**राधास्वामी!! 03-04-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) राधास्वामी झूलत आज हिंडोला। गगन मँडल धुन अद्भुत बोला।।-(धूम मची अब अमर नगर में। झूलत राधास्वामी बैठ अधर में।।) (सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.856,857-बोलारम-(हैदराबाद) ब्राँच-144-उपस्थिति।।)
(2) गुरु प्यारे की छबि पर बल बल जाउँ।।टेक।। रूप अनूप देख हरखानी। सोभा वा की कस कह गाउँ।।-(दया करो राधास्वामी गुरु प्यारे। मैं अब राधास्वामी राधास्वामी गाउँ।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-14-पृ.सं.20)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
-भाग 1- कल से आगे-( 58)- 8 जून 1941
को शाम के सत्संग में हुजूर ने फरमाया- कुछ दिन हुए पुरुषों व स्त्रियों से यह पूछा गया था कि यदि उनके घर का कोई आदमी, संतान, प्यारा आदि गुजर जाय तो क्या वे उस दुःख को बिना शोक प्रकट किए सहन करेंगे या नहीं। उस समय इस प्रश्न के उत्तर अलग-अलग दिए गये थे ।
जैसे की औरतों की तरफ से यह कहा गया था कि उनको थोड़ा शोक तो अवश्य होगा परंतु इस समय एक दूसरा प्रश्न उपस्थित है और वह यह है कि यदि बच्चे पैदा होते ही माताओं से ले लियें जावें तो उनको कोई एतराज तो न होगा। बाहर दूसरे मुल्कों में वहाँ के लोग अपने मुल्क और जाति की भलाई के लिए जान पर खेल जाते हैं।
चाहे युद्ध क्षेत्र में हों या और किसी क्षेत्र में, वे हर प्रकार के त्याग के लिए तैयार रहते हैं । आप बतलाइये कि क्या आप इसी तरह से वर्तमान मोह व बंधन में फंसे रहना चाहते हैं या नई सलाह पर चल कर नई दुनियाँ देखना चाहते हैं । यदि आप इस समय उत्तर न दे सके तो कोई हर्ज नहीं, यदि उत्तर देने में 1 साल या 2 साल भी लग जायँ तो भी कोई हर्ज नहीं है। परंतु इसका उत्तर आपको अवश्य देना होगा ।
पहले पुरुषों से पूछा जाय कि उनकी क्या राय हैं? सब पुरुषों ने मिलकर कहा कि यह प्रबंध अवश्य होना चाहिए, अवश्य होना चाहिए। हुजूर ने फरमाया कि इस समय आप इस तजवीज को सुनकर हँस रहे हैं, परंतु यह नया ढंग संसारी बँधन और चिंता को दूर कर देगा। जिन मुल्कों में यह ढंग जारी है वहाँ के लोग बड़े देश प्रेमी होते हैं क्योंकि उनको मुल्क के खर्चे पर शिक्षा दिए जाने के कारण माँ-बाप से मोह नहीं होता। इसलिये वे अपने देश को ही अपना माँ-बाप समझते हैं, न उनके माँ बाप को ही उनकी अधिक चिंता रहती है उनको भी अपने माँ-बाप की। अपने देश व जाति की ही सेवा करने में खुशी मनाते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि उनका मुल्क या गवर्नमेंट ही उनकी शिक्षा-दीक्षा, पालन पोषण का ख्याल रखती है इसलिए वे उसके लिए जान देना अपना फर्ज समझते हैं।
जिन मुल्कों में आजकल युद्ध हो रहा है वहाँ के लोग अपनी जान की परवाह नहीं करते। वे अपनी जाति व मुल्क की रक्षा करने के लिए अपने नवयुवकों को मरने के लिए रणक्षेत्र में भेज देते हैं। इसके मानी यह नहीं है कि उनको अपने नवयुवकों को युद्ध में जुझा देने मे आनंद आता है बल्कि इसका कारण यही है कि जिस उद्देश्य से वह लड़ रहे हैं उसको वे अधिक प्रिय समझें हुए हैं और उनकी समझ में मुल्क और जाति की सेवा ऐसा करने से ही हो सकती है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]
कल से आगे:
- मैं देखता हूँ कि आपके बेशुमार बाजू, पेट, मुहँ, और आँखें है। हैं आप सर्वव्यापक और अनन्त रूप वाले हैं। हे विश्वपति! आपके विश्वरूप के न आदि का पता चलता है, न मध्य का और न अंत का। मैं आपको हर जगह से रोशन, रोशनी के समुद्र के समान, मुकुट, गदा और चक्र धारण किए हुए देखता हूँ।
मैं आपको जलती हुई आग की तरह और तेज सूर्य की तरह, जो आस्मान पर चारों तरफ चमक रहा है और आँख जिसके दर्शन की ताब न ला सकती हो, रोशन और अनुमान से परे देखता हूँ। मुझे दरसता है कि आप परम अक्षर पुरुष हैं, जानने के योग्य है, इस विश्व अर्थात सृष्टि के परम भंडार है, नित्य अर्थात अविनाशी, धर्म के सदा एक रस रहने वाले रक्षक है, सनातन पुरुष है। मुझे नजर आता है कि आपका न आदि है न मध्य और अंत।
आप अनन्त सामर्थ्य वाले हैं और असंख्य बाहुओं वाले हैं। सूर्य और चाँद आपकी आँखें हैं। मैं आपके तेजोमय मुख को जलती हुई आग की तरह चमकता देखता हूँ जिसके तेज से समस्त जगत् तप रहा है। आकाश और पृथ्वी के दरमियान अर्थात अंतरिक्ष में और सब दिशाओं में आप ही व्यापक है। आपका यह अद्भुत और भयानक रूप देख कर तीनो लोक काँप रहे हैं ।【20】
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हजूर महाराज
- प्रेम पत्र -भाग
1- कल से आगे
:-( 13)-
संत उस रास्ते और एक से एक विशेष चैतन्य के मंडलों का और फिर महाविशेष चैतन्य के धुर मंडल तक का भेद बताते हैं और फरमाते हैं कि जिस डोरी या धार पर कि सुरत चैतन्य उतरी है( क्योंकि कुल रचना धारों की है, चाहे वे धारें सूक्ष्म से सूक्ष्म है या स्थूल और चाहू नजर आवे या नहीं) उसी डोरी या धार को पकड़ कर अपने निज देश में उलट कर जा सकती हैं।
और मालूम होवे की महाविशेष चैतन्य के मंडल के नीचे जिस कदर रचना के निर्माया और शुद्ध माया और मलिन माया के देश में हुई, वह उस धार अभी जो महाविशेष चैतन्य के मंडल के नीचे की तरफ से निकली, और फिर किसी किसी का दरकार थी और मंडल बांध कर रखना करती हुई चली आई है फिर वही धार जिसको सुरत कहते हैं और पिंड में उतर कर जागृत अवस्था में जिसका नेत्रों में बासा है, संतों की दया से उनकी जुगत यानी सुरत शब्द योग की कमाई करके, अपने निज देश में पिंड और ब्रह्मांड के परे, उलट कर जा सकती है, और वहाँ पहुँच कर जन्म मरण और दुख सुख से सच्ची रिहाई हासिल कर सकती है । इसी का नाम सच्चा उद्धार हैृ।
और जब तक कि कोई भेद लेकर और अभ्यास करके घर की तरफ नहीं उलटेगा, तब तक खाली बातें बनाने से उसका उद्धार होना किसी सूरत में मुमकिन नहीं है। इसी सबब से बाचक ज्ञानी और सूफ़ी खाली रह गये और पारब्रह्म पद तक की जो ब्रह्मांड में है न पहुँचे।
और संतों का देश तो एक दर्जे उसके ऊपर रहा,जिसका भेद और पता योगी और योगेश्वर ज्ञानियों को नहीं मिला। उसका हाल सिर्फ संतो ने प्रगट किया और जो कोई उनकी सरन लेकर चलना चाहे, वह उनकी दया से उनकी जुगती की कमाई करके पहुँच सकता है।
【 इति समाप्तमँ)
🌹राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय! 🌹 ✌️
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हुजूर राधस्वामी दयाल की दया व मेहर से आज पवित्र पोथी प्रेम पत्र भाग-1
-संपूर्ण हुआ उन दाता दयाल के चरनो में कोटि कोटि प्रार्थना है कि हमसे जाने अनजाने में कुछ भी त्रुटियाँ हुई हो उसके लिए हम नासमझ बालकों को क्षमा करें व अपनी दया और मेहर का हाथ सदा सत्संग जगत के जीवों पर बनाये रक्खें । .
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
No comments:
Post a Comment