[6/25, 05:28] Morni कृष्ण मेहता: 🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺
*********|| जय श्री राधे ||*********
🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺
🙏🌺🙏 *अथ पंचांगम्* 🙏🌺🙏
*********ll जय श्री राधे ll*********
🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺
*दिनाँक -: 25/06/2020,गुरुवार*
चतुर्थी, शुक्ल पक्ष
आषाढ
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल)
तिथि ----------चतुर्थी 08:47:01 तक
पक्ष ---------------------------शुक्ल
नक्षत्र -------आश्लेषा 12:25:37
योग -------------हर्शण 06:56:15
योग ---------------वज्र 28:30:42
करण ------विष्टि भद्र 08:47:01
करण -------------बव 19:56:44
वार -------------------------गुरूवार
माह -------------------------- आषाढ
चन्द्र राशि --------कर्क12:25:37
चन्द्र राशि --------------------सिंह
सूर्य राशि --------------------मिथुन
रितु ----------------------------ग्रीष्म
सायन ---------------------------वर्षा
आयन --------------------उत्तरायण
सायन -------------------दक्षिणायण
संवत्सर -----------------------शार्वरी
संवत्सर (उत्तर) -------------प्रमादी
विक्रम संवत ----------------2077
विक्रम संवत (कर्तक) ----2076
शाका संवत ----------------1942
वृन्दावन
सूर्योदय ----------------05:26:49
सूर्यास्त -----------------19:17:03
दिन काल -------------13:50:13
रात्री काल -------------10:10:04
चंद्रोदय ----------------09:09:07
चंद्रास्त -----------------22:51:34
लग्न ----मिथुन 9°46' , 69°46'
सूर्य नक्षत्र --------------------आर्द्रा
चन्द्र नक्षत्र ----------------आश्लेषा
नक्षत्र पाया --------------------रजत
*🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩*
डे ----आश्लेषा 06:38:15
डो ----आश्लेषा 12:25:37
मा ----मघा 18:11:53
मी ----मघा 23:57:07
*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
========================
सूर्य=मिथुन 09°22 ' आर्द्रा, 1 कु
चन्द्र = कर्क 12°23 ' अश्लेषा' 3 डे
बुध = मिथुन 19 °10 ' आर्द्रा ' 4 छ
शुक्र= वृषभ 11°55, रोहिणी ' 1 ओ
मंगल=मीन 03°30' उo भा o ' 1 दू
गुरु=मकर 00°42 ' उ oषाo , 2 भो
शनि=मकर 06°43' उ oषा o ' 4 जी
राहू=मिथुन 04°50 ' मृगशिरा , 4 की
केतु=धनु 04 ° 50 ' मूल , 2 यो
*🚩💮🚩शुभा$शुभ मुहूर्त🚩💮🚩*
राहू काल 14:06 - 15:50 अशुभ
यम घंटा 05:27 - 07:11 अशुभ
गुली काल 08:54 - 10:38 अशुभ
अभिजित 11:54 -12:50 शुभ
दूर मुहूर्त 10:04 - 10:59 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:36 - 16:31 अशुभ
🚩गंड मूल अहोरात्र अशुभ
💮चोघडिया, दिन
शुभ 05:27 - 07:11 शुभ
रोग 07:11 - 08:54 अशुभ
उद्वेग 08:54 - 10:38 अशुभ
चर 10:38 - 12:22 शुभ
लाभ 12:22 - 14:06 शुभ
अमृत 14:06 - 15:50 शुभ
काल 15:50 - 17:33 अशुभ
शुभ 17:33 - 19:17 शुभ
🚩चोघडिया, रात
अमृत 19:17 - 20:33 शुभ
चर 20:33 - 21:50 शुभ
रोग 21:50 - 23:06 अशुभ
काल 23:06 - 24:22* अशुभ
लाभ 24:22* - 25:38* शुभ
उद्वेग 25:38* - 26:55* अशुभ
शुभ 26:55* - 28:11* शुभ
अमृत 28:11* - 29:27* शुभ
💮होरा, दिन
बृहस्पति 05:27 - 06:36
मंगल 06:36 - 07:45
सूर्य 07:45 - 08:54
शुक्र 08:54 - 10:04
बुध 10:04 - 11:13
चन्द्र 11:13 - 12:22
शनि 12:22 - 13:31
बृहस्पति 13:31 - 14:40
मंगल 14:40 - 15:50
सूर्य 15:50 - 16:59
शुक्र 16:59 - 18:08
बुध 18:08 - 19:17
🚩होरा, रात
चन्द्र 19:17 - 20:08
शनि 20:08 - 20:59
बृहस्पति 20:59 - 21:50
मंगल 21:50 - 22:40
सूर्य 22:40 - 23:31
शुक्र 23:31 - 24:22
बुध 24:22* - 25:13
चन्द्र 25:13* - 26:04
शनि 26:04* - 26:55
बृहस्पति 26:55* - 27:45
मंगल 27:45* - 28:36
सूर्य 28:36* - 29:27
*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*💮दिशा शूल ज्ञान-------------दक्षिण*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा केशर खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*🚩 अग्नि वास ज्ञान -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
4 + 5 + 1 = 10 ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*💮 शिव वास एवं फल -:*
4 + 4 + 5 = 13 ÷ 7 = 6 शेष
क्रीड़ायां = शोक ,दुःख कारक
*🚩भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
प्रातः 08:47 तक समाप्त
मृत्यु लोक = सर्वकार्य विनाशिनी
*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*
*💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮*
ये तु संवत्सरं पूर्ण नित्यं मौनेन भुंजते ।
युगकोटि सहस्त्रन्तु स्वर्गलोके महीयते ।।
।।चा o नी o।।
जो व्यक्ति एक साल तक भोजन करते समय भगवान् का ध्यान करेगा और मुह से कुछ नहीं बोलेगा उसे एक हजार करोड़ वर्ष तक स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी.
*🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩*
गीता -: विभूतियोग अo-10
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।,
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥,
जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है॥,3॥,
*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
🐏मेष
विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। शत्रु पस्त होंगे। उनकी एक नहीं चलेगी। किसी मांगलिक-आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। मनपसंद भोजन का आनंद प्राप्त होगा। हल्की हंसी-मजाक से बचें। कार्यक्षेत्र में उत्साह व प्रसन्नता बनी रहेगी।
🐂वृष
शत्रु सक्रिय रहेंगे। सावधानी आवश्यक है। घर-परिवार की चिंता रहेगी। चोट व रोग से बचें। कष्ट संभव है। लेन-देन में जल्दबाजी न करे। भूमि व भवन संबंधी कार्य मनोनुकूल लाभ देंगे। आय के नए स्रोत प्राप्त हो सकते हैं। रोजगार में वृद्धि होगी। कारोबार में वृद्धि होगी। यात्रा संभव है।
👫मिथुन
विवेक से कार्य करें। सुख के साधन जुटेंगे। पूजा-पाठ में मन लगेगा। कोर्ट व कचहरी के कार्य मनोनुकूल रहेंगे। आय के नए साधन प्राप्त हो सकते हैं। नौकरी में सहकर्मी विशेषकर महिला वर्ग से लाभ होगा। व्यापार-व्यवसाय लाभप्रद रहेगा। किसी बात का विरोध हो सकता है। कष्ट व भय बने रहेंगे।
🦀कर्क
शत्रु कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। वाहन व मशीनरी के कार्यों में सावधानी रखें। पुराना रोग उभर सकता है। किसी व्यक्ति विशेष से कहासुनी हो सकती है। वाणी पर नियंत्रण रखें। समय पर किसी कार्य का भुगतान नहीं कर पाएंगे। व्यापार-व्यवसाय साधारण रहेगा।
🐅सिंह
दुष्टजनों से सावधान रहें। शारीरिक कष्ट से बाधा तथा हानि संभव है। बेचैनी रहेगी। कोर्ट व कचहरी के काम मनोनुकूल रहेंगे। जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होगा। नौकरी में मातहतों का साथ रहेगा। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। अज्ञात भय रहेगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। प्रसन्नता रहेगी।
🙎♀️कन्या
परिवार के छोटे सदस्यों की अध्ययन तथा स्वास्थ्य संबंधी चिंता रहेगी। विवाद से क्लेश संभव है। दूर से दु:खद समाचार मिल सकता है। पुराना रोग उभर सकता है। भागदौड़ अधिक होगी। लाभ में कमी रहेगी। उत्साह की कमी महसूस करेंगे। व्यापार ठीक चलेगा।
⚖️तुला
सामाजिक कार्य करने का मन बनेगा। थोड़े प्रयास से ही रुके काम बनेंगे। पराक्रम व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। उत्साह व प्रसन्नता से कार्य कर पाएंगे। धन प्राप्ति सुगम होगी। कारोबार में वृद्धि होगी। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। अधिकारी वर्ग प्रसन्न रहेगा। निवेश शुभ रहेगा। थकान व कमजोरी रह सकती है।
🦂वृश्चिक
सुख के साधनों पर बड़ा खर्च हो सकता है। लेन-देन में सावधानी रखें। अज्ञात भय रहेगा। चिंता तथा तनाव रहेंगे। भूले-बिसरे साथियों से मुलाकात होगी। शुभ समाचारों की प्राप्ति से प्रसन्नता रहेगी। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। कोई बड़ा काम करने की इच्छा प्रबल होगी।
🏹धनु
स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। सुख के साधन जुटेंगे। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल लाभ देंगे। निवेशादि शुभ रहेंगे। उत्साह में वृद्धि होगी।
🐊मकर
सामाजिक कार्य करने की इच्छा रहेगी। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। काफी समय से लंबित कार्यों में गति आएगी। लाभ के अवसर बढ़ेंगे। कारोबारी नए अनुबंध हो सकते हैं। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। प्रसन्नता बनी रहेगी। राजमान व यश में वृद्धि होगी। किसी प्रभावशाली व्यक्ति से परिचय होगा।
🍯कुंभ
राजभय रहेगा। जल्दबाजी व लापरवाही न करें। विवाद को बढ़ावा न दें। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। कर्ज लेना पड़ सकता है। चिंता तथा तनाव बने रहेंगे। कुसंगति से बचें। हानि होगी। कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय सोच-समझकर करें। व्यापार-व्यवसाय की गति धीमी रहेगी।
🐟मीन
वैवाहिक प्रस्ताव विवाह के उम्मीदवारों का इंतजार कर रहा है। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। अनहोनी की आशंका रह सकती है। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। आय में वृद्धि होगी। प्रसन्नता बनी रहेगी।
🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺
[6/25, 05:31] Morni कृष्ण मेहता: दो दिनों पहले पुरी में जगन्नाथ यात्रा हुई थी| यह एक भव्य और दर्शनीय नज़ारा था|
यह शोभायात्रा उड़ीसा के लोगों और उन हिन्दू शासकों द्वारा पुरी पर हुए बारम्बार आक्रमणों का दंश झेलने और उससे इसे सुरक्षित बचाने का उत्सव भी है|
लेकिन वक्त हमेशा इतनी भयावह नहीं था। पुरी के इतिहास की सराहना करना महत्वपूर्ण है, यह समझने के लिए कि आज यह भव्य शोभायात्रा निकालना एक बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। बहुत कुछ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तरह है, जो मुगल शासन के तहत लंबे अंधकार के बाद महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिख शासन की उजाले को दर्शाता है, पुरी स्थित मंदिर भी एक हिंसक इतिहास का उत्तरजीवी है। एक इतिहास, जिसमें मंदिर की रक्षा के लिए लड़ाई हुई और मूर्तियों को जलाने का प्रयास किया गया। मंदिर पर 800 ई. से 1740 ई. के बीच सत्रह से कम हमले नहीं हुए, जिनमें से सोलह तो 1390 ई. से शुरू होने वाली चार शताब्दियों से भी कम समय में हुए।
मूर्तियाँ लकड़ी की बनी होती हैं, विशेष रूप से नीम के पेड़ की और प्रत्येक मूर्ति में एक गुहा होती है, जिसे “ब्रह्मपदार्थ” कहा जाता है। कोई नहीं जानता कि यह क्या है। हर बारह से पंद्रह साल बाद मूर्तियों को बदल दिया जाता है और ब्रह्मपदार्थ मूर्तियों के एक नए सेट में स्थानांतरित हो जाता है। पूरे समारोह को पुजारियों की आंखों पर पट्टी बांधकर गोपनीयता के साथ संपन्न कराया जाता है। आखिरी बार यह 2015 में हुआ था। इस समारोह को खुद नबकलेवर कहा जाता है। इस लेख में, “मूर्ति” शब्द का अर्थ जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा की लकड़ी की मूर्त्तियों से है|
लगभग हर बार, मूर्तियों (या ब्रह्मपदार्थ) को समय रहते बचा लिया गया और कहीं और ले जाया गया। हर बार उन्हें पुरी वापस लाया गया और पूजा फिर से शुरू हुई। ऐसा एक या दो बार नहीं बल्कि चार सौ साल के दौरान अठारह बार हुआ। इस पर इतनी बार आक्रमण क्यों किया गया? शायद, जगन्नाथ पुरी मंदिर के महत्व के कारण; न केवल मंदिर के पास बहुत अधिक धन था, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि पुरी के देवता ओडिशा के मालिक थे। ओडिशा के 12 वीं शताब्दी के राजा – अनंगभीमदेव तृतीय ने स्वीकार किया था कि मालिक जगन्नाथ थे और वे केवल उनके नाम पर शासन कर रहे थे। ऐसा ही विचार उदयपुर के पास एकलिंगजी मंदिर के साथ भी है। मेवाड़ के राणाओं ने एकलिंगजी को सर्वोपरि माना और खुद को उनके नाम के शासक। दिलचस्प बात है कि हजारों मील की दूर के दो शासक के विचारों में एकरूपता है। इससे मंदिर को किसी भी कीमत पर बचाने का लक्ष्य हासिल हुआ। इसलिए, मंदिर पर हमला करना उड़िया चेतना की जड़ पर प्रहार करना और लोगों का मनोबल गिराने जैसा था।
हम में से बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि ओडिशा मुस्लिम शासन के अधीन 1568 ई. के अंत तक आया – बंगाल के तीन शताब्दी से अधिक के बाद और पश्चिम आंध्र क्षेत्र के मुस्लिम शासन के अधीन आने के भी कई वर्षों के बाद| और 1751 तक, नागपुर स्थित भोसले द्वारा छापामार युद्ध में विजय के बाद, ओडिशा पर बंगाल नवाबों का शासन समाप्त हो गया। गंगवंश के नरसिंहवर्मन और गजपति राजवंश के कपिलेंद्रदेव जैसे योद्धाओं ने न केवल ओडिशा को क्षत-विक्षत होने से रोका, बल्कि इसकी संस्कृति और मंदिर आधारित जीवन को उचाईयों पर ले गए। लेकिन जगन्नाथ पुरी पर कई बार हमले का प्रयास हुआ। उड़िया राजाओं ने अपने शासन का बचाव कैसे किया, मैं इस बारे में बाद के एक लेख में लिखूंगा, लेकिन यहाँ मैं उन अठारह आक्रमणों को संक्षेप में बताऊंगा जो जगन्नाथ पुरी को झेलने पड़े।
पहला आक्रमण
पहला आक्रमण 9 वीं शताब्दी में, राष्ट्रकूट राजा – गोविंद तृतीय द्वारा किया गया था। मूर्त्तियों को स्थानीय पुजारियों द्वारा कहीं और ले जाया गया और छिपा दिया गया। अन्य हिंदू राजाओं के मंदिरों पर हिंदू राजाओं के हमले कुछ बार हुए, लेकिन इसका बुरा परिणाम ज्यादा से ज्यादा यह होता था कि मूर्तियों को अन्यत्र पूजा जाने लगता था। मूर्तियों को नष्ट कर देने का प्रयास, जो भविष्य के अधिकांश आक्रमणों की पहचान है, इस अकरम में वैसा नहीं हुआ। राष्ट्रकूट आक्रमण का अर्थ केवल शासक परिवर्तन था, संस्कृति बदलने का प्रयास नहीं।
दूसरा आक्रमण
पहले आक्रमण के बाद, अगली पांच शताब्दियों के लिए, पुरी में मंदिर को कोई नुक्सान नहीं पहुँचाया गया। 1340 ई में, बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने मंदिर पर हमला किया। इलियास शाह वह व्यक्ति था जिसने “बंगाल सल्तनत” की स्थापना की – जो कि विभिन्न रूपों में और विभिन्न शासकों के अधीन, दिल्ली के पक्ष या विरोध में, 1757 ई. में प्लासी के युद्ध तक कायम रहा। आक्रमण से बहुत विनाश हुआ, लेकिन मूर्तियों को छिपा दिया गया और इसलिए मूर्त्तियां बच गयीं।
तीसरा आक्रमण
बीस साल बाद, फिरोज शाह तुगलक ने आक्रमण किया। कुछ का मानना है कि उसने वास्तव में मूर्तियों को हथिया लिया और उन्हें समुद्र में फेंक दिया, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई है। फिरोज शाह तुगलक ने बाराबती में भी कुछ मंदिरों को नष्ट किया।
चौथा आक्रमण
चौथा आक्रमण प्रतापरुद्रदेव (1497 से 1540) के शासनकाल के दौरान हुआ। उसने राज्य की उत्तरी सीमाओं को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया था, इसलिए बंगाल सुल्तान के एक कमांडर इस्माइल गाजी के पास राज्य पर आक्रमण करना और पुरी तक पहुंचना आसान हो गया था। पुरी पहुँचने से पहले उसके द्वारा किये गए विनाश को देखकर जगन्नाथ मंदिर के पुजारी मूर्तियों को भगा ले गए और उन्हें चिल्का झील के चढ़ेइगुहा द्वीप पर छिपा दिया। प्रतापरुद्रदेव ने आखिरकार एक बड़ी सेना को एकत्र कर इस्माइल गाजी को वापस बंगाल तक खदेड़ दिया, लेकिन नुकसान तो हो चुका था।
पाँचवा आक्रमण
पाँचवाँ आक्रमण, जो सर्वाधिक विनाशकारी आक्रमण था, 1568 ई. में कालापहाड़ द्वारा किया गया था। इसने ओडिशा में हिंदू शासन के अंत का भी संकेत दे दिया था| इस कालापहाड़ की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वह राजीव लोचन रे नाम का एक हिंदू था, जिसे सुलेमान कर्रानी की बेटी से प्यार हो गया था। कर्रानी बंगाल का सुल्तान था। इसके रिश्ते के सामाजिक विरोध के कारण, उन्होंने अपना धर्मांतरण कर लिया और हिंदुओं के लिए स्वधर्मत्यागी बन गया। एक अन्य सिद्धांत यह है कि राजीव रे की कहानी मनगढ़ंत है और बंगाल सुल्तान की सेना में कालापहाड़ एक अफगान सेनापति था।
जो कुछ भी हो, एक मूर्ति-भंजक और बुतशिकन (मूर्ति तोड़ना) में धुरंधर के रूप में उसका नाम बेशक चर्चित है। 1568 ई. में ओडिशा पर उसके आक्रमण ने अंतिम हिंदू शासक को मिटा दिया और पुरी जैसे स्थानों को विशेष रूप से ज्यादा क्षति उठानी पड़ी। मूर्तियों को एक बार फिर किसी तरह चिल्का झील ले जाया गया। लेकिन कालापहाड़ को उनकी स्थान का पता चल गया और उसने मूर्तियों को तोड़ने और उनमें आग लगा देने के लिए आगे बढ़ा। एक तीर्थयात्री जली हुई मूर्तियों से ब्रह्मपदार्थ को पुनः प्राप्त करने में कामयाब रहा और उसे अपने मृदंग में छिपा कर रख लिया। लेकिन ओडिशा में शासक मुकुंददेव की हार और मृत्यु के साथ ही हिंदू शासन इस आक्रमण के परिणामस्वरूप समाप्त हो गया।
1575 ई. में रामचंद्रदेव नाम के एक राजा द्वारा पुरी में ब्रह्मपदार्थ को लाकर नयी मूर्त्तियों में पुनःस्थापित किया गया।
छठा आक्रमण
अगला बड़ा आक्रमण महज सत्रह साल बाद सुलेमान नाम के व्यक्ति ने किया, जो उसके पूर्ववर्ती सुलेमान कर्रानी का हमनाम था, जिसने 1592 ई. में मंदिर पर हमला किया था। पुरी के लोग बड़ी संख्यां में मारे गए और मंदिर पर हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप कई मूर्तियों को तोड़ दिया गया। इस बार, मुगल सम्राट अकबर ने इन गतिविधियों को दबाने के लिए मान सिंह को ओडिशा भेजा। रामचंद्रदेव प्रथम को खुर्दा के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त हुई और जगन्नाथ मंदिर का प्रबंधन उन्हें सौंप दिया गया। लेकिन एक पीढ़ी तक बंगाल सुल्तानों के अधीन रहने के बाद यह प्रांत अब मुगलों के अधीन आ गया। इस मुगलों के अदीन आने का व्यापक प्रभाव हुआ। अकबर के मरने के तुरंत बाद, चीजें वापस वैसी हो गईं।
सातवां आक्रमण
पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में पुरी में मंदिर पर छह अलग-अलग आक्रमण हुए। 1607 ई. में, मिर्ज़ा ख़ुरम नाम के बंगाल नवाब के एक कमांडर ने हमला किया, लेकिन मूर्तियों को कपिलेश्वर ले जाकर बचाया गया, जो लगभग पुरी से पचास किलोमीटर दूर है। लगभग एक साल बाद पुरी मंदिर में मूर्तियों को फिर से स्थापित किया गया।
आठवां आक्रमण
कुछ साल बाद, ओडिशा के मुगल सूबेदार कासिम खान ने मंदिर पर हमला किया। मूर्तियों को छिपाकर खुर्दा ले जाया गया, जहां उन्हें गोपाल मंदिर में स्थापित किया गया। मुगल शासक जहाँगीर को संतुष्ट करने को उत्सुक कासिम खान ने इस मंदिर के शहर में भरी लूटपाट मचाया| मूर्तियों को फिर एक बार पुरी लाया गया जब इस आक्रमण से उड़ी धूल बैठ गई।
नवां आक्रमण
ऐसा नहीं था कि केवल मुस्लिम आक्रमणकारियों ने ही पुरी पर हमला किया था। नौवाँ आक्रमण केसोदारमारू नाम के व्यक्ति द्वारा किया गया था। 1610 ई. की रथयात्रा के दौरान, जब मूर्तियाँ गुंडिचा मंदिर (जगन्नाथ मंदिर के करीब) में थीं, कासिम खान के इस वफादार सेवक ने पुरी में जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र पर हमला किया और वहां कब्जा कर लिया। वह इस आक्रमण के दौरान जगन्नाथ पुरी रथों को आग लगाने के लिए भी कुख्यात है। मंदिर में वह आठ महीने तक कब्ज़ा जमाये रहा, इस दौरान पुरुषोत्तम देव ने उनका विरोध करने की कोशिश की। अंत में, जहाँगीर को तीन लाख रुपये की घूस देने के कारण जगन्नाथ पुरी में मूर्तियों को पुनःस्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
दसवां आक्रमण
कासिम खान का बाद, कल्याण मल, जो टोडरमल (अकबर का प्रसिद्ध दरबारी) का पुत्र था, ओडिशा का सूबेदार बन गया। उसने दसवां आक्रमण, यह देखते हुए किया कि नौवें आक्रमण से खजाने में तीन लाख की बढ़ोत्तरी हुई। मूर्तियों को पहले ही चिल्का झील के मैसमारी में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह 1611 ई की बात है।
ग्यारहवां आक्रमण
कल्याणमल ने फिर से आक्रमण कर पुरी को लूटा|
बारहवां आक्रमण
1612 ई. में, जहाँगीर ने मुकर्रम खान को ओडिशा का सूबेदार नियुक्त किया, और उसने भी अपने तीन पूर्ववर्तियों की तरह मंदिर पर आक्रमण की परंपरा को जारी रखा। मुकर्रम खान ने निर्दयता से शहर पर हमला किया और कई मूर्तियों को तोड़ दिया, लेकिन जगन्नाथ मंदिर पर उसके आक्रमण की आशंका से मंदिर के महत्त्वपूर्ण वस्तुओं और मूर्त्तियों को गोपपद ले जाया गया और फिर बांकनिधि मंदिर में ले जाया गया। इसके तुरंत बाद पानी में डूबने के कारण मुकर्रम खान की मृत्यु हो गई।
तेरहवां आक्रमण
यह मंदिर पर हमला नहीं था, बल्कि शाहजहाँ की राजनीतिक झगड़ा सुलझाने के क्रम में प्रान्त जीतते हुए आगे बढ़ते पूरे उड़ीसा पर हमला था। फिर मंदिर के तोड़े जाने की आशंका से मूर्तियों को कहीं और स्थानांतरित कर दिया गया।
चौदहवां आक्रमण
अमीर मुतकाद खान ने नरसिंह देव की मृत्यु के बाद की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाते हुए जगन्नाथ पुरी मंदिर पर हमला किया और इसे लूट लिया।
पन्द्रहवां आक्रमण
1647 ई. में, मुगल सूबेदार मुदबाक खान ने मंदिर पर हमला किया और प्रचंड लूट और हत्याएं कीं।
सोलहवां आक्रमण
औरंगजेब के उल्लेख के बिना आक्रमणों की सूची कैसे पुरी हो सकती है? 1692 ई. में, सह्याद्री में मराठों से लड़ते हुए, उसने मंदिर को जमींजोद कर देने का आदेश जारी किया। इससे पहले उसके शासनकाल में, कई मंदिर तोड़े गए थे – सबसे प्रसिद्ध काशी, मथुरा और सोमनाथ में। जगन्नाथ पुरी उसके घोषित उद्देश्यों में से एक था। तबज़िरत उल नाज़रीन और मडाला पणजी दोनों कहते हैं कि औरंगज़ेब ने मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट करने के आदेश जारी किया। बनर्जी द्वारा उड़ीसा का इतिहास इस घटना के वर्ष को 1697 ई. बताता है। लेकिन, यह तथ्य कि, ओडिशा का मुगल कमांडर एकराम खान वास्तव में मंदिर में घुसकर इसे क्षतिग्रस्त किया, कई वृत्तांतों में उल्लेख मिलता है। ब्रह्मपदार्थ को बचाकर बिमला मंदिर ले जाया गया और खुर्दा के शासक दिव्यसिंह प्रथम द्वारा संरक्षित किया गया। लकड़ी के मूर्त्तियों को जिसमें ब्रह्मपदार्थ रखा गया था, एकराम खान द्वारा नष्ट कर दिया गया था, हालांकि एक सूत्र से यह भी उल्लेख मिलता है कि वे चिल्का झील के पास बानापुर में स्थानांतरित कर दिए गए थे।
सत्रहवां आक्रमण
1717 ई. के आसपास मोहम्मद तकी खान ओडिशा का नायब नाज़िम या उप-राज्यपाल बना और 1733 ई. में पुरी के मंदिर पर हमला किया, जिससे व्यापक विनाश हुआ। पिछली बार की तरह जैसे ही पुजारियों को आसन्न हमले की हवा लगी वैसे ही मूर्तियों को दूर स्थानांतरित कर दिया गया, विभिन्न स्थानों से होते हुए अंततः कोडाला में एक पहाड़ी पर मंदिर में स्थापित किया गया, जहां 1736 ई. तक उनकी पूजा होती रही। मोहम्मद तकी खान की मृत्यु होने पर मूर्तियों को पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में वापस स्थापित कर दिया गया। किसी को ऐसा लग सकता है कि पुरी में 1699 ई. से 1733 ई. तक के बीच शांत बहाल थी। ऐसा नहीं था। मुगल साम्राज्य के पतन हो रहे होने के कारण यह एक असहज शांति थी।
मराठों का आगमन और जगन्नाथ पुरी का कायाकल्प
यहां, हमें मंदिर के आक्रमण पर आक्रमण की गाथा को रोककर एक पचास वर्षीय अवधि पर नज़र डालना चाहिए, जिस दौरान ओडिशा में न केवल मुस्लिम शासन का विनाश हुआ बल्कि जगन्नाथ पुरी मंदिर आक्रमणों से मुक्त हुआ, और मराठा, या विशेष रूप से नागपुर के भोसले द्वारा इसका सांस्कृतिक कायाकल्प किया गया । उन्होंने 1742 ई. में ओडिशा पर आक्रमण करना शुरू किया, और 1751 ई. तक बंगाल नवाब – अलीवर्दी खान को प्रांत से बाहर खदेड़ दिया। इसके बाद की शांतिकाल में जगन्नाथ मंदिर को विभिन्न त्योहारों पर दान और राज्य खर्च, तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाएं आदि के माध्यम से बहुत कुछ प्राप्त हुआ। यहाँ जगन्नाथ पुरी में नागपुर भोसले के योगदान का एक विस्तृत विवरण पढ़ें।
अठारहवां आक्रमण
दुर्भाग्यवश, मंदिर को ब्रिटिश शासन के दौरान एक आखिरी हमला झेलना पड़ा जब अलेख पंथ के कुछ सदस्यों ने मूर्तियों को आग लगाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए थे।
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