Friday, April 2, 2021

सतसंग DB शाम 02/04

 **राधास्वामी!! 02-04-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-       

                          

 (1)  प्रेम भक्ति गुरु धार हिये से ।आया सेवक प्यारा हो।। (प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.264)(डेडगाँव ब्राँच -107 उपस्थिति)                                                       

    (2) सुरत पियारी शब्द अधारी। करत आज सतसंग।।-(राधास्वामी चरनन बासा पाऊँ। माया के उतरें सबहि कुरंग।। ये पाठ दोबारा से डेढगाँव ब्राँच को दोबारा पढने का आदेश हुआ।। (प्रेमबानी-4-शब्द-12-पृ.सं.149,150)                                                          

   (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।       

सतसँग के बाद:-                                                 

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                     

(3) सढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 02-04- 2021

-आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

-कल से आगे:-( 198)-का भाग :-

  हाँ अब देखिए पूर्वोक्त परिणाम से और क्या क्या बाते निटलती है:-

(क)-जब यह मान लिया गया कि एक मंडल ऐसा है जहाँ प्रकृति और मालिक व्यापक है किंतु प्रकृति प्रधान है, और एक मंडल ऐसा है जहाँ प्रकृति की गति नहीं केवल मालिक की शक्ति का ही आविर्भाव है, तो यह मानना कठिन न होगा कि इन दोनों के मध्य में एक तीसरा मंडल भी होगा जिसमें प्रकृति और मालिक दोनों व्यापक होंगे, किंतु वहाँ प्रकृति की दुर्बलता और मालिक की शक्ति की प्रबलता होगी।

 संत-मत में रचना ऐसे ही तीन भागों में विभक्त की जाती है। पहले भाग को निर्मल- चेतन देश या दयालदेश कहते हैं। दूसरे भाग को निर्मल- माया -देश या ब्रह्मांड कहते हैं और तीसरे भाग को मलिन-माया -देश या पिंड कहते हैं। हमारी पृथ्वी इस तीसरे भाग अर्थात पिंड का उपभाग है।।                                                                    

  (ख) वेदांतदर्शन के पहले अध्याय के पहले पाद के छठे सूत्र के भाष्य में पंडित राजारामजी लिखते हैं-" जीवात्मा और परमात्मा दोनों आत्मा हैं।जिस प्रकार एक शरीर की सारी ज्ञान और क्रिया पर निर्भर एक आत्मा पर है। वही उस शरीर के अंदर सोचने समझने वाला (ईक्षणकर्ता) है, सो वह उस एक शरीर का आत्मा है। इसी प्रकार इस सारे विश्व का आत्मा परमात्मा है"( पृष्ठ 85) ।

और छांदोग्य उपनिषद के प्रपाठक 8, खंड 1 में हृदय कमल का वर्णन करते हुए फरमाया है-' जितना बड़ा यह( बाहर का) आकाश है, उतना बड़ा यह हृदय के अंदर (का) आकाश है। दोनों इसमें अंदर ही द्यौः और पृथ्वी समाये  हुए हैं; अग्नि और वायु दोनों; सूर्य और चंद्र, दोनों बिजलियें और नक्षत्र; और जो कुछ इस (आत्मा ) का इस लोक में है, और जो नहीं है (अर्थात जो कुछ हो चुका है व होगा) वह सब इसमें समाया हुआ है" (श्लोक २)।

 इन दोनों बच्चों से सिद्ध है कि मनुष्य- शरीर समस्त सृष्टि की नकल है। इसी अर्थ में "पिंडे सो ब्रह्मण्डे" कहा जाता है ।

क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻    

                           

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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