Friday, December 31, 2021

रब की रहमत का साधन / सिन्हा आत्म स्वरूप

 जिस रूह को मुर्शिद एक बार अंदर अनहद-शब्द का दिव्य संगीत सुना देता है, उस रूह के अंदर सतलोक वापस जाने की विरह जाग्रत हो जाती है, परमात्मा खुद मुर्शिद या पूर्णगुरु के रूप में अगमलोक से अपने प्यारों की संभाल करने इस देश में आता है, वही रब की रहमत का साधन है

मृत्यु के बाद गति / आत्म स्वरूप

 Hindu mythology


मृत्यु के बाद गति



1. प्रश्न- मृत्यु क्या है?


उत्तर- यों तो मृत्यु कोई वस्तु नहीं है, केवल स्थूल देहसे जीवात्मा का सम्बन्ध भर छूटता है। आत्मा नित्य अजर-अमर है, वह मरता नहीं और पंचभूत अपने-अपने तत्त्व में मिल जाते हैं।


2. प्रश्न- मृत्यु के बाद साथ क्या जाता है? 


उत्तर- अपने कर्म-संस्कार ही साथ जाते हैं।


3. प्रश्न- सुनते हैं कि जीव दूसरे शरीर का निश्चय होनेपर पहले शरीर को छोड़ता है और जीव कर्मफल भोगने के लिये नरक, स्वर्ग या पितृलोक में जाता है तब इसका तात्पर्य क्या है ?


उत्तर- यह शरीर पृथ्वी प्रधान है, स्वर्गादि देवलोकों का तेजः प्रधान एवं पितृलोक का वायु प्रधान होता है। यहाँ मृत्यु होते ही जीव को एक आधार शरीर मिल जाता है, उसे ‘अतिवाहिक देह’ कहते हैं। इसलिये दोनों बातों में विरोध नहीं रहता।


4. प्रश्न- नरक में इतने भयंकर कष्ट पानेपर क्या वह शरीर मरता नहीं?


उत्तर- ‘अतिवाहिक देह से कर्मानुसार जीव को नरकों में जाना है तो वायुप्रधान यन्त्रणा-शरीर’ मिलता है। जिसमें उसे भीषण यन्त्रणाओं का अनुभव होता है पर मृत्यु नहीं होती।


5. प्रश्न- पितृलोक में जानेवालों का क्या होता है?


उत्तर- पितृलोक के अन्यान्य स्तरों में जानेवाले जीवों को भी वायुप्रधान भोगदेह प्राप्त होते हैं उनमें वे यन्त्रणा न भोगकर पितृलोक के भोग भोगते हैं।

साधन, साधना साधक और सिद्धि -

प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा



   सतसंग,सुमिरन और भजन ,यही परमार्थ के तीन मुख्य अंग हैं। सतसंग परमार्थ का भौतिक स्वरूप है, सुमिरन मानसिक और भजन आत्मिक अंग है। इसमें भजन यानी अभ्यास मुख्य है, क्योंकि सच्चा व पूरा उद्धार आत्मा के खोल उतारने पर सुरत अंग का ही होता है। तन तत्वों मे और मन चिदाकाश यानी ब्रहमाण्डीय मन में लीन हो जाता है और आत्मा; परमात्मा यानी ब्रह्म में लीन हो जाती है।


इस प्रकार रचना के हर स्तर, मण्डल या घाट पर उस स्तर के उद्धार या बंधनो से मुक्ति की कार्यवाही होते हुए सुरत अंग बरामद होता है, जो कि अपने मूल कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरणों में समा कर सच्ची मुक्ति व पूरे उद्धार को प्राप्त होता है और उसी का काज पूरा हुआ।

   सतसंग से बुद्धी की मलीनता घटती जाती है और बुद्धि स्पषट होती जाती है तो वर्तमान कर्म कटते जाते हैं, इस प्रकार जीव जीवन में पहले निष्काम फिर निःकर्म हो जाता हैं।

   सुमिरन से मन निर्मल होता है तो विचार, विकार रहित हो जाते हैं और अंतःकरण अपनी सहज अवस्था में आ जाता है।यही निष्काम अवस्था है।       

   भजन यानी अंतर घट भीतर आदि धुन चैतन्य धार को सुनने से 'प्रारब्ध' कर्म कटते जाते हैं। इस प्रकार जीव प्रारब्ध कर्मों से रहित हो कर, आत्मिक सामर्थ प्राप्त करता है तो एक जीवात्मा-सुरत बन जाती है। यही निःकर्म हो जाना है। 

   यदि *सत्संग में ध्यान न लगे तो बुद्धी विकारों से ग्रसित हो जाती है। *सुमिरन में ध्यान न लगे तो नाम (अंतर धुन) गुप्त हो जाता है और जब तक *भजन में ध्यान न लगे तो शब्द नहीं खुलता। इस प्रकार हम पाते हैं कि , परमार्थ की राह में ध्यान ही मुख्य है। ध्यान साधन है और इसका उपयोग साधना।

   कुछ लोग कहते हैं कि ध्यान नहीं टिकता या मन में उठने वाले विचार नहीं रुकते या कि वर्षों हो गये पर शब्द नहीं खुलता। दरअसल ये वो लोग हैं जो सत्संग तो नियमित रूप से सुनते है पर सत्य संग कभी किया ही नहीं। तो समझ में भी कुछ ना आया, तब भला करनी कैसे बनती...? सुनने मात्र से कल्पनाओं का विकास होता है और सत संग करने से मार्ग पर बढने की सामर्थ व तकनीक प्राप्त होती है। तो ऎसे लोग कल्पपनाओं में ही सारा मार्ग तै कर लेते हैं और सब कुछ रट कर वाचक ज्ञानी बन जाते हैं।

तो सतसंग किया कैसे जाय ?

.....ध्यान दे कर।


क्रमशः

प्रेम से शून्य हैं संसार? ओशो

 स्मरण रहे, चूंकि यह संसार प्रेम से शून्य है, प्रेम से रिक्त है, जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में प्रेम का बिरवा लगता है, चारों तरफ से उसे तोड़ने और नष्ट करने वाले लोग आ जाते हैं। चारों तरफ से! अपने भी पराए हो जाते हैं। मित्र भी दुश्मन हो जाते हैं। कोई यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि तुम्हारे भीतर और प्रेम का पौधा लग जाए। क्यों? क्योंकि तुम्हारा प्रेम का पौधा उनके लिए आत्मग्लानि का कारण हो जाता है। उनके अहंकार को चोट लगती है, उनके अभिमान को भारी घाव पहुंचते हैं। तुम पाने लगे और मुझे नहीं मिला? अभी मैं नहीं पहुंचा और तुम पहुंचने लगे? यह वे बरदाश्त नहीं कर सकते। वे सब तुम पर टूट पड़ेंगे। वे तुम्हारे पौधे को नष्ट करने का हर उपाय करेंगे। तर्क देंगे, खंडन करेंगे, तुम्हें विक्षिप्त कहेंगे, पागल कहेंगे। तुम्हारे मार्ग में हजार तरह की अड़चनें, बाधाएं खड़ी करेंगे। तुम्हारे गुलाब के पौधे पर हजार पत्थरों की वर्षा होगी। सजग होना! जितनी बड़ी संपदा हो उतना ही आदमी को सजग होना चाहिए। कहीं बात बनते-बनते बिगड़ न जाए! बनते-बनते बिगड़ जाती है। बिगड़ना इतना आसान है और बिगाड़ने वाले इतने लोग हैं।


सारा वातावरण प्रेम के विपरीत है; प्रेम का विरोधी है, दुश्मन है, शत्रु है। सारा वातावरण घृणा, वैमनस्य,र् ईष्या से भरा है। प्रेम की यहां जगह कहां? सबके घरों में घास-पात की खेती हो रही है। तुम्हारे घर में गुलाब के फूल खिलेंगे, पास-पड़ोस के लोग बरदाश्त नहीं करेंगे। तुमने अपने को समझा क्या है? गुलाब के फूल बो रहे हो। पहले तो हंसेंगे, पागल कहेंगे और अगर तुम अपनी जिद में लगे ही रहे, अपने संकल्प में भरपूर डूबे ही रहे,. . .नासमझ कहेंगे, दीवाना कहेंगे, हंसेंगे, उपेक्षा करेंगे। लेकिन तुम माने ही नहीं और अपनी खेती में लगे ही रहे और तुमने गुलाबों की खेती करके दिखा ही दी तो जिन्होंने तुम्हें पागल कहा था, विक्षिप्त कहा था, हंसे थे, उपेक्षा की थी वे सब टूट पड़ेंगे। तुम्हारे खेत को नष्ट कर देना चाहेंगे। क्योंकि तुम्हारा खेत इस बात का प्रमाण है कि वे भी जो हो सकते थे, नहीं हुए हैं। और यह कोई भी बरदाश्त नहीं करता कि मैं हार गया हूं कि मैं असफल हूं कि मेरा जीवन एक दुर्घटना है।


फिर उनकी भीड़ है, तुम अकेले हो। वे बहुत हैं, उनकी संख्या है, उनकी सत्ता है, उनकी शक्ति है। बहुत संभलना। बहुत होशपूर्वक चलना। इसीलिए बुद्धों ने संघ बनाए ताकि तुम अकेले न रह जाओ, कुछ संगी-साथी हों। कम-से-कम कुछ ही सही! थोड़ा संग-साथ रहेगा, थोड़ी हिम्मत रहेगी, थोड़ा बल रहेगा। एक-दूसरे को हिम्मत देने का अवसर रहेगा, बिल्कुल अकेले न पड़ जाओगे।


धृग तन धृग मन धृग जनम, धृग जीवन जगमांहि


दूलन प्रीति लगाय जिन्ह, ओर निबाहीं नाहिं


द्वारे तक सावन तो बरसा. है रोज-रोज,


आंगन का बिरवा पर प्यासा ही सूख गया।


देहरी की मांग भरी,


चूनर को रंग मिला।


अनगाए गीतों को,


सांसों का संग मिला।


चढ़ते से यौवन की उमर बढ़ी रोज-रोज,


चाहों का बचपन पर राहों में छूट गया।


द्वारें तक सावन तो बरसा है रोज-रोज,


आंगन का बिरवा पर प्यासा ही सूख गया।


उपवन की सेज सजी,


सोंधी सी रात हुई।


अंगूरी स्वप्न जगे,


पागल बरसात हुई।


हरियाई शाखों में फूल खिले रोज-रोज,


अंकुर सा सपना पर अनब्याहा टूट गया।


द्वारे तक सावन तो बरसा है रोज-रोज,


आंगन का बिरवा पर प्यासा ही सूख गया।


जितनी अंगारों सी,


अंतर की भूख जली।


उतनी पहचान गयी,


द्वार द्वार गली गली।


भिक्षुक-सी ज्वाला को भीख मिली रोज-रोज,


भिक्षा का पात्र किन्तु रीता ही फूट गया।


द्वारे तक सावन तो बरसा है रोज-रोज,


आंगन का बिरवा पर प्यासा ही सूख गया।


परमात्मा रोज बरस रहा है तुम्हारे प्रेम के बिरवे के लिए, मगर तुम कुछ ऐसे बेहोश हो कि सावन रोज-रोज बरसता है फिर भी तुम्हारे आंगन के बिरवे को जल नहीं मिल पाता।


द्वारे तक सावन तो बरसा है रोज रोज,


आंगन का बिरवा पर प्यासा ही सूख गया।


परमात्मा प्रतिपल बरस रहा है, बरसता ही रहा है। उसकी तरफ से कंजूसी नहीं है, कृपणता नहीं है। उसकी तरफ से रत्ती भर बाधा नहीं है, व्यवधान नहीं है। मगर तुमने कुछ जीवन की ऐसी शैली बना ली है कि उसमें घृणा तो पनप जाती है, वैमनस्य तो पक जाता है,र् ईष्या के, द्वेष के कांटे तो खूब खिल जाते हैं, प्रेम के फूल नहीं खिल पाते। भय और लोभ को छोड़ो तो उसका सावन, उसकी बूंदाबूंदी तुम्हारे बिरवे तक पहुंचने लगे।

ओशो

कैलाश औऱ हिमालय में अंतर

 #कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6600 मीटर से अधिक है, जो दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट से लगभग 2200 मीटर कम है. इसके बाद भी माउंट एवेरेस्ट पर अब तक 7 हजार से अधिक बार चढाई कर चुके हैं लेकिन कैलाश पर्वत पर अब भी कोई व्यक्ति नहीं चढ़ पाया है. यह आज भी अजेय है.


1. कैलाश पर्वत की चोटियों पर दो झीलें हैं पहली मानसरोवर झील जो दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित शुद्ध पानी की सबसे बड़ी झील है. इसका आकार सूर्य के समान है और दूसरी राक्षस झील जो दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित खारे पानी की सबसे बड़ी झील है, और इसका आकार चन्द्रमा के समान है. यह दोनों झीलें यहां कैसे बनी इसको लेकर वैज्ञानिक आज भी शोध कर रहें हैं. इसी कारणों से कैलाश पर्वत को अद्भुत और रहस्यमयी कहा जाता है.


2. हमारी पृथ्वी के एक तरफ उत्तरी ध्रुव है दूसरी तरफ दक्षिणी ध्रुव. और इन दोनों ध्रुवों के बीच में है हिमालय और हिमालय का केंद्र है कैलाश पर्वत. इस बात को वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं कि यह धरती का केंद्र बिंदु है.


3. वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक ऐसा कें.द्र बिंदु है जिसे विज्ञान की भाषा में एक्सिस मुंडी कहते है. इसका मतलब होता है दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र.


4. ऐसा कहा जाता है कि कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के पास जाने वाले लोगों को निरंतर यहां एक ध्वनि सुनाई देती है जैसे की आस-पास कोई हवाई जहाज उड़ रहा हो. लेकिन ध्यान से सुनने में यह आवाज डमरू या ॐ की तरह सुनाई देती है. वैज्ञानिक कहते हैं कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो.

चरन गुरु मनुआँ लागा री ।

 **राधास्वामी!                                                

31-12-2021-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                     

चरन गुरु मनुआँ लागा री ।m

मोह जग छिन में त्यागा री ॥ १ ॥                                   

खोजता धावत आया री।

संग गुरु पूरे पाया री ॥ २ ।।                                                 

बचन सुन भजन कमाया री |

हिये में नाम जगाया री ॥ ३ ॥                                      

प्रीति गुरु चरन बढ़ाया री ।

 सुरत मन अधर चढ़ाया री।।४।।                                              

  काल और करम हटाया री ।

पाप और पुन्न नसाया जोत री ॥ ५ ॥                          

सहसदल जोत जगाया री ।

गगन धुन गरज सुनाया री ॥ ६ ॥                                       

सुन्न चढ़ बेनी न्हाया री |

 गुफा चढ़ सोहँग गाया री ॥ ७ ।।                                   

 सत्तपुर पुरुष मनाया री। 

बीन धुन अधर बजाया री ॥८ ॥                                     

अलख और अगम धाया री ।

दरश राधास्वामी पाया री ॥९ ॥                                  

 प्रेम अंग आरत  गाया री ।

 अनामी पुरुष रिझाया री।।१०।।                                     

धाम यह कोई न पाया री।

काल ने जग भरमाया री।।११।।                                  

तीन गुन देव पुजाया री ।

जीव सब दुख सुख पाया री ॥ १२ ॥                                    

ख़बर निज घर नहिं पाया री ।

संत विन कौन जनाया री ॥ १३ ॥                                      

बड़ा मेरा भाग सुहाया री ।

सरन राधास्वामी आया री।।१४ ।।                                         

दया कर भेद बताया री ।

मेहर से घर पहुँचाया री ॥१५ ॥                                     

कहाँ लग महिमा गाया री ।

चरन में सीस नवाया री ॥ १६ ॥                                       

दया गुरु काज बनाया री।

उलट राधास्वामी ध्याया री।।१७।।

 (प्रेमबानी-1-शब्द-20- पृ.सं.269,270,271)**


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ध्यान के लिए ध्यान देने की बात

 ध्यान करने के अनिवार्य शर्त 

1 हमेशा बैठ कर ध्यान करना चाहिए , रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए अकड़ी हुई नहीं , सर सीधा रीढ़ की हड्डी के सीध में होना चाहिए |


2 आँखें बंद होनी चाहिए 

3 शरीर को जितना स्थिर रखेंगे हिलाएंगे डुलायेगे नहीं उतना अच्छा 

4 ध्यान करते वक्त आसन पर बैठे आसन मतलब कोई गद्दी , कुसन या मोटा ऊनी वस्त्र आदि से है |

5 ध्यान करने का सबसे उपयुक्त समय सुबह तीन चार बजे का होता है वैसे कभी भी ध्यान कर सकते है |

6 अगर कोई गुरु मन्त्र लिए हैं तो ध्यान के वक्त उस गुरुमंत्र का मानसिक जाप अवश्य करें |

7 अगर किसी के निर्देश में ध्यान कर रहें हों तब अपना सारा फोकस निर्देश कर्ता के आवाज़ पर रखें |

ये ध्यान के लिए कुछ अनिवार्य और आवश्यक बातें हैं इसके पालन से ध्यान में अवश्य सफलता मिलती है |

 *🌹🌹कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*

*मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥2।।*

*(भगवद गीता, अध्याय II, श्लोक 47)*

*आपको अपना निर्धारित कर्तव्य निभाने का अधिकार है, लेकिन आप कर्म के फल के हकदार नहीं हैं।*

*अपने कार्यों के परिणामों का कारण स्वयं को कभी न समझें, और कभी भी अपने कर्तव्य को न करने में आसक्त न हों।-*

*{भगवद गीता, अध्याय II, श्लोक 47}*

*◆◆मिश्रित शब्द पाठ◆◆*                

*हे दयाल सद कृपाल (हिन्दी )-                                                

 हे दयाल सद् कृपाल । हम जीवन आधारे॥१॥                                                       

 सप्रेम प्रीति और भक्ति रीति । वन्दे चरन तुम्हारे ॥२॥                                                      

दीन अजान इक चहें दान । दीजे दया विचारे॥३॥                                                          

कृपा दृष्टि निज मेहर वृष्टि ।

 सब पर करो पियारे ॥४॥                                                               

संस्कृत हे दयालुः सद् कृपालुः ।

मम जीवनाधारे ॥१॥*                                                     *सप्रेम प्रीतिभक्तिरीतिश्च ।

 बंदे चरणं तुभ्यम्॥२॥                                                         दीनाज्ञानं एक इष्टं दानं । देयम् दयादृष्टिं निःस्वः।।३॥                                                    कृपादृष्टि : निज आशीर्वृष्टिः । प्रियवर : सर्वेभ्यो : करणीयं॥४॥◆◆*

*राधास्वामी रक्षक जीव के! (हिन्दी)-                        राधास्वामी रक्षक जीव के , जीव न जाने भेद । गुरु चरित्र जाने नहीं , रहे कर्म के खेद ॥ खेद मिटे गुरु दरस से , और न कोई उपाय | सो दर्शन जल्दी मिलें , बहुत कहा मैं गाय॥*                                                      *(संस्कृत)-राधास्वामी रक्षक : जीवस्य जीवेन न भेदं ज्ञातः॥ गुरुचरित्रं न ज्ञातं कर्मदुःखसंलग्नाः।। दुःखं दूरं भवेत् गुरुदर्शनेन न को s पि उपायाः।। तब दर्शनं शीघ्रं भवेत् बहुशः मया कथितम् ।।                    ◆◆*

*गुरु धरा सीस पर हाथ (हिन्दी)-                             गुरु धरा सीस पर हाथ । मन क्यों सोच करे || गुरु रक्षा हरदम संग । क्यों नहिं धीर धरे ॥ गुरु राखें राखनहार । उनसे काज सरे ॥ तेरी करें पच्छ कर प्यार । बैरी दूर पड़े ||*                                               *संस्कृत:- गुरोर्हस्तविराजितशिरसि , व्यर्थचिंता किमर्थं कुर्यात् ।। गुरुरक्षा प्रतिपल साकं , कथं न धैर्य धारयेत् ।। गुरुरक्षक : रक्षयत्यस्मान् , नियंता सत्कार्याणाम् ।। तवपक्षे स्नेहं कुर्यात् , • भवन्तु दूरं वैरिगणाः ।।◆◆*                     

*तमन्ना यही है (हिन्दी)-                                 तमन्ना यही है कि जब तक जीऊं । चलूं या फिरूं या कि मेहनत करूं ।। पढूं या लिखूं मुँह से बोलूं कलाम । न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम || जो मर्ज़ी तेरी के मुवाफिक न हो । रज़ा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो ।।                                संस्कृत | अभिलाषा इयमेव यावत् जीवेम । चलेम भ्रमेम सोद्यमभवेम ।। पठेम लिखेम सुवाक् वा वदेम न कुर्याम को s पीदृशं कार्यमेव ।। तवेप्सितविरुद्धं च यदपि भवेत् । भवतः स्वीकृत्याः प्रतिकूलं भवेत् ।।◆◆*                                                                            *तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो । कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो।                                                      चढ़ आये कभी जो दुख की घटा या पाप कर्म की होय तपन्त। तेरा नाम रहे मेरे चित्त बसा तेरी दया व मेहर की आस हो।।*                                       *यह काम जो हमने है सिर लिया करें मिलके हम तेरे बाल सब। तेरा हाथ हम पर रहे बना तेरी दया व मेहर की आस हो।।*                                           *तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो। कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो।।                                         संस्कृत:-*                                                   *तव चरणयो : प्रिय : हे पितः ! मम ईदृशदृढ़ विश्वास भव यत् मनसि मम सर्वदा सहायः । तव मेहरदययोः विश्वासः भव ।। आरुह्य कदापि यत् दुःखस्य घटा वा पापकर्मण : ज्वलनम् भव ।। तव नाम भव मम चितावासः । तब मेहरदययोः विश्वासः भव ।। कार्यमेतत् अस्माभिः शिरसि धृतम् ।कुर्मः मिलित्वा तव बालाः वयम् ।। तव हस्तयोःअस्मासु सर्वदा भव तव मेहरदययोः विश्वासः भव ।।◆◆*                                                                                                      *मेरे तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई। सबके तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई।।                              राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से जनम सुफल कर ले।।🌹🌹*

चरन गुरु मनुआँ लागा री ।

 **राधास्वामी!                                               

31-12-2021-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                     

चरन गुरु मनुआँ लागा री ।

 मोह जग छिन में त्यागा री ॥ १ ॥                                   

खोजता धावत आया री।

संग गुरु पूरे पाया री ॥ २ ।।                                                 

बचन सुन भजन कमाया री |

 हिये में नाम जगाया री ॥ ३ ॥                                      

प्रीति गुरु चरन बढ़ाया री ।

सुरत मन अधर चढ़ाया री।।४।।                                                

काल और करम हटाया री ।

पाप और पुन्न नसाया जोत री ॥ ५ ॥                          

सहसदल जोत जगाया री ।

गगन धुन गरज सुनाया री ॥ ६ ॥                                       

सुन्न चढ़ बेनी न्हाया री |

गुफा चढ़ सोहँग गाया री ॥ ७ ।।                                    

सत्तपुर पुरुष मनाया री।

 बीन धुन अधर बजाया री ॥८ ॥                                     

अलख और अगम धाया री ।

दरश राधास्वामी पाया री ॥९ ॥                                   

प्रेम अंग आरत  गाया री ।

अनामी पुरुष रिझाया री।।१०।।                                     

धाम यह कोई न पाया री।

काल ने जग भरमाया री।।११।।                                  

तीन गुन देव पुजाया री ।

जीव सब दुख सुख पाया री ॥ १२ ॥                                    

ख़बर निज घर नहिं पाया री ।

संत विन कौन जनाया री ॥ १३ ॥                                      

बड़ा मेरा भाग सुहाया री ।

 सरन राधास्वामी आया री।।१४ ।।                                        

 दया कर भेद बताया री ।

मेहर से घर पहुँचाया री ॥१५ ॥                                     

कहाँ लग महिमा गाया री ।

 चरन में सीस नवाया री ॥ १६ ॥                                       

दया गुरु काज बनाया री।

उलट राधास्वामी ध्याया री।।१७।।

 (प्रेमबानी-1-शब्द-20- पृ.सं.269,270,271)**


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Thursday, December 30, 2021

🕉🌞 जाबालदर्शनोपनिषद 🌞🕉

⚜🚩⚜👉 यह उपनिषद् योगीराज भगवान दत्तात्रेय एवं उनके शिष्य सांड्.कृति के संवाद के रुप में उद्धृत है.

🌞 मुनिश्रेष्ठ सॉन्ग कृति ने योगीराज दत्तात्रेय से पूछा- हे भगवन! अष्टांग योग का मेरे लिए सविस्तार वर्णन कीजिए, जिसे जानकर में जीवन मुक्त हो सकूं.

🌞 महायोगी दत्तात्रेय जी ने अपने शिष्य से कहा- है सॉन्ग कृते. मैं तुम्हारे लिए अष्टांग योग का  वर्णन करता हूं. जो संसार का समस्त वैभव एवं मुक्ति देने वाला है. यम ,नियम, आसन, प्राणायाम ,प्रत्याहार, धारणा ,ध्यान तथा समाधी ही योग के आठ अंग हैं. इनमें यम के दस भेद बताए गए हैं- सत्य, अहिंसा ,अस्तेय, ब्रह्मचर्य, दया क्षमा ,सरलता ,धृति मिताहार एवं बाह्य आभ्यंतर की पवित्रता.

🌞 हे तपोधन !वेद में वर्णित विधि के अतिरिक्त मन वाणी एवं शरीर के द्वारा यदि किसी को किसी भी तरह से पीड़ित किया जाता है अथवा उससे प्राणों को शरीर से अलग कर दिया जाता है तो वही वास्तविक हिंसा कही गई है. इससे भिन्न और कोई हिंसा नहीं है. हे मुने यह भाव रखना चाहिए कि आत्मतत्व सर्वत्र व्याप्त है शस्त्र आदि के द्वारा वह नष्ट नहीं हो सकता. निरंकुश अत्याचारियों का वध अहिंसा ही मानी जाती है.

🌞 हे मुने!चक्षु आदि इंद्रियों के माध्यम से जो जिस रूप में देखा, सुना और समझा हुआ विषय है. उसको उसी रुप में वाक् इंद्रिय के द्वारा कहना ही सत्य है. इस संसार में जो कुछ भी है वह उस परम पिता परब्रह्म का रचा हुआ है इसलिए सब कुछ सत्य स्वरूप है. उस सत्य स्वरूप का ही अंश है. इस तरह का जो द्रढ निश्चय है उसी को वेदांत ज्ञान के विशेषज्ञों ने सर्वश्रेष्ठ सत्य बताया है.

🌞 अस्तेय- दूसरे व्यक्ति के रत्न आभूषण स्वर्ण अथवा मणि मुक्तक आदि से लेकर त्रण आदि के लिए मन में भी कभी प्राप्त करने की इच्छा न करना अर्थात दूसरों की बड़ी अथवा छोटी वस्तुओं के लिए मन में कभी लोभ लालच न लाना ही अस्तेय है. इस संसार के समस्त पदार्थों में अनासक्त भाव  बुद्धि रखकर आत्मा से दूर रखने का जो भाव है उसी को आत्मज्ञानी जनों ने अस्तेय कहा है.


🌞 ब्रह्मचर्य- मन वचन एवं कर्म से पर स्त्रियों के सहवास का त्याग एवं ऋतु काल या अपनी स्त्री की इच्छा के अनुसार कम से कम  संभोग करना तथा काम क्रोध आदि को नियंत्रित रखते हुए परब्रह्म परमात्मा में मन को लगाए रखना ही ब्रह्मचर्य है.

🌞 दया- समस्त प्राणियों को अपनी ही भांति जानकर उनके प्रति मन वचन एवं शरीर द्वारा आत्मीयता का अनुभव करना अर्थात अपनी ही तरह उनके दुखों को दूर करने तथा अधिक से अधिक सुख पहुंचाने का प्रयास करना ही दया है.

🌞 आर्जव ( सरलता )-पुत्र मित्र स्त्री रिपु एवं स्व आत्मा में भी सदैव मन का समान भाव रखना ही सरलता है.

👉 अंदर से समदर्शी होना और बाहर से दुष्टों के प्रति कठोर होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यही सत्य धर्म का लक्षण है. महाराज जनक ऐसे ही व्यक्तित्व थे.

🌞 क्षमा- अपने पास दंड देने की शक्ति होने पर भी शत्रुओं द्वारा मन वचन एवं शरीर से कष्ट दिए जाने पर भी बुद्धि में थोड़ा भी क्रोध न आने देना ही क्षमा कहलाता है.

👉 क्षमा शक्तिशाली को ही शोभा देती है. कमजोर की क्षमा को कायरता ही समझा जाता है.

🌞 धृति- वेद ज्ञान से ही संपूर्ण जगत मोक्ष को प्राप्त होता है और अन्य किन्ही भी कारणों से नहीं. ऐसा जो दृढ़ संकल्प है, उसी को ही वेदज् पुरुषों ने धृति की उपाधि प्रदान की है अर्थात मैं आत्मा हूं. आत्मा से पृथक दूसरा और कुछ भी नहीं हूं. ऐसी उत्तम बुद्धि रखना ही धृति है.

🌞 मिताहार- अल्प मात्रा में शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करना, पेट के दो भाग भोजन से, तृतीय भाग को जलसे तथा चौथे भाग को वायु के लिए खाली छोड़ना ही योग मार्ग के अनुकूल भोजन है, यही मिताहार कहलाता है.

🌞 शौच- अपने शरीर को बाहर से जलआदी द्वारा स्नान करके पवित्र रखना एवं मन के द्वारा पवित्र भावों का चिंतन मनन करना ही शौच कहलाता है. जो साधक ज्ञान रूप पवित्रता को भुलाकर केवल बाहरी पवित्रता में ही रमा रहता है, वह स्वर्ण का त्याग करके मिट्टी के ढ़ेरों का संग्रह करने वाले मूर्ख की ही भांति है .

👉 यह 10 यम हैं. इन्हें पढ़ कर आप यह न समझें कि हम तो योग मार्ग पर चल ही नहीं सकते. आप जहां हैं ,जैसे हैं. उसी स्वरूप में योग मार्ग पर चल सकते हैं. आप ज्यों ही आसन ,प्राणायाम एवं ध्यान का अभ्यास करेंगे. आपके अंदर से स्वत:ही बदलाव होता चला जाएगा. यदि आप यह सोचते हैं की संपूर्ण यम-नियम का पालन करने वाला ही योगी बन सकता है तो फिर संसार में कोई योग कर ही नहीं सकता. हां योग करते करते वह यम और नियम का पक्का हो जाता है क्योंकि योग उसके शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन कर देता है.

                 🙏👏सुप्रभात 👏🙏

निरभय होय भरमै संसारा ।

 *राधास्वामी!                                              

30-12-2021-आज सुबह सतस़ग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                    भोग बासना मन में धरी ।

मोसे सतसँग किया न जाय ॥टेक ॥                                          

मैं चाहूँ छोड़ भोगन को ।

 देख भोग मन अति ललचाय ॥ १ ॥                                   

सतसँग बचन सुनूँ मैं कैसे ।

 मन रहे अनेक तरंग उठाय ॥ २ ॥                                   

 चित चंचल मेरा चहुँ दिस धावे ।

सुरत शब्द में नहिं ठहराय ॥३।।।                               

निरभय होय भरमै संसारा ।

 नई कामना नित्त जगाय ॥ ४।।                                           

बिन राधास्वामी अब कोइ नहिं मेरा।

 जो यह बेड़ा पार लगाय।।५।।

 (प्रेमबानी-3-शब्द-3- पृ.सं.260,261)*

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ज्योतिष ज्ञान -7 / सिन्हा आत्म स्वरूप


1 मेरे लिए ज्योतिष विज्ञान है एक अद्भुत ज्ञान है

टोटका या तुक्का नही2


सादर आमंत्रित

2


हथेली की आयु रेखा पर बने त्रिभुज

मनुष्य को दिर्घायु बनाता है


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हाथ की रेखाओं के जरिए किसी भी व्यकित के भविष्य को लेकर जानकारी हासिल की जा सकती है। हथेली में केवल रेखाएं ही नहीं बल्कि कई तरह के चिन्ह भी मौजूद होते हैं, जो व्यक्ति के स्वभाव और उसके जीवन से जुड़े कई राज खोलते हैं। इस लेख में हम बात करेंगे रेखाओं से बने त्रिभुज के बारे में। अगर हाथ के किसी भी स्थान पर तीन तरफ से रेखाएं आकर एक-साथ मिलती हैं, तो इसे त्रिभुज कहा जाता है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक हथेली की अलग-अलग जगहों पर त्रिभुज का होना अलग-अलग संकेत देता है।


बड़ा त्रिभुज: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति के हाथ पर बड़े आकार का त्रिभुज बनता है तो इसका अर्थ है की वह व्यक्ति बेहद ही नरम दिल का होता है। वह बिना किसी उम्मीद के लोगों की मदद करता है। ऐसे लोग काफी भावनात्मक होते हैं।


चंद्र रेखा पर त्रिभुज: अगर किसी व्यक्ति की हथेली में चंद्र रेखा पर त्रिभुज का निशान है तो इसका अर्थ है की ऐसा व्यक्ति विदेश यात्रा पर जाता है। ऐसे लोग अक्सर सरकारी खर्चे या फिर कंपनी से तरफ से विदेश की यात्रा पर जाते हैं। ऐसे लोग बेहद ही बुद्धिमान होते हैं और इन्हें जीवन की सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।


शुक्र रेखा पर त्रिभुज का निशान: अगर किसी व्यक्ति के शुक्र पर्वत पर त्रिभुज का निशान है, तो ऐसे लोग काफी आकर्षक होते हैं। यह विलासिता में अपनी जिंदगी व्यतीत करते हैं।



मिश्रित शब्द पाठ वचन

 *🌹🌹कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*

*मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥2।।*

*(भगवद गीता, अध्याय II, श्लोक 47)*


*आपको अपना निर्धारित कर्तव्य निभाने का अधिकार है, लेकिन आप कर्म के फल के हकदार नहीं हैं।*

*अपने कार्यों के परिणामों का कारण स्वयं को कभी न समझें, और कभी भी अपने कर्तव्य को न करने में आसक्त न हों।-*

*{भगवद गीता, अध्याय II, श्लोक 47}*


*◆◆मिश्रित शब्द पाठ◆◆*                

*हे दयाल सद कृपाल (हिन्दी )-                                                  हे दयाल सद् कृपाल । हम जीवन आधारे॥१॥                                                         सप्रेम प्रीति और भक्ति रीति । वन्दे चरन तुम्हारे ॥२॥                                                       दीन अजान इक चहें दान । दीजे दया विचारे॥३॥                                                           कृपा दृष्टि निज मेहर वृष्टि । सब पर करो पियारे ॥४॥                                                                संस्कृत हे दयालुः सद् कृपालुः । मम जीवनाधारे ॥१॥*                                                     *सप्रेम प्रीतिभक्तिरीतिश्च । बंदे चरणं तुभ्यम्॥२॥                                                         दीनाज्ञानं एक इष्टं दानं । देयम् दयादृष्टिं निःस्वः।।३॥                                                    कृपादृष्टि : निज आशीर्वृष्टिः । प्रियवर : सर्वेभ्यो : करणीयं॥४॥◆◆*

*राधास्वामी रक्षक जीव के! (हिन्दी)-          

             राधास्वामी रक्षक जीव के , जीव न जाने भेद । गुरु चरित्र जाने नहीं , रहे कर्म के खेद ॥ खेद मिटे गुरु दरस से , और न कोई उपाय | सो दर्शन जल्दी मिलें , बहुत कहा मैं गाय॥*                                                      *(संस्कृत)-राधास्वामी रक्षक : जीवस्य जीवेन न भेदं ज्ञातः॥ गुरुचरित्रं न ज्ञातं कर्मदुःखसंलग्नाः।। दुःखं दूरं भवेत् गुरुदर्शनेन न को s पि उपायाः।। तब दर्शनं शीघ्रं भवेत् बहुशः मया कथितम् ।।                    ◆◆*

*गुरु धरा सीस पर हाथ (हिन्दी)-                             गुरु धरा सीस पर हाथ । मन क्यों सोच करे || गुरु रक्षा हरदम संग । क्यों नहिं धीर धरे ॥ गुरु राखें राखनहार । उनसे काज सरे ॥ तेरी करें पच्छ कर प्यार । बैरी दूर पड़े ||*                                               *संस्कृत:- गुरोर्हस्तविराजितशिरसि , व्यर्थचिंता किमर्थं कुर्यात् ।। गुरुरक्षा प्रतिपल साकं , कथं न धैर्य धारयेत् ।। गुरुरक्षक : रक्षयत्यस्मान् , नियंता सत्कार्याणाम् ।। तवपक्षे स्नेहं कुर्यात् , • भवन्तु दूरं वैरिगणाः ।।◆◆*       

             

*तमन्ना यही है (हिन्दी)-                                 तमन्ना यही है कि जब तक जीऊं । चलूं या फिरूं या कि मेहनत करूं ।। पढूं या लिखूं मुँह से बोलूं कलाम । न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम || जो मर्ज़ी तेरी के मुवाफिक न हो । रज़ा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो ।।                                संस्कृत | अभिलाषा इयमेव यावत् जीवेम । चलेम भ्रमेम सोद्यमभवेम ।। पठेम लिखेम सुवाक् वा वदेम न कुर्याम को s पीदृशं कार्यमेव ।। तवेप्सितविरुद्धं च यदपि भवेत् । भवतः स्वीकृत्याः प्रतिकूलं भवेत् ।।◆◆*                                                                            *तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो । कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो।                                                      चढ़ आये कभी जो दुख की घटा या पाप कर्म की होय तपन्त। तेरा नाम रहे मेरे चित्त बसा तेरी दया व मेहर की आस हो।।*                                       *यह काम जो हमने है सिर लिया करें मिलके हम तेरे बाल सब। तेरा हाथ हम पर रहे बना तेरी दया व मेहर की आस हो।।*                                           *तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो। कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो।।                                         संस्कृत:-*                                                   *तव चरणयो : प्रिय : हे पितः ! मम ईदृशदृढ़ विश्वास भव यत् मनसि मम सर्वदा सहायः । तव मेहरदययोः विश्वासः भव ।। आरुह्य कदापि यत् दुःखस्य घटा वा पापकर्मण : ज्वलनम् भव ।। तव नाम भव मम चितावासः । तब मेहरदययोः विश्वासः भव ।। कार्यमेतत् अस्माभिः शिरसि धृतम् ।कुर्मः मिलित्वा तव बालाः वयम् ।। तव हस्तयोःअस्मासु सर्वदा भव तव मेहरदययोः विश्वासः भव ।।◆◆*                                                                                                      *मेरे तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई। सबके तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई।।                              राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से जनम सुफल कर ले।।🌹🌹*

Wednesday, December 29, 2021

निष्काम मजदूरी

 💐भगवान की मजदूरी 💐


एक गरीब विधवा के पुत्र ने एक बार अपने राजा को देखा । 

राजा को देख कर उसने अपनी माँ से पूछा- माँ! क्या कभी मैं राजा से बात कर पाऊँगा ?

माँ हंसी और चुप रह गई ।

पर वह लड़का तो निश्चय कर चुका था । उन्हीं दिनों गाँव में एक संत आए हुए थे। तो युवक ने उनके चरणों में अपनी इच्छा रखी ।


संत ने कहा- अमुक स्थान पर राजा का महल बन रहा है, तुम वहाँ चले जाओ और मजदूरी करो । पर ध्यान रखना, वेतन न लेना । अर्थात् बदले में कुछ माँगना मत निष्काम रहना ।


वह लड़का गया । वह मेहनत दोगुनी करता पर वेतन न लेता ।


एक दिन राजा निरीक्षण करने आया । उसने लड़के की लगन देखी । प्रबंधक से पूछा- यह लड़का कौन है, जो इतनी तन्मयता से काम में लगा है ? इसे आज अधिक मजदूरी देना ।


प्रबंधक ने विनय की- महाराज! इसका अजीब हाल है, दो महीने से इसी उत्साह से काम कर रहा है । पर हैरानी यह है कि यह मजदूरी नहीं लेता । कहता है मेरे घर का काम है । घर के काम की क्या मजदूरी लेनी ?


राजा ने उसे बुला कर कहा- बेटा ! तू मजदूरी क्यों नहीं लेता ? बता तू क्या चाहता है ?


लड़का राजा के पैरों में गिर पड़ा और बोला- महाराज ! आपके दर्शन हो गए, आपकी कृपा दृष्टि मिल गई, मुझे मेरी मजदूरी मिल गई । अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।


राजा उसे मंत्री बना कर अपने साथ ले गया । और कुछ समय बाद अपनी इकलौती पुत्री का विवाह भी उसके साथ कर दिया । राजा का कोई पुत्र था नहीं, तो कालांतर में उसे ही राज्य भी सौंप दिया ।

बिल्कुल इसी प्रकार से भगवान ही हम सभी के राजा हैं । और हम सभी भगवान के मजदूर हैं । भगवान का भजन करना ही मजदूरी करना है । संत ही मंत्री है । भक्ति ही राजपुत्री है । मोक्ष ही वह राज्य है ।


हम भगवान के भजन के बदले में कुछ भी न माँगें तो वे भगवान स्वयं दर्शन देकर, पहले संत से मिलवा देते हैं और फिर अपनी भक्ति प्रदान कर, कालांतर में मोक्ष ही दे देते हैं ।


वह लड़का सकाम कर्म करता, तो मजदूरी ही पाता, निष्काम कर्म किया तो राजा बन बैठा । यही सकाम और निष्काम कर्म के फल में भेद है ।


*🏵️"तुलसी विलम्ब न कीजिए, निश्चित भजिए राम।*

*जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान🏵️*॥"


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जगन्नाथ पुरी में महाप्रभु का रहस्य

 भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है


महाप्रभु का महा रहस्य


सोने की झाड़ू से  सफाई...


...

महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया


हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...


मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...


ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... 


मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? 


कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...


आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...


भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी


आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। 


झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है


दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।


भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा


इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।


भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।


भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।और भी कितनी ही आश्चर्यजनक चीजें हैं हमारे सनातन धर्म की। 


🙏🚩श्री जगन्नाथ जी की जय 🚩    


Ramakant Dubey / Ramakant दूबे


Sunday, December 26, 2021

सतसंग सुबह 27/12/21

 *राधास्वामी!! -                       

 27-12-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                      

(1) गुरु आरत बिधि दीन बताई। 

मोह नींद से लिया जगाई।।

(सारबचन-शब्द-7-पृ.सं.186,187) (अधिकतम् उपस्थिति-करनाल ब्राँच हरियाणा-@-2:10-दर्ज-25)                                                                

(2) गुरु बचन सम्हारो,

क्यों मन सँग भरमइयाँ हो।।टेक।।

(प्रेमबानी-3-शब्द-3- पृ.सं.257)                                                         

(3) भाग जगे गुरु चरनन आई। राधास्वामी संगत सेवा पाई।।

(प्रेमबानी 2-शब्द-11- पृ.सं.14,15)

 (विद्युतनगर मोहल्ला)                                                                                                                                                                      

सतसंग के बाद:-                                          

(1)-राधास्वामी मूल नाम।                                                                                             

(2)-मिश्रित शब्द पाठ एवं

मेरे तो राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई।

सबके तो राधास्वामी दयाल।

मेरे तो तेरे तो सबके तो।

 राधास्वामी दयाल दूसरो न कोई।

राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से जनम सुफल कर ले।।                                                                                                                                                                                                🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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दयालबाग़ में भंडारा उत्साह के साथ सम्पन्न

प्रस्तुति  - अरुण यादव 


 The holy Bhandara of Guru Huzur Maharaj celebrated in Dayalbagh…see in pics#agranews


By News  December 26, 2021  0 Comment

(

आगरा दयालबाग़. 26 December 2021 Agra News) आगरा में दयालबाग के खेतों में हुई खेल प्रतियोगिताएं. हर्ष और उल्लास के साथ मनाया दयालबाग राधास्वामी मत के द्वितीय आचार्य परम गुरु हुजू़र महाराज का पावन भंडारा….


सुबह 3 बजकर 45 मिनट पर हुई आरती

आज रविवार को दयालबाग़ राधास्वामी मत के द्वितीय आचार्य परम गुरु हुजू़र महाराज का पावन भंडारा बहुत ही हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ मनाया गया। भण्डारे के अवसर पर सुबह 3 बजकर 45 बजे आरती का आयोजन खेतों (सतसंग की कर्मभूमि) पर किया गया। आरती के बाद समस्त उपस्थितजनों को मुरमुरे एवं इलायचीदाने का प्रसाद वितरित किया गया। भण्डारे के अवसर पर देश विदेश से लगभग 8000 सतसंगी दयालबाग़ आये हुए हैं, जिनमें दिल्ली, महाराष्ट्र-गुजरात एवं शिमला इत्यादि के सतसंगी शामिल हैं।

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कई खेल प्रतियोगिताएं हुईं


सायं 3 बजे बजे भण्डारे का आयोजन भी खेतों पर ही किया गया। इस दौरान लघु क्रीड़ा प्रतियोगिता, झांकी एवं ग्रामीणों के लिए निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ राधास्वामी सतसंग सभा के अध्यक्ष गुरस्वरूप सूद द्वारा राष्ट्रध्वज फहरा कर किया गया। लघु क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में विभ्भिन्न आयु वर्ग के बच्चों ने बडे उत्साह से भाग लिया। विजेता प्रतिभागियों को अध्यक्ष, राधास्वामी सतसंग सभा द्वारा पुरुस्कार वितरण किया गया।


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दयालबा को सजाया आकर्षक सज्जा से

लघु क्रीड़ा के बाद दयालबाग की जीवन शैली, विज्ञान से आध्यात्म तक का आकर्षक झांकियों के माध्यम से प्रदर्शन किया गया। इसके बाद सतसंग के साथ प्रीतिभोज प्रारम्भ हुआ। इस दौरान खेतों में उपस्थित लगभग 12,000 से 15,000 सतसंगियों ने गेंहूँ की निराई करते हुए संतसतगुरु के सानिध्य में प्रीतिभोज का आनन्द उठाया। 

Saturday, December 25, 2021

परम गुरु हुज़ूर महाराज विशेष..

 राधास्वामी सम्वत् 204


 




के भंडारे के पावन अवसर पर यह


प्रेम प्रचारक-विशेषांक


उनके चरण कमलों में अत्यंत श्रद्धा व दीनता के साथ


सादर समर्पित है।


 


          जब किसी को गहरा शौक़ और प्रेम संत सतगुरु और उनके सतसंग में बचन और महिमा सुन कर आ गया, तब उसकी आसक्ति अपनी देह और कुटुम्ब परिवार और धन माल और भोग बिलास वग़ैरह में एक दम ढीली हो कर, चरनों में कुल मालिक राधास्वामी दयाल के आ जावेगी और जिस क़दर अभ्यास करके रस अंतर में मिलता जावेगा, दिन दिन बढ़ती जावेगी और फिर वही शख़्स सतगुरु की आज्ञा और मालिक की मौज के अनुसार सहज में बर्तने लगेगा और उसके मन और इन्द्रियों के बिकार और पिछली टेक और पक्ष और करम और भरम बहुत जल्द दूर हो जावेंगे और अभ्यास में भी उसको मन और माया के बिघन बहुत कम सतावेंगे और पिछले अगले करम भी उसके सहज में दया और प्रेम के बल से कट जावेंगे।


(प्रेमपत्र, भाग 3, ब. 25, पैरा 6 का अंश)




परम गुरु हुज़ूर महाराज के बचन


         19- उत्तम जीव यानी प्रेमी सुरतों से संत सतगुरु फ़रमाते हैं कि उनको कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में गहरी प्रीत और प्रतीत करनी चाहिये यानी जिस क़दर कि उनकी प्रीत संसार और कुटुम्ब परिवार और धन माल वग़ैरह में है, उससे कुछ ज़्यादा मालिक के चरनों में होना चाहिये, तब रास्ता सुखाला और तेज़ चलेगा यानी जो मालिक की प्रीत का पल्ला ब-निस्बत दुनिया की प्रीत के पल्ले के कुछ भारी होगा, तब कोई विघ्न मन और माया और काल वग़ैरह का उनके अभ्यास में ख़लल नहीं डालेगा और अभ्यास भी सहज बनेगा। इसी को गुरुमुखता कहते हैं और गुरुमुख को कोई रोक और अटका नहीं सकता।


            24- जो जीव कि कुल मालिक राधास्वामी दयाल की भक्ति और सरन में आये, वे मालिक के अपनाये हुए और महा प्यारे हैं और दूसरे दरजे के जीवों पर भी ब्रह्म का ख़ास प्यार है और बाक़ी जीवों पर आम तौर की दया है। इसी के मुवाफ़िक़ रामायन में भी बचन है-


भक्ति विहीन बिरंच किन होई। सब जीवन सम प्रिय मम सोई।।


भक्तिवंत जो नीचहु प्रानी। प्राण से अधिक सो प्रिय मम बानी।।


            25- ख़ुलासा इस बचन का यह है कि मालिक को भक्ति और दीनता प्यारी है। जो कोई उनके चरनों में सच्ची प्रीत और दीनता लावेगा, वहीं संत सतगुरु से मिल कर निजधाम में बासा पावेगा और संत सतगुरु उसको मौज से आप ही मिल जावेंगे और सबब ऐसी मौज का यह है कि कुल मालिक आप प्रेम का अथाह भंडार है और जीव जो उसकी अंस है, वह भी प्रेम स्वरूप है और जिस धार के वसीले से कि उनका सूत मालिक के चरनों में लगा हुआ है, वह भी चैतन्य और प्रेम की धार है। फिर जो कोई प्रेम अंग लेकर चलेगा वही मालिक के सन्मुख पहुँचेगा। बिना प्रेम के उस रास्ते में गुज़र नहीं हो सकता है।


   (प्रेमपत्र, भाग 5, बचन 35)


 

सुबह शाम सतसंग 25/12 2021





- आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                                                 चलो घर प्यारे ,क्यों जग में नित्त फँसइयाँ हो ॥टेक ॥                                                        

देह संग नित दुख सुख सहते ।

 मन इंद्री भोगन में बहते ।

 सतगुरु दया धार अब कहते ।

चेतो तुम गहो सरन गुसइयाँ हो ॥ १ ॥।                                

 सतगुरु घर का भेद बतावें ।

शब्द संग मन सुरत चढ़ावें ।

काल करम से खूँट छुड़ावें ।

 उन सँग पार चलइयाँ हो ॥ २ ॥


अधर धाम सतगुरु का डेरा।

पहुँचे वहाँ जिन धुन घट हेरा ।

 सतगुरु दया सुरत ले घेरा ।

प्यारे राधास्वामी चरन समइयाँ हो।।३।।

(प्रेमबानी-3-शब्द-2-

पृ.सं.256,257)


[*राधास्वामी!

आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला पहला पाठ

:-आरत गावे स्वामी दास तुम्हारा।

प्रेम प्रीति का थाल सँवारा।।

(सारबचन-शब्द-6-

 पृ.सं.573,574)(चैनई ब्राँच)*                                   

 25-12-2021-

आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                       

बिमल चित गुरु चरनन लागा।

 दास घट बाढ़ि अनचरागा।।१।।                                     

ढूँढ़ता बहुत फिरा जग में ।

भटक गये सब जिव या मग में ॥ २ ॥                                      

बोलते मुख से ऊँची बात ।

 परख नहिं पाई सतगुरु साथ ॥ ३ ॥                                    

संत का मरम नहीं जाना ।

ग्रंथ पढ़ पढ़ हुए दीवाना ॥ ४ ॥                                      

 खोजता आया राधास्वामी पास ।

 दरश कर हियरे बढ़त हुलास ॥ ५ ॥                                                                      

 बचन सुन आई मन परतीत ।

चरन में गुरु के धारी प्रीति ॥ ६ ॥                                         

 भेद सतसँग का मोहि दीना ।

 सुरत हुई धुन में लौलीना ॥ ७ ॥                                         

मेहर राधास्वामी पाई आय ।

दिया मेरा सोता भाग जगाय ॥ ८ ॥                                      

 गुरु की महिमा अब जानी ।

नाम धुन सुन हुई मस्तानी ॥ ९ ॥                                         

सुरत रस शब्द लेत दिन रात ।

 स्वामी की महिमा निस दिन गात ॥ १० ॥                                         

संत के कस कस गुन गाऊँ ।

चरन पर नित नित बलि जाऊँ ॥ ११ ॥                                     

शब्द की गहिरी लागी चोट ।

गही जब सतगुरु की मैं ओट ॥१२ ॥                                          

रहे मन इंद्री थक कर वार ।

 काल और करम रहे झख मार ॥१३ ॥                                  

गुरू ने पकड़ी मेरी बाँह ।

विठाया निज चरनन की छाहँ || १४ ||                         

  अँधेरा छाय रहा संसार ।

भेष और पंडित भरमें वार || १५ ||                                                                       

जीव सब भूले उनके संग ।

हुए सब मैले माया रंग ॥१६ ॥                                                            

  कहूँ मैं उनको अब समझाय ।

सरन लो सतगुरु की तुम आय || १७ ||                                                       

जीव का अपने कर लो काज |

 नहीं फिर जमपुर आवे लाज ॥१८ ॥                                                                    नहीं कुछ तीरथ में मिलना ।

 चित्त नहिं मूरत में धरना ॥१९ ॥                                                                   

  चरन राधास्वामी परसो आय । सहज में सूरत निज घर जाय ॥२० ॥                                                                    उमँग मेरे मन में उठती आज ।

करूँ राधास्वामी आरत साज ॥२१ ॥                                                 प्रेम सँग गुरु अस्तुत गाती ।

 मेहर राधास्वामी छिन छिन पाती || २२ ||                                                               जोत का दरशन नभ पाती ।

 गरज सुन सुरत गगन जाती || २३ ||                                  

सुन्न में तिरबेनी न्हाती | ।

गुफा चढ़ मुरली बजवाती ॥ २४ ॥                                   

 सत्त और अलख अगम पारा ।

 चरन राधास्वामी परसाती || २५ ||

 (प्रेमबानी-1-शब्द-16- पृ.सं.260,261,262,263)


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Thursday, December 23, 2021

सतसंग के भावी कार्यक्रम / आयोजन

 *RADHASOAMI.* 


 *Basant 05 Feb 2022*


 *Bhandara (PGH Sahabji Maharaj) 06 Feb 2022,* 


 *Holi 18 Mar 2022*


*Sabha Meeting 13 Mar 2022*


*Bhandara (PGH Mehtaji Maharaj) 20 Mar 2022*




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 *Radhasoami*


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MCREI पाठ्यक्रम दो जनवरी से आरंभ

 राधास्वामी


निम्नलिखित MCREI पाठ्यक्रमों#22  का अगला सत्र रविवार, 02 जनवरी 2022 से शुरू होगा। इन पाठ्यक्रमों के लिए पात्रता प्रत्येक के सामने दर्शाई गई है: -l


*(ए) Hygiene, Sanitation and Cleanliness  - 18 वर्ष से अधिक आयु की सभी महिलाओं के लिए।*


*(बी) Indian Music (Classical Vocal)  - छठी से बारहवीं कक्षा के छात्र या 9 से 19 वर्ष की आयु के छात्र।*

*(सी) Yoga and Consciousness (केवल महिलाओं के लिए) - पाठ्यक्रम सभी महिलाओं/लड़कियों के लिए खुला है : 15-50 वर्ष।*


ट्रांसमिशन मौजूदा अभ्यास के अनुसार किया जाएगा यानी 'माइक्रोसॉफ्ट टीम्स' ऐप का उपयोग करके, एक शाखा / केंद्र के सत्संग हॉल / घरों में पूर्ण वीडियो प्रसारण के साथ, उनकी तकनीकी टीम द्वारा प्राप्त और संचालित किया जाएगा। इससे स्वीकृत अभ्यर्थियों को पाठ्यक्रम का पूरा लाभ मिलेगा। हालांकि, यदि कोई उम्मीदवार किसी अपरिहार्य कारण से अपने सत्संग हॉल/सत्संग घर में नहीं पहुंच पाता है, तो उसे अपने आवास पर केवल पाठ का ऑडियो प्रसारण मिलेगा, लेकिन उसे अपनी स्वीकृत का पूरा लाभ नहीं मिलेगा। अवधि।

कृपया संबंधित पाठ्यक्रमों के लिए नीचे दिए गए Google फॉर्म को भरें


*Indian Music (Classical Vocal)*

https://forms.gle/rtLh2woq4bAS4rov5


*Yoga and Consciousness (Ladies)*

https://forms.gle/QfQa6m8Cm5oFdk27A


*Hygiene, Sanitation and Cleanliness (Ladies)*

https://forms.gle/LLhdahgXkdi1Ta2

Note - जो भी पुराने विधार्थी कोर्स को रिवाइज करना चाहते है वो भी कोर्स के लिए एप्लाई कर सकते है!

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे

PBn sakshi Arora 

9599551636


Radhasoami


The next session of the following MCREI courses will commence from Sunday, 02nd January 2022. Eligibility for these courses is as shown against each: -


*(a) Hygiene, Sanitation and Cleanliness  - For all Ladies above the age of 18 years.*


*(b) Indian Music (Classical Vocal) - Students of classes VI to XII or of the age span 9 to 19 years.*


*(c) Yoga and Consciousness (for Ladies only) - The course is open to all ladies/girls, Initiated,Jigyasus / Pre-initiates of the age group: 15 –50 years.*


Transmission will be made as per the existing practice i.e. using ‘Microsoft Teams’ App, with full Video transmission to Satsang Halls / Ghars of a Branch/ Centre, to be received and operated by their Technical Team. This will give full benefit of the Course to the Approved candidates. However, in case a candidate cannot make it to his/her Satsang Hall/Satsang Ghar for some unavoidable reason, he/she will get audio transmission only of the lesson at his/her residence but will not gain full benefit of his/her Approved Course.


Please fill the Google form given below for the respective courses


*Indian Music (Classical Vocal)*

https://forms.gle/rtLh2woq4bAS4rov5


*Yoga and Consciousness (Ladies)*

https://forms.gle/QfQa6m8Cm5oFdk27A



*Hygiene, Sanitation and Cleanliness (Ladies)*

https://forms.gle/LLhdahgXkdi1Ta2n8


Note - Students who wish to revise their previous lessons may also apply for the courses.

For more information, Kindly contact.

PBn sakshi Arora

9599551636


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WHRS

Br. Secretary

Shahdara Branch

परम गुरु हुज़ूर महाराज की जीवनी पर क्विज

 *राधास्वामी*


 यह quiz  परम गुरू  हुज़ूर महाराज की जीवनी पर आधारित है। आप सभी को विदित है कि यह quiz सभी के लिये है, age की कोई restrictions नहीं हैं। ब्रांच के सभी मैम्बर्स इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें घर में जितने सदस्य हैं सभी हिस्सा लें। यह हिंदी एवं english दोनों भाषाओं में है। *आपको सही उत्तर भी मिल* *जायेगा।* जब आप submit करेंगे, उसके बाद आपको view score click करना है।. जिससे आपको अपने marks एवम् कौन सा उत्तर गलत है, क्या सही है सब पता चल जाएगा।  किसी और को आपके नंबर नहीं पता लगेंगे। इसलिए बेझिझक कोशिश करें *Link branch grid पर आज 23 December 2021 से 31 December को शाम 9 pm  तक उपलब्ध होगा।* आप चाहें तो *एक  से ज्यादा बार attempt* कर सकते। 

आप सबसे निवेदन है कि इसमें ज़रूर हिस्सा लें। चाहें तो दूसरे ब्रांच में भी forward कर सकते हैं।


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Monday, December 20, 2021

आज साहब घर मंगलकारी ।

 *राधास्वामी!                                            

 आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला पहला पाठ:-                                                     

आज साहब घर मंगलकारी ।

गाय रहीं सखियाँ मिल सारी ॥ १ ॥                                       

 ऋतु वसन्त आये पुरुष पुराने ।

 शोभा धारी अद्भुत न्यारी ॥ २ ॥                                  

 मेहर दया की पर्बल धारा ।

रोम रोम अँग अँग से जारी ॥ ३ ॥                                               जनम जनम के बिछड़े हंसा । चरन कँवल में लिये लिपटा री ॥ ४ ॥                                                         

 सब सखियाँ जुड़मल मल न्हावत | करम भरम से होवत न्यारी ॥ ५ ॥                                            

सत्तपुरुष के दरश निहारत।  अलख अगम निरखत पद भारी ॥ ६ ॥                                                          प्रेमभरी मेरी सुरत सुहागिन ।

 गाय रही राधास्वामी गुन सारी ॥ ७ ॥


 (प्रेमबिलास-शब्द-1-पृ.सं.4)

(बटाला ब्राँच पंजाब-बहुत बहुत बधाई हो।)🌹🌹**


जगा मेरा अचरज भाग अपार।

 राधास्वामी!                                               

 20-12-2021-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                      

जगा मेरा अचरज भाग अपार।

सरन राधास्वामी पाई सार।।१।।                                          

करम और भरम तिमिर नाशा ।

 बँधी स्वामी चरनन की आसा ॥ २ ॥                                                                                          

  लिया मोहि आपहि चरन लगाय । भाव और भक्ति दई अधिकाय ॥ ३ ॥                                                          रहे नित प्रीति चरन बढ़ती ।

शब्द सँग सुरत अधर चढ़ती ॥ ४ ॥                                            

जगत की किरत लगी फीकी ।

कौन यह बूझे मेरे जिय की ॥ ५ ॥                                         

जीव सब भूले भरमन में ।

 फँसे सब रहते करमन में ॥ ६ ॥                                                  

प्रीति चरनन में नहिं लावें ।

संत की महिमा नहिं जानें ॥ ७ ॥                                                   

इसी से भुगतें चौरासी ।

कौन उन काटे जम फाँसी ॥ ८ ॥                                              

कहूँ मैं उन को हित करके ।

सरन राधास्वामी गहो दृढ़ के ॥ ९ ॥                                     

सुरत और शब्द राह चलना ।

सहज में भौसागर तरना ॥१० ॥                                           

दया स्वामी मुझ पै की भारी ।

चरन पै बार बार वारी ॥११ ॥                                           

 लिया मेरे मन को आप सुधार ।

 भोग बेक़दर कराये झाड़ ।। १२ ।।                                    

दई मोहि चरनन में परतीत ।

प्रेम की देखी अचरज रीति ।।१३।।                                              

रहूँ मैं राधास्वामी चरन सम्हार ।

जिऊँ मैं राधास्वामी चरन अधार ॥१४ ॥                                                       

आरती हित चित से करती ।

उमँग रहे नित हिये में बढ़ती ॥१५ ॥                                       

 मेहर राधास्वामी नित चाहूँ ।

दरश स्वामी नित घट में पाऊँ ॥१६ ॥                                                                           

 रहें मन सुरत चरन लौलीन ।

 बढ़े घट प्रेम ग़रीबी दीन ॥१७ ॥

 (प्रेमबानी-1-शब्द-14-पृ.सं.256,257,258)

भेंट राशि में बढ़ोतरी

 *Radhasoami*

*आज प्राप्त guidelines के अनुसार भेंट की राशि बढ़ाकर 3,000 कर दी गई है, जो भाई बहन ब्रांच से additional भेंट करना चाहते हैं , वे जल्द से जल्द अपनी भेंट की राशि PB Gaurav Dhingra,  9871155002

 को भेज देवें,


 ब्रांच के द्वारा ये दयालबाग़ ट्रांसफर कर दी जाएगी, जो लोग दयालबाग जा भी रहें हैं वे भी यहां भेंट कर सकते हैं*


*कृपया नोट फरमावे कि additional भेंट केवल 22 दिसम्बर तक ही ली जायेगी*


As per latest guidelines regarding *BHENT (from Initiated satsangis ONLY who are not going to Dayalbagh) ( Minimum Rs.10/-  &  Maximum Rs. 3000/-)* for *December 2021 Bhandara*


*Note*

*All Satsangies who are doing here online Bhent will not give bhent in Dayalbagh even if they go there*


For any other queries please contact Branch Secretary on

*9911990049*

*9136136525*

Sunday, December 19, 2021

मिश्रित शब्द पाठ

  18-12-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                     


 (1) गुरु प्यारे की मौज रहो तुम धार।।टेक।।

(प्रेमबानी-3-शब्द-74- पृ.सं.61,62)(अधिकतम् उपस्थिति-बोलारम ब्राँच-@-2:22-दर्ज-263)                                                                    

 (2) गुरु से मेरी प्रीति लगी सारी।

 सुरत मन चरनन पर वारी।।-

(जिऊँ मैं नित नित गुरु गुन गाय।

काल से लीना आप बचाय।।)

 (प्रेमबानी-1-शब्द-13- पृ.सं.254,255,256)                                                       

 (3) लगे हैं सतगुरु मुझे पियारे।

कर उनका सतसंग शब्द धारे।।-

(प्रेमबानी-4-ग़ज़ल-10- पृ.सं.11)(विद्युतनगर मोहल्रा-उपस्थिति-45)                                                                   

 (4) यथार्थ प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे।                                                                                                  सतसंग के बाद:-                                        

  (1)-राधास्वामी मूल नाम।                                  

[सरन नगर कालौनी( बोलारम ब्राँच)- फेस 2-ब्लॉक-1- का उद्घाटन समारोह]:-                                                

 (2)-तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता।                               

(3)-अजब यह बंगला लिया बनाय।                                                

(4)-आज साहब घर मंगलकारी । गाय रही सखियाँ मिल सारी।।।                                    

(5)- राधास्वामी दयाल सरन की महिमा। सतसंगी सब मिल गाय रहे री(संस्कृत)                                            

(6)- कालौनी का विवरण।। president of ARSA                                          

(7)-तमन्ना यही है (तेलगु)                                                                                

(8)-मिश्रित शब्द पाठ एवं


मेरे तो राधास्वामी दयाल

दूसरो न कोई।

सबके तो राधास्वामी दयाल।

 मेरे तो तेरे तो सबके तो।

 राधास्वामी दयाल

दूसरो न कोई


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से जनम सुफल कर ले।।           



      ।

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                                                                                                                                                             🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

जग भाव तजो प्यारी मन से ।

 **राधास्वामी!                                              

19-12-2021- आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-         


जग भाव तजो प्यारी मन से ।

सतसँग में चित्त धरो री ॥ टेक ॥                                      

  सब करम धरम दुखदाई।

इन सँग क्यों भरम बहो री ॥ १ ॥                                                 

तज टेक पुरानी प्यारी।

 राधास्वामी सरन गहो री ॥ २ ॥                                                      

 ले गुरु से शब्द उपदेशा ।

स्रुत तिल में आज भरो री ॥ ३ ॥                                                  

 धुन सुन सुन होत मगन मन । 

गुरु चरनन भाव बढ़ो री ॥ ४ ॥                                            

 स्रुत उलटत नभ चढ़ झाँकी ।

 घंटा और संख सुनो री ॥ ५ ॥                                             

चढ़ गगन अधर को धाई।

धुन  मुरली बीन बजो री ॥ ६ ॥                                               

राधास्वामी सतगुरु प्यारे ।

 उन चरनन जाय पड़ो री ॥ ७ ॥

 (प्रेमबानी-3-शब्द-6- पृ.सं.251)**


मोहि दरस देव गुरु प्यारे ।

 **राधास्वामी!                                                

 20-12-2021-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                                

 मोहि दरस देव गुरु प्यारे ।

 क्यों एती देर लगइयाँ ।।१।।                                                       

  मैं माँगत माँगत थकियाँ ।

कोई जतन पेश नहिं जड़याँ ॥ २ ॥                                          

  बिन दया तुम्हारी दाता ।

यह जीव कहा कर सकियाँ ॥ ३ ॥                                         

  अब परदा देव उठाई |

 तुम दरशन छिन छिन तकियाँ ॥ ४ ॥                                             

 मन इंद्री ज़ोर चलावत ।

 जब तब मोहि नाच नचइयाँ ॥ ५ ॥                                                 

 दूतन से बस नहिं चालत ।

 मैं रहूँ नित्त मुरझइयाँ ॥ ६ ॥                                                      

निज मन से खँट छुड़ाओ ।

 मेरी सूरत गगन चढ़इयाँ।।७।।                                            

  सुन में लख चंद्र उजारा।

हंसन सँग केल करइयाँ ॥ ८॥                                                      

मुरली धुन गुफा सम्हालूँ ।

सतपुर जाय बीन बजइयाँ।।९।।                                           

 लख अलख अगम दरबारा। राधास्वामी चरन समइयाँ ॥१० ॥

 (प्रेमबानी-3-शब्द-7-

 पृ.सं.251,252)**


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सुबह हो या शाम

 🌹 सुबह हो या शाम,खेतो का काम 🌹


 करते ही रहना   लेकर राधास्वामी नाम।।                         

 मेहनत और लगन से धार के तन मन

धन तेरे,सुबहो से तुम सुमिरन करना ,

करना हर एक काम।।                                                  

 सुबह हो या शाम............                                    

 याद कभी आयेगी तुमको मेहताजी महाराज की,

खिंच जायेगा अंतर में

 मन होंगे घट में उनके दर्शन-२

सुबहो से तुम सुमिरन करना

करना हर एक काम।।                                               

सुबह हो या शाम

खेतो का काम करते ही रहना

 तुम लेकर राधास्वाम नाम।।                         

🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻**


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सामना हो जाय तब

 🌹*ईश्ववर् देख रहा है*🌹


प्रस्तुति -  रेणुl दत्ता /  आशा सिन्हा 


*एक दिन सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है ।*


*मैंने कहा, "जी कहिए.."*


*तो उसने कहा,*


*अच्छा जी, आप तो  रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे?*


*मैंने  कहा*


*"माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं आपको..."*


*तो वह कहने लगे,* 


*"भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया है... अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते... लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"*


*मैंने चिढ़ते हुए कहा,"ये क्या मज़ाक है?"*


*"अरे मज़ाक नहीं है, सच है। सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंगा। तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पाएगा मुझे।"*


*कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. "अकेला ख़ड़ा-खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है, चल आजा अंदर.."*


*अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था कि बगल में वह आकर बैठ गए। चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पीया कि मैं गुस्से से चिल्लाया,*


*"अरे मॉं, ये हर रोज इतनी  चीनी ?"*


*इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नहीं आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि 'भई, तुम नज़र में हो आज... ज़रा ध्यान से!'*


*बस फिर मैं जहाँ-जहाँ... वह मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में... थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..*


*मैंने कहा,*

*"प्रभु, यहाँ तो बख्श दो..."*


*खैर, नहाकर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में  महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, 'तुम नज़र में हो।'*


*कार को साइड में रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते-करते कहने ही वाला था कि 'इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे' ...पर ये  तो गलत था, : पाप था, तो प्रभु के सामने ही कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,"आप आ जाइये। आपका काम हो  जाएगा।"*


*फिर उस दिन आफिस में ना स्टॉफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जातीं थीं मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, 'कोई बात नहीं, इट्स ओके...'में तब्दील हो गयीं।*


   *वह पहला दिन था जब क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूंठ- ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बने*।


*शाम को ऑफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया...*


*"प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, कुछ नियम तो आप भी निभाएं... उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी..."*


*घर पर रात्रि-भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला,*


*"प्रभु, पहले आप लीजिये।"*


*और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा। भोजन के बाद माँ बोली,* 


*"पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने। क्या बात है ? सूरज पश्चिम से निकला है क्या, आज?"*


*मैंने कहा,*


*"माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है... रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।"*


*थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा,*


*"आज तुम्हें नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है।"*


*गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी...*


*"कब तक सोयेगा .., जाग जा अब।"*


*माँ की आवाज़ थी... सपना था शायद... हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया... अब समझ में आ गया उसका इशारा...*


 *"तुम मेरी नज़र में हो...।"*


*जिस दिन ये समझ गए कि "वो" देख रहा है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। सपने में आया एक विचार भी आँखें खोल सकता है।*


    *🙏🏼🙏🏼*

     *प्रणाम*

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...