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डॉ. धनंजय सिंह
बहुत देर से बंद है नीली झील का हिलना
और पंख फडफडाना बत्तखों का
चप्पुओं की छपछपाहट भी नहीं!
बहुत दिनों से यहाँ कुछ भी नहीं हुआ
स्नान से लेकर वस्त्र-हरण तक!
हुआ है तो सिर्फ बंद होना
नीली झील के पानी की थरथराहट का
या फिर और भी नीले पड जाना
झील के काईदार होंठों का!
बढते चले गये हैं सेवार-काइयों के वंश
और आदमी
कभी फिसलन से डरता रहा है, कभी उलझन से !
वक्त गुजरा
एक बेल चढ गयी थी एक वृक्ष पर
उससे लिपटती हुई!
फिर, दरख्त बेल हो गया था और बेल दरख्त!
सिर दोनों का ही ऊँचा था अपने घनेपन
अपने रंग और अपनी छाया के साथ!
पर अचानक एक हादसा हुआ था
और पेड या बेल या फिर बेल और पेड
गायब हो गये थे झील के तट से
और झील के नीले दर्पण में
छायाएँ सो गयी थीं अनाकारित होकर!
उसके बाद बहुत देर से बंद है
नीली झील का हिलना और पंख फडफडाना बत्तखों का!
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