राधा का कृष्ण मिलन
गोपाल जी एक कटोरे में मिट्टी लेकर उससे खेल रहे थे।
राधा रानी ने पूछा:- गोपाल जी ये क्या कर रहे हो ?
गोपाल जी कहने लगे:- मूर्ति बना रहा हूँ।
राधा ने पूछा:- किसकी ?
गोपालजी मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा। और कहने लगे:- एक अपनी और एक तुम्हारी।
राधा भी देखने के उद्देश्य से उनके पास बैठ गयी। गोपाल जी ने कुछ ही पल में दोनों मूर्तियाँ तैयार कर दी।और राधा रानी से पूछने लगे:- बताओं कैसी बनी है ?
मूर्ति इतनी सुंदर मानों अभी बोल पड़ेंगी। परन्तु राधा ने कहा:- मजा नहीं आया। इन्हें तोड़ कर दुबारा बनाओ। गोपाल जी अचरज भरी निगाहों से राधा की ओर देखने लगे, और सोचने लगे कि मेरे बनाए में इसे दोष दिखाई दे रहा है। परन्तु उन्होंने कुछ नहीं कहा, और दोबारा उन मूर्तियों को तोड़कर उस कटोरे में डाल दिया और उस मिट्टी को गुथने लगें। उन्होंने फिर से मूर्तियाँ बनानी शुरू की। और हुबहू पहले जैसी मूर्तियाँ तैयार की। अबकी बार प्रश्न चिन्ह वाली दृष्टि से राधे की ओर देखा ?
राधा ने कहा:- ये वाली पहले वाली से अधिक सुंदर है।
गोपाल जी बोले:- तुम्हें कोई कला की समझ वमझ हैं भी के नहीं। इसमें और पहले वाली में मैंने रति भर भी फर्क नहीं किया। फिर ये पहले वाली से सुंदर कैसे हैं ?
राधा ने कहा:- "प्यारे" यहाँ मूर्ति की सुंदरता को कौन देख रहा है। मुझे तो केवल तेरे हाथों से खुद को तुझमें मिलवाना था।
गोपाल जी:- अर्थात ?????
राधा रानी गोपाल जी को समझा रही थी:- देखों मोहन, तुमनें पहले दो मूर्ति बनाई। एक अपनी और एक हमारी।
गोपाल जी:- हाँ बनाई।
राधा:- फिर तुमनें इन्हें तोड़कर वापस कटोरे में डालकर गुथ दिया।
गोपाल जी:- हाँ तो ?
राधा रानी:- बस इस गुथने की प्रक्रिया मे ही मेरा मनोरथ पूरा हो गया। मैं और तुम मिलकर एक हो गए।
गोपाल जी बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे।
"जय जय श्री राधे"
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