*राधास्वामी!! 28-06-2020-
आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) मन तू करले हिये धर प्यार। राधास्वामी नाम का आधार।। (प्रेमबानी-4-शब्द-8,पृ.सं.75)
(2) आज भींजे सुरत गुरू पेम रंग।।टेक।। (प्रेमबानी-2-शब्द-66,पृ.सं.332)- सतसंग के बाद पढे गये पाठ-
(1) हे गुरू मैं तेरे दीदार का आशिक जो हुआ। मन से बेजार सुरत वार के दीवाना हुआ।। (सारबचन-गजल पहली-पृ.सं.424)
(2) क्यूँ कर करूँ शुकराने मैं उनके। फिर फिर शुकराने करते है।।
(3) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरु यि कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलू कलाम। न बन आये मूझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।
नोट:-सभी पाठ विद्यार्थियों द्वारा पढे गये।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 28-06-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) होली खेलन ऋतु आई सखी रीः क्या भूल रही संसारी।।-( मगन होता य जाओ घर अपने। राधास्वामी चरन सिहारी।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-6-पृ.सं.294) (2) आज साहब घर मंगलकारी। गाय रही सखियाँ मिल सारी।।-(प्रेमभरी मेरी सुरत सुहागिन। गाय रही राधास्वामी गुन सारी।।)- (प्रेमबिलास-शब्द-1,भाग पहला,पृ.सं.01)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग-1-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 28-06 -2020
-आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 33)
इसी प्रकार सनातनधर्मी और आर्य भाई भी अनहद शब्द और सुरत- शब्द- अभ्यास का उपहास करते हैं। उदाहरणार्थ देखिये कबीर साहब का निरादर करते हुए स्वामी दयानंद जी ने 'सत्यार्थप्रकाश' में लिखा है -"कुछ मूर्ख लोग उसके जाल में फँस गये। जब मर गया तब लोगों ने उसको सिद्ध बना लिया। जो जो उसने जीते जी बनाया था उसको उसके चेले पढ़ते रहे । कान को मूंद के जो शब्द सुना जाता है उसको अनहत शब्द सिद्धान्त ठहराया, मन की वृति को "सुरति" कहते हैं । उसको उस शब्द सुनने में लगाना उसीको संत और परमेश्वर का ध्यान बतलाते हैं..................... इसमें आत्मा की उन्नति और ज्ञान क्या बढ सकता है ? यह केवल लड़कों के खेल के सामान लीला है " ।(पृष्ठ 377 तेरहवाँ हिंदी एडिशन)।
पर न मालूम ये कठोर वचन केवल संतमत के खंडन के निमित्त लिखे गए हैं या अपनी धर्मपुस्तकों से परिचय ना होने के कारण । क्योंकि स्वयं "सत्यार्थप्रकाश " के पृष्ठ ( 212) पर स्वामी दयानंदजी ने यह समझाने के लिए कि मनुष्य का सा मुख और जिव्हा न रखने वाला ईश्वर मनुष्यों पर वेद ज्ञान कैसे प्रकट करता है लिखा है-" क्योंकि मुख जिव्हा के व्यापार करें बिना ही अनेक व्यवहारों का विचार और शब्द उच्चारण होता रहता है। कानों को उंगलियों से मूंदो, सुनो कि बिना मुख, जिव्हा ,तालू आदि स्थानों के कैसे-कैसे शब्द हो रहे हैं ,वैसे जीवों को अंतर्यामी रूप से उपदेश किया है"।
इस लेख में अंतरी शब्द के अस्तित्व को प्रकट रूप से स्वीकार किया गया है और अंतरी शब्द को ईश्वर के संसार में वेद ज्ञान प्रकट करने का द्वारा ठहराया है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग पहला
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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