**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे :
-(15 )
जब प्राणों या मुद्रा की पूरी तौर से साधना करने वाले गुप्त हो गये, और अभ्यास की बजाय चढ़ाने मन और प्राणों के सिर्फ मन के ठहराने के वास्ते लाभदायक समझाया गया, यानी थोड़े दिन ऐसा अभ्यास करके लोग अपने आपको पूरा समझने लगे और कसरत से जीव मूरत या निशानों या तीरथ की पूजा में लग गये. जो कोई थोड़े बहुत विद्यावान थे वे वाचक ज्ञान में मगन हो गए और अपने को ब्रह्म मानने लगे और अक्सर क्रिया योग वाले स्वाँगी बन गये, तब इस तरह मुक्ति का रास्ता बिल्कुल बंद देख कर कुल मालिक दयाल की मौज से संत प्रगट हुए और उन्होंने सब मतों की कसरें दिखला कर सुरत शब्द मार्ग का उपदेश किया।
हरचंद शुरू में बहुत कम जीवों ने उनके बचन को माना , फिर बहुत से उनकी बानी और बचन पढ़ने और सुनने लगे और थोड़ी बहुत उनको अपने परमार्थ की कसरों की खबर पडती गई।।।
( 16 ) फिर मौज से साध एक के पीछे कितने ही देशों में प्रगट हुए ,और उन्हें शब्द मार्ग का भेद उसी मुकाम तक का , जो कि वेदों का सिद्धांत है, प्रगट किया इसमें बहुत से जीव लग गये, पर उसमें से पूरे और सच्चे अभ्यासी कम निकले ।लेकिन संतों और साधो ने अपनी दया के बल से बहुत से जीवो का उद्धार किया।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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