**राधास्वामी!
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मन रे क्यों माने नाहिं ,
जग सँग क्या लेना।।टेक।।
या जग के सकल भोग ।
जानो सब असाध रोग ।
स्थिर कोई नाहिं होग ।
गुरु चरनन चित देना ॥१॥
धन सम्पति और कुल कुटुम्ब ।
स्वारथ के सब ही संग ।
भक्ती में करें भंग ।
इन सँग नहिं बहना ॥२॥
सतसँग की क़दर जान ।
सतगुरु सँग करो आन।
सहज सहज कर पिछान ।
सीस चरन देना ॥३॥
शब्द जुगत यह सबका सार ।
नित्त कमाओ धर के प्यार ।
घट में लख बिमल बहार ।
नित्त मगन रहना ॥४॥
राधास्वामी सरन धखर।
परखो उन दया अपार।
भौजल के जाव पार ।
फिर दुख सुख नहिं सहना ॥५॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-13-पृ.सं.235,236
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