🌳प्रकृति ने हर जीव में एक भाव भरा है ताकि वो निश्छल ना रहे, कुछ ना कुछ कर्म करता रहे और वो भाव है “भूख” संसार में हर जीव, हर पशु, पक्षी, प्राणी परिश्रम करता रहता है अपनी इस भूख को मिटाने के लिए।*
*🌳परन्तु क्या अन्य जीवों की भांति मनुष्य की भूख भी पेट तक ही सीमित रहती है? तन की भूख मिटाते-मिटाते कब ये भूख मन और माया की तृष्णा में बदल जाती है पता ही नहीं चलता और अधिकतर ये तृष्णा धन संग्रहित करने तक ही रह जाती है।अपना जीवन जीना छोड़ कर किसके लिए ये धन संग्रहित कर रहे है? आने वाली पीढ़ी के लिए।*
*🌳बड़ी विचित्र बात है अपना जीवन जीना छोड़ कर धन संग्रहित करते-करते अपने जीवन का सुख भी मिटा रहे है और आने वाली पीढ़ी को कर्म करने से भी बाधित कर रहे है।*
*🌳पूत कपूत तो क्यों धन संचय, पूत सपूत तो क्यों धन संचय अपनी संतान को संस्कार दीजिये, धन नहीं। यदि संतान संस्कारी हो तो अपना स्वयं का एक संसार बना लेगी यदि असंस्कारी हो तो आपका बना बनाया संसार यूँ ही नष्ट कर देगी।*
*🌳इसलिए जीवन में यदि कुछ संचय करना है तो ज्ञान संचय कीजिये, प्रेम संचय कीजिये ..!!*
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