*🌹🌹कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*
*मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥2।।*
*(भगवद गीता, अध्याय II, श्लोक 47)*
*आपको अपना निर्धारित कर्तव्य निभाने का अधिकार है, लेकिन आप कर्म के फल के हकदार नहीं हैं।*
*अपने कार्यों के परिणामों का कारण स्वयं को कभी न समझें, और कभी भी अपने कर्तव्य को न करने में आसक्त न हों।-*
*{भगवद गीता, अध्याय II, श्लोक 47}*
*◆◆मिश्रित शब्द पाठ◆◆*
*हे दयाल सद कृपाल (हिन्दी )- हे दयाल सद् कृपाल । हम जीवन आधारे॥१॥ सप्रेम प्रीति और भक्ति रीति । वन्दे चरन तुम्हारे ॥२॥ दीन अजान इक चहें दान । दीजे दया विचारे॥३॥ कृपा दृष्टि निज मेहर वृष्टि । सब पर करो पियारे ॥४॥ संस्कृत हे दयालुः सद् कृपालुः । मम जीवनाधारे ॥१॥* *सप्रेम प्रीतिभक्तिरीतिश्च । बंदे चरणं तुभ्यम्॥२॥ दीनाज्ञानं एक इष्टं दानं । देयम् दयादृष्टिं निःस्वः।।३॥ कृपादृष्टि : निज आशीर्वृष्टिः । प्रियवर : सर्वेभ्यो : करणीयं॥४॥◆◆*
*राधास्वामी रक्षक जीव के! (हिन्दी)-
राधास्वामी रक्षक जीव के , जीव न जाने भेद । गुरु चरित्र जाने नहीं , रहे कर्म के खेद ॥ खेद मिटे गुरु दरस से , और न कोई उपाय | सो दर्शन जल्दी मिलें , बहुत कहा मैं गाय॥* *(संस्कृत)-राधास्वामी रक्षक : जीवस्य जीवेन न भेदं ज्ञातः॥ गुरुचरित्रं न ज्ञातं कर्मदुःखसंलग्नाः।। दुःखं दूरं भवेत् गुरुदर्शनेन न को s पि उपायाः।। तब दर्शनं शीघ्रं भवेत् बहुशः मया कथितम् ।। ◆◆*
*गुरु धरा सीस पर हाथ (हिन्दी)- गुरु धरा सीस पर हाथ । मन क्यों सोच करे || गुरु रक्षा हरदम संग । क्यों नहिं धीर धरे ॥ गुरु राखें राखनहार । उनसे काज सरे ॥ तेरी करें पच्छ कर प्यार । बैरी दूर पड़े ||* *संस्कृत:- गुरोर्हस्तविराजितशिरसि , व्यर्थचिंता किमर्थं कुर्यात् ।। गुरुरक्षा प्रतिपल साकं , कथं न धैर्य धारयेत् ।। गुरुरक्षक : रक्षयत्यस्मान् , नियंता सत्कार्याणाम् ।। तवपक्षे स्नेहं कुर्यात् , • भवन्तु दूरं वैरिगणाः ।।◆◆*
*तमन्ना यही है (हिन्दी)- तमन्ना यही है कि जब तक जीऊं । चलूं या फिरूं या कि मेहनत करूं ।। पढूं या लिखूं मुँह से बोलूं कलाम । न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम || जो मर्ज़ी तेरी के मुवाफिक न हो । रज़ा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो ।। संस्कृत | अभिलाषा इयमेव यावत् जीवेम । चलेम भ्रमेम सोद्यमभवेम ।। पठेम लिखेम सुवाक् वा वदेम न कुर्याम को s पीदृशं कार्यमेव ।। तवेप्सितविरुद्धं च यदपि भवेत् । भवतः स्वीकृत्याः प्रतिकूलं भवेत् ।।◆◆* *तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो । कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो। चढ़ आये कभी जो दुख की घटा या पाप कर्म की होय तपन्त। तेरा नाम रहे मेरे चित्त बसा तेरी दया व मेहर की आस हो।।* *यह काम जो हमने है सिर लिया करें मिलके हम तेरे बाल सब। तेरा हाथ हम पर रहे बना तेरी दया व मेहर की आस हो।।* *तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो। कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो।। संस्कृत:-* *तव चरणयो : प्रिय : हे पितः ! मम ईदृशदृढ़ विश्वास भव यत् मनसि मम सर्वदा सहायः । तव मेहरदययोः विश्वासः भव ।। आरुह्य कदापि यत् दुःखस्य घटा वा पापकर्मण : ज्वलनम् भव ।। तव नाम भव मम चितावासः । तब मेहरदययोः विश्वासः भव ।। कार्यमेतत् अस्माभिः शिरसि धृतम् ।कुर्मः मिलित्वा तव बालाः वयम् ।। तव हस्तयोःअस्मासु सर्वदा भव तव मेहरदययोः विश्वासः भव ।।◆◆* *मेरे तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई। सबके तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई।। राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से जनम सुफल कर ले।।🌹🌹*
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