राधास्वामी!! 29-06-2020-
आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-.
(1) यह आरत दासी रची, प्रेम सिंध की धार। धारा उमँगी प्रेम की, जा का वार न पार।। हीरे लाल नौछावर होई। माणिक मोती लडियाँ पोई।।-(प्रेम धजा अब गगन फहराई। धुन धधकार अगम से आई।।),(सारबचन-शब्द-5,पृ.सं-222)
( (2) सुरतिया चढत अधर। धुन डोरी पकड सम्हार।। -(बीन सुनी अमरापुर जाई। राधास्वामी चरन परस हुई सार)-(प्रेमबानी-2-शब्द-130,पृ.सं.261)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी!! 29-06-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) होली के दिन आये सखी। उठ खेलो फाग नई।।-( सहसकँवल चढ जोत जगाई। संख बजाय रही।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-7,पृ.सं.269)
(2) सावन मास सुहगिन आया। रोम रोम अँग अँग हरषाया।। प्रेम घटा के बदला छाये। रिमझिम रिमझिम बरषा लाये।-(नामप्रताप की महिमा भारी। चरनप्रसाद हिये बिच धारी। सतगुरुप्यारी सुरत अलबेली। हुई अचिन्त अब संतसहेली।।) (प्रेमबिलास-शब्द-2,पृ.सं.2)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचध-
कल से आगे-( 34)
शब्द दो प्रकार के हैं- आहत और अनाहत ।
जो सब ताड़न से उत्पन्न होते हैं वे आहत कहलाते हैं और जो बिना ताड़न के अर्थात आप से आप प्रकट होते हैं उनको अनाहत कहते हैं ।
स्वामी दयानंदजी के विचार के अनुसार ईश्वर ने वेदों का ज्ञान अनाहत शब्द के द्वारा ही प्रकट किया क्योंकि उसके ओष्ठ और जिव्हा तो थे नहीं जिन्हें हिला या टकराकर वह आहत शब्द उत्पन्न कर सकता।
यह विश्वास रखते हुए स्वामी जी को क्या अधिकार था कि बिना साधन किये या किसी साधक से जिज्ञासा के अनाहत शब्द के अभ्यास को लड़कों के खेल के सामान लीला ठहराते।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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