#महर्षि_बाल्मीकि '१' ~
ब्रह्मा जी के कुल 59 मानस पुत्र हुए।उन्हीं मानस पुत्रों में से एक पुत्र थे प्रचेता । जिनके 10 वें पुत्र थे बाल्मीकि।
ये वही महर्षि बाल्मीकि थे जो तमसा नदी के किनारे कठोर तपस्या करके महर्षि कहलाये। कठोर तपस्या के बाद ब्रह्मा जी ने अपनी गोद से उत्पन्न हुए मानस पुत्र देवर्षि नारद जी को ज्ञानोपदेश देने के उद्देश्य से महर्षि बाल्मीकि के आश्रम ओर भेजा था।
देवर्षि नारदजी के आगमन के उपरांत उन्होंने देवर्षि नारद जी से ज्ञान की प्राप्ति की और भगवान श्री राम की कथा संक्षेप में सुनी।
तदोपरांत महर्षि बाल्मीकि एक बार अपने शिष्य भारद्वाज के साथ तमसा नदी में स्नान करने के उद्देश्य से पहुँचे जिन्होंने देखा कि कामोक्त क्रोंच पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी को बहेलिए ने मार गिराया इससे क्रुद्ध होकर महर्षि बाल्मीकि ने परमपिता ब्रह्मा जी की आज्ञा से एक श्लोक के रूप में उस बहेलिए पर क्रोध करते हुए श्राप दिया ~
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वत्तीः समाः । यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥ १५ ॥
हे बहेलिये ! तूने जो इस कामेन्मत्त नर पक्षी को मारा है, इस लिये सनेक वर्षा तक तू इस वन में मत आना ; अथवा तुझे सुख शान्ति न मिले ॥
इस अनायस ही क्रोध बस दिए गए शाप से महर्षि क्षुब्ध हुए और मन ही मन पश्चाताप करने लगे, लेक़िन इस श्लोक के निर्माण से आश्चर्य चकित भी ।
स्नानादि से निवृत हो महर्षि बाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे और दैनिक पूजा पाठ किया इसी बीच चतुर्मुख परमपिता स्वयं महर्षि के आश्रम पहुँचे और, अपने क्रोधवश दिए श्राप के कारण मस्तिष्क में श्लोक को बार बार दोहराते महर्षि बाल्मीकि से कहा ~
श्लोक एव त्वया बद्धो नान कार्या विचारणा। मच्छन्दादेव' ते ब्रह्मन्प्रवृत्तेयं सरस्वती ॥ ३१ ॥
है ऋषिश्रेष्ठ ! (ध्यान देने योग्य है स्वयं परमपिता ब्रह्मा जी ने महर्षि बाल्मीकि को #ऋषिश्रेष्ठ कह कर संबोधित किया है )यह तो तुमने श्लोक ही बना डाला है, इस पर कुछ विचार न कीजिये । मेरी ही प्रेरणा से या इच्छा से वह श्लोक तुम्हारे मुख से निकला है ॥
और महर्षि बाल्मीकि को आदेश दिया ~
रामस्य चरितं कृत्स्नं कुरु त्वमृषिसत्तम । धर्मात्मनो गुणवतो लोके रामस्य धीमतः ॥ ३२॥
वृत्तं कथय वीरस्य यथा ते नारदाच्छु तम् ।
रहस्यं च प्रकाशं च यद्वत्तं तस्य धीमतः ॥ ३३ ॥
लोकों में धर्मात्मा, गुणवान् और बुद्धिमान श्रीरामचन्द्र जी के छिपे हुए अथवा प्रकट सम्पूर्ण चरित्रों का वर्णन, तुम वैसे ही करो जैसे कि, तुम नारद जो के मुख से सुन चुके हो ॥
रामस्य सह सावित्री राक्षसानां च सर्वशः ।
वैदेयाश्चैव यद्वृत्तं प्रकाशं यदि वा रहः ॥ ३४ ॥
तच्चाप्यविदितं सर्वं विदितं ते भविष्यति ।
न ते वागनृता काचिदत्र भविष्यति ॥ ३५ ॥
श्रीरामचन्द, श्रीलक्ष्मण और श्रीजानकी जी के तथा राक्षसों के प्रकट अथवा गुप्त जो कुछ वृत्तान्त हैं- तुमको प्रत्यक्ष देख पड़ेंगे और इस काव्य में कहीं भी तुम्हारी कही हुई कोई बात मिथ्या न होगी ॥
उसके बाद ऋषिश्रेष्ठ बाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की, इसमें महर्षि बाल्मीकि कहीं डाकू दृष्टिगोचित नहीं जान पड़ते।
कृपया अपने मूल ग्रंथो का अध्यन करें और बामियों और आज के विद्वानों की मनगढंत कथाओं से बचें 🙏
......... क्रमशः #शिव ✍️
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