. गौ माता की जय हो । ।
जीवन मे रुपया पैसा चाहे कितना भी आ जाए लेकिन रुपयो पैसो से ओर सोने चांदी से भगवान को बांध नही पाओगे---भगवान सोने या चांदी की जंजीरो से नही बंधते बल्कि भगवान तो आंसुओ मे अर्थात् प्रेम मे बंध जाते है-- रीझत राम स्नेह निसोतें।-- (बालकाण्ड)-- रामचरितमानस
कथाओ से ही ह्रदय मे भाव जागृत होगा ,,प्रभु को पाने की प्यास बढेगी ओर प्यास बिहारी जी को खींच लायेगी ईसलिए जीवन मे हमेशा कथारस का पान करते रहना चाहिये-- जीवन मे अगर भगवान के प्रति शरणागति नही है,,जीवन मे अगर भक्ति नही है तो जीवन अशांत ओर तनावपुर्ण बना रहता है लेकिन जब जीवन मे हरि कृपा ओर गुरु कृपा से भक्ति का प्राकट्य होता है तो हर क्षण मनुष्य उत्साह से ओर आनंद मे डुबा रहता है--
*नित्य उत्सवा:* गोकुल मे नित्य उत्सव होते थे --
जब जीवन मे बांके बिहारी भक्ति रुप बनकर प्रकट होते है तो भक्त के ह्रदय मे भी नित्य भाव प्रकट होते रहते है-- भक्त भक्ति की मस्ती मे,,उत्साह मे निरंतर डुबे रहते है ओर भगवान की प्राप्ति की कामना तीव्र जागने पर भक्तो को भगवान की प्राप्ति भी होती है--मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा,उत्तरकाण्ड,(रामचरितमानस)---
ईसलिए अपने जीवन का मंथन करते रहो ओर देखना चाहिये की जीवन मे कहां कमी है --
आखिर मनुष्य अपने जीवन मे ईतना तनाव मे ओर अशांत क्यो रहता है?? ईन सबका मुल कारण अज्ञानता है--
मनुष्य संसार के प्रति ईतना ज्यादा आसक्त है की अपने जीवन के मोल को भुला बैठता है,-मनुष्य ईतना ज्यादा व्यस्त हो गया है की उसके पास कथाओ का रसपान करने के लिए भी समय नही है-- ओर यही कारण है की मनुष्य परेशान रहता है---
दूनिया के लिए तो मनुष्य के पास समय होता है लेकिन भगवान के लिए समय नही है--
जिसने ईतना सुंदर मानव जीवन दिया ,जो हरपल मनुष्य के साथ है उस भगवान के प्रति मनुष्य आसक्ति नही रखता ओर जो संसार कभी किसी का नही हुआ उस संसार के प्रति मनुष्य आसक्त है ओर यही कारण है की आज समाज मे ईंसान के चेहरे पर उदासी है --
ईसलिए शास्त्र बार-बार कहते है की प्रभु ने जो जिम्मेदारियां सौंपी है उनको तो मोहरहित होकर अवश्य निभाओ लेकिन भगवान के नाम ,गुण,कथाओ मे गहरी आसक्ति रखो---
भगवान के प्रेम मे जब जीवन रंग जायेगा तो जीवन आनंद से भर जायेगा ओर प्रभु की प्राप्ति होगी---- ये जीवन अशांत रहने के लिए ओर तनाव मे रहने के लिए नही मिला--
भगवान कभी नही चाहते की मानव अशांत रहे --
लेकिन मनुष्य अपने अहंकार ओर घमण्ड मे रहते हुए भगवान से विमुख होकर संसार मे आसक्त हो जाता है ईसलिए ईंसान दुखी रहता है--
सुख आने पर अहंकार मे चलता है ओर दुख आने पर रोने लगता है लेकिन जो भगवान मे आसक्ति रखते है उनपर सुख दुख का कोई प्रभाव नही पडता--
★ राम भक्ति मनि उर बस जाकें--
दुख लवलेस न सपनेहुँ ताकें--(उत्तरकाण्ड ,रामचरितमानस)★
जब भगवान की कृपा से जीवन मे भक्ति जागृत होती है तो भक्त भक्ति के उत्साह मे निरंतर डुबे रहते है,,-
भगवान से विमुख होकर कोई भी जीव आनंद प्राप्त नही कर सकता--
हिम ते अनल प्रगट बरु होई। बिमुख राम सुख पाव न कोई--(उत्तरकाण्
ड,रामचरितमानस)---
अर्थात् भले ही बर्फ से अग्नि भी प्रकट क्यों ना हो जाए लेकिन भगवान से विमुख होकर जीव सुखी नही रह सकता----
भक्ति सुतंत्र सकल सुखखानि,,बिनु सत्संग न पावहि प्रानी-- ईसलिए कथारस का पान हमेशा करते रहना चाहिये-- तुलसीदास जी लिखते है की अगर जीवन मे उजाला चाहते हो तो मुख रुपि द्वार की जीभ रुपि देहली पर भगवान के नाम रुपि मणि-दीपक को रखो-- भगवान के नाम ओर कथाओ मे आसक्ति रखो--
* राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर-----
★यन्नामकीर्तनं भक्त्या विलापनमनुत्तमम्। मैत्रेयाशेषपापानां धातूमिव पावकः----- 'जैसे अग्नि सुवर्ण आदि धातुओं के मल को नष्ट कर देती है, ऐसे ही भगवान का कीर्तन सब पापों के नाश का अत्युत्तम साधन है---
---- मनुष्य जिन भोगो मे आसक्ति रखकर उनको भोगता है उन भोगो की आसक्ति के कारण ही मनुष्य के जन्म जन्मांतर बर्बाद हो जाते है ओर मनुष्य को वास्तविक सुख नही मिल पाता,--*भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता*
ईसलिए शास्त्र कहते है की आसक्ति सबसे बुरी होती है-- आसक्ति अगर भोगो मे होगी तो जीवन बर्बाद हो जाएगा ओर अगर आसक्ति भगवान से हो जायेगी तो जीवन सफल हो जायेगा---
भोगो को भोगना गलत नही है लेकिन निरासक्त होकर भोगना चाहिये--
जैसे जब भुख लगती है तो भोजन करना पडता है --
भोगो को भोगने के लिए शास्त्र मना नही करता--
शास्त्र कहते है की भोगो मे आसक्ति नही रखनी चाहिये ---
आसक्ति- मोह सिर्फ भगवान के नाम गुण कथाओ मे रखनी चाहिये-
जीवन मे वास्तविक सुख तो केवल भगवान के नाम,गुण ओर कथाओ से आसक्ति रखने से मिलेगा,--- बांके बिहारी अपने भक्त से ईतना ज्यादा प्रेम करते है की दूनिया साथ छोड जायेगी लेकिन बांके बिहारी अपने भक्त का साथ कभी नही छोडते-- परिक्षित के जीवन को भी भगवान ने सुधारा ओर मृत्यु को भी सुधारा---
हर भक्त की भगवान रक्षा करते है- जब कोई व्यक्ति भक्तिमार्ग पर चलता है तो दूनिया उसे पीछे हटाने का प्रयास करती है लेकिन सच्चा साधक ,सच्चा प्रेमी तो वो है जो किसी के बहकावे मे नही आता--
दूनिया चाहे लाख कोशिश करे लेकिन भक्तिमार्ग से पीछे नही हटना चाहिये-- सत्यमेव जयते--
जो सत्य मार्ग पर चलेगा वही प्रभु को पायेगा ईसलिए निडर होकर ओर पुर्ण श्रद्धा विश्वास ओर लगन के साथ भक्तिमार्ग पर चलते रहना चाहिये--मीरा कहती है-
या बदनामी लागे मीठी राणाजी ! म्हाँने या बदनामी लागे मीठी--भगवान कहते हैं-
वाग् गद्गदा द्रवते यस्य चित्तं रुदत्यभीक्ष्णं हसति क्वचिच्च ।
विलज्ज उद्गायति नृत्यते च मद्भक्तियुक्तो भुवनं पुनाति ।।
'मेरा नाम-गुण-कीर्तन करते समय जिसका गला भर आता है, हृदय द्रवित हो जाता है, जो बार-बार मेरे प्रेममें आंसु ढालता है, कभी हँसने लगता है, कभी लाज-शर्म छोड़कर उच्च स्वरसे गाने और नाचने लगता है, ऐसा मेरा भक्त समस्त संसार को पवित्र कर देता है----ईसलिए पीबत भागवत रसमालयं--कथाओ को ह्रदय मे उतार लेना बहुत आवश्यक है-- कथाओ का रस पान करने पर ही जीवन मे भक्ति जागृत होती है।
# गाय माता राष्ट्रीय सेवक दल ।।
व्हाट्सएप: #7597394444
No comments:
Post a Comment