"समर्पण" आश्रम, दांडी कि वास्तविकता यह है, कि दिखने को तो यह बिल्कुल सामान्य सा आश्रम दिखाई देता है। लेकिन यह सामान्य है नही, क्योंकि यह आश्रम तीन मंजिलाना है। इस आश्रम के भुमि के उपर और दो आश्रम मौजुद है। कुल मिलाके यह अपने आप में तीन आश्रम है।
1) पहला आश्रम वो है, जो विश्व के कोने कोने मे मौजूद शरीर आत्माओ को खोज खोज के इकट्ठा करता है। सब शरीर आत्माओ को सामुहिकता मे एक समान रूप से बिना किसी भेदभाव के सब को ईकट्ठा करता है। और ईस सामुहिकता मे हर शरीर को अपने जिवन जीने का मुख्य उद्देश्य अनायास ही प्राप्त होता है। और उद्देश्य प्राप्ती के बाद समस्त शरीर आत्माए सामुहिकता के साथ नियमित ध्यान साधना करने लग जाती है। और जैसे-जैसे नियमित ध्यान साधना करती है, वैसे-वैसे शरीर भाव धीरे धीरे अनायास ही कम कम और कम और कम कम होते होते उन शरीर आत्माओ के भितर केवल आत्मा का भाव जागृत होता है। और जैसे ही आत्म भाव जागृत होता है, तब वे आत्माए उपर के दुसरे मंजिल वाले आश्रम मे प्रवेश पाती है।
2) यह दुसरे नंबर वाला आश्रम केवल और केवल आत्माओ कि सामुहिकता वाला आश्रम है। यहा शरीर का कोई रोल ही बाकि नही रहता है। सभी आत्माए मिलजुलकर एक साथ सामुहिकता मे आकाश मे विचरण करते रहती है। वे वहा से अपने शरीर को भी देख पाती है, और शरीर की देखभाल भी करते रहती है। यह भी आत्माओ के सामुहिकता का एक साधना काल ही होता है। वे आत्माए दोनो लोक मे विचरण करती है, भूलोक मे भी, और आकाश लोक मे भी। क्योंकि वे सब अपने अंतिम शरीर के साथ बंधी हुई होती है। जबतक शरीर है, वे भी बंधन मे ही होती है। और जैसे ही इनके शरीर के जिवन का उद्देश्य पुर्न होता है, और शरीर छुट जाता है। तब वे समस्त आत्माए उपर के तीसरे और अंतिम आश्रम पहोचती है। वह तीसरा आश्रम है गुरूलोक, गुरूशक्तियो का आश्रम, जहा समस्त सीमाए समाप्त होती है।
3) यह लोक, यह आश्रम पवित्र शुद्ध निर्मल गुरूशक्तियो का स्थान होता है। यहा "परमात्मा" और "गुरूशक्तिया" इनका अलग अलग कोई भेद बाकि ही नही रहता है। परमात्मा ही गुरूशक्तिया है, और गुरूशक्तिया ही परमात्मा है।
॥जय बाबा स्वामी॥ 🙏🙏🙏
O
No comments:
Post a Comment