**राधास्वामी!! 05-04-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) आरत गावे स्वामी दास तुम्हारा। प्रेम प्रीति का धाल सँवारा।।-(दया करो अब राधास्वामी। देव प्रसाद मोहि अन्तरजामी।।) (सारबचन-शब्द-6-पृ.सं.573,574-वाराणसी ब्राँच-103 उपस्थिति!)
(2) गुरु प्यारे का मुखडा झाँक रहूँ।।टेक।। अद्भुत छबि निरखत हुई मोहित। हरख हरख दृष्टि तान रहूँ।।-(रुप सुहावन राधास्वामी प्यारे। ध्यान धरत घट माहिं लखूँ।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-16-पृ.सं.21,22)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा.ओहो हो हो।। (प्रे-भा. मेलारामजी)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1-( 59)- 10 जून 1941 को शाम के सत्संग में 'सत्संग के उपदेश'- भाग 1- से बचन नंबर 50
:-'गुरु गोविंद साहब के जीवन चरित्र में से एक वर्क', पढ़ा गया। हुजूर ने जो फरमाया उसका सारांश नीचे दिया जा रहा है। इस समय जो बचन यहाँ पढ़ा गया, आशा है कि आपने उसे ध्यान से सुना होगा। अगर कोई बड़ा काम करने को न हो तो बाज लोगों का समय बड़ी कठिनाई से व्यतीत होता है लेकिन उनको जब कोई बड़ा काम मिल जाता है तो सहज में समय व्यतीत हो जाता है ।
इन दिनों में आप लोगों से, विशेष कर औरतों से, दो विषयों पर बातचीत हो चुकी है। प्रथम आपसे यह पूछा गया था कि आप में से कौन औरतें ऐसी हैं जिनको अपने पति की मृत्यु हो जाने के बाद शोक न होगा। फिर बाद में आपसे यह पूछा गया कि आप मे से कौन सी औरतें ऐसी हैं कि जो अपने बच्चों को प्रसन्नता से रवाना करने के लिए तैयार हैं। आज इन प्रश्नों को पूछे हुए दो दिन बीत गये।
इन विषयों पर विचार करने के लिए विशेष रूप से जबकि आपने ऊपर का बचन सुना है और प्रसन्नता से उसके लिए हाथ उठाया है, दो दिन का समय मिलना काफी है। आशा की जाती है कि आपने इस बीच में इस विषय पर विचार कर लिया होगा। अतएव इस समय यह बात पूछी जाती है कि आप में से कौन सी ऐसी सत्संगिने है जो सबसे पहले अपने सबसे अच्छे बेटे को सत्संग की सेवा के लिए पेश करना चाहती है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
[भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:-
धृतराष्ट्र की सारी औलाद मय सब राजाओं के, भीष्म, द्रोणाचार्य और सूत पुत्र कर्ण के और मय हमारी तरफ के बड़े-बड़े सरदारों के आपके पकड़े हुए जबडों के अंदर,जिन में लंबे लंबे दाँत जड़े हैं और जो अत्यंत भयानक है, दौड़े जा रहे हैं और ब हुतों के सिर आपके दाँतों के बीच चकनाचूर हुए दिखलाई देते हैं।
जैसे बाढ़ आने पर नदियों का पानी वेग से समुंद्र के साथ दौड़ता है ऐसे ही इस जगत् के शूरवीर आपके दहकते हुए मुखों में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। जैसे उन्मत्त हुए पतंग उड़ कर जलती हुई आग में गिरते हैं और नष्ट हो जाते हैं इसी तरह नष्ट होने के लिए ये लोग भी पूरी तेजी के साथ आपके मुखो में प्रविष्ट हो रहे है। आप आग की तरह जलती हुई ज़बानों से चारों तरफ सबको चाट और निगल रहे हैं।
आपका तेज तमाम जगत् के अंदर फैला है आपके तेजोमय किरणियों से तमाम संसार तप रहा है।
【 30】
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 2- कल से आगे:-
(3)- असल बात यह है कि असली स्थान सुरत यानी रुह का राधास्वामी के चरणों से लगा कर सत्तलोक तक है और असली स्थान मन का त्रिकुटी में है । और जोकि वहाँ का थोड़ा बहुत सुख और आनन्द यह मन भोगे हुए हैं और उसी स्थान के मसाले का इसका खमीर(बनावट) है , इस सबब से यह मन जब तक कि उलट कर त्रिकुटी में ना जावेगा, तब तक नीचे के स्थानों में भूल और भरम करके हर एक काम और ख्याल और पदार्थ में उस असली स्थान के आनंद को ढूँढता है और जैसे-जैसे अपने-अपने संगियों से जिस जिस बात या पदार्थ की महिमा और उसके प्राप्ति में आनंद और मान बड़ाई वगैरह का हाल सुनता है , उसी मुआफिक उस पदार्थ के हासिल करने के लिए मेहनत और जतन करता है।
और जब वह पूरा आनंद नहीं मिलता, तब उसी पदार्थ और उसी काम से चित्त इसका किसी कदर हट जाता है, यानी फिर उसकी तरफ इसकी वैसी तवज्जह नहीं रहती है और दूसरे पदार्थों के कामों या ख्यालों की तरफ जिनकी ज्यादा तारीफ सुनी है, लग जाता है। और ऐसे ही कभी किसी और कभी किसी चीज में इसका शौक लगा लगता रहता है और
कभी खाली नहीं रहता है, यानी अपनी चंचलता नहीं छोड़ता है। क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
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