चाय एक शाकाहारी नशा है...
तो क्यों न शराब की बजाय चाय को जज्बातों से जोड़ते हैं...
तो अर्ज किया है...
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*एक तेरा ख़्याल ही तो है मेरे पास...*
*वरना कौन अकेले में बैठे कर चाय पीता है...!!!*
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*आज लफ्जों को मैने शाम की चाय पे बुलाया है...*
*बन गयी बात तो ग़ज़ल भी हो सकती है...!!!*
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*ठान लिया था कि अब और नहीं पियेगें चाय उनके हाथ की...*
*पर उन्हें देखा और लब बग़ावत कर बैठे...!!!*
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*मिलो कभी चाय पर फिर क़िस्से बुनेंगे...*
*तुम ख़ामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे...!!!*
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*चाय के कप से उड़ते धुंए में मुझे तेरी शक़्ल नज़र आती है...*
*तेरे इन्ही ख़यालों में खोकर, मेरी चाय अक्सर ठंडी हो जाती है...!!!*
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*हलके में मत लेना तुम सांवले रंग को...*
*दूध से कहीं ज्यादा देखे है मैंने शौक़ीन चाय के.....@*
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*फिजा में घुल रही है महक अदरक की,*
*आज बारिश भी चाय की तलबगार हो गई..*
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*अदाएं तो देखिए चायपत्ती की,*
*ज़रा दूध से क्या मिली शर्म से लाल हो गई...*
चाय के शौकीनों के लिए* ☕
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