरत रही छिन छिन धुन रस लाग ॥ २ ॥ दया मोपै बिन माँगे अस कीन ।
दरश मोहि घट में निस दिन दीन ॥ ३ ॥
कहूँ क्या महिमा राधास्वामी गाय | सुरत मेरी चरनन लीन लगाय ॥ ४ ॥
पड़ी थी निर्बल भव के कूप ।
दिखाया मुझको अचरज रूप ॥ ५ ॥
चढ़ाया मुझको नभ के पार ।
दिखाई घट में अजब बहार ॥ ६ ॥
रहे मन इंद्री थक कर वार ।
सहज में पाया गुरु दीदार ॥ ७ ॥
छुड़ाये मन के सभी बिकार ।।
करम मेरे काटे सब ही झाड़ ॥ ८ ॥
कहूँ कस महिमा दया अपार ।
लिया मोहि अपनी गोद बिठार ॥ ९॥
नहीं कोइ करनी मैंने कीन ।
नहीं कोई सेवा मुझ से लीन ॥१० ॥
नहीं कोई बचन सुने मैं आय ।
नहीं मैं दरशन सन्मुख पाय ॥११ ॥
कुटुंब सँग घर में रही लिपटाय ।
वहीं मोपै किरपा करी बनाय ॥ १२ ॥
सुरत रहे निस दिन रस माती ।
दरश नित हिये अंतर पाती ॥१३ ॥
शब्द सँग करती नित्त बिलास ।
देखती घट में अजब उजास ॥१४ ॥
तड़प हिये उठती बारंबार ।
करूँ मैं सतसँग गुरु दरबार ॥ १५ ॥
चरन में बिनती करू बनाय ।
देव मोहि दरशन पास बुलाय ॥१६ ॥
करूँ मैं आरत सन्मुख आय ।
शुकर कर चरनन माथ नवाय ॥१७ ॥ करो मेरी अभिलाषा पूरी।
सुरत रहूँ सँग कोई दिन तज दूरी ॥१८ ॥
पाऊँ सतसँग का परम बिलास ।
शब्द का देखूँ घट परकाश ॥१९ ॥
सुरत तब चढ़े गगन पर धाय ।
जोत लख गुरु पद परसे जाय ॥२० ॥
सुन्न में तिरबेनी न्हावे।
गुफा चढ़ मुरली धुन पावे।।२१।।
सुने धुन बीना सतपुर आय ।
अलख लख अगम का दरशन पाय।।२२ ।।
चरन राधास्वामी कर दीदार ।
रहूँ मैं दम दम चरन अधार ॥२३ ॥
दया बिन नहिं पावे यह धाम ।
चढ़े नहिं विन डोरी निज नाम ॥ २४ ॥ llमेहर कर राधास्वामी दिया बिसराम।
सरन में उनके रहूँ मुदाम।।२५।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-09-पृ.सं.245,246,247, 248)**
🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿
No comments:
Post a Comment