🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत- 8 नवंबर 1932- मंगलवार
दिन ब दिन हमारी मुश्किलों में इजाफा हो रहा है। अब ऐसी ही मौज है ।किसी के दम मारने की गुंजाइश नहीं। आज तड़के खबर मिली कि प्रेमीभाई भोलानाथ राय बहादुर रवाना हो गये। दिल की धड़कन का रोग था। रात को 1:00 बजे तबीयत बिगड़ी और 2:00 बजे कूच हो गया।
दिवंगत हमारे विद्यालयों की मैनेजिंग कमेटी के सद्र थे । उम्र 70 साल के करीब थी। कुछ माह से सर्विस से रिटायर होकर दयालबाग में ठहरे हुए थे। 1911 में मेरी उनसे मुलाकात हुई। आप महाराजा बनारस के यहाँ एकाउण्टेंट जनरल थे। थोड़े ही दिनों में हुई वाकफियत मोहब्बत में तबदील हो गई।
मैंने अपनी उम्र में 5 या 6 आदमियों ही से मोहब्बत का रिश्ता कायम किया। उनमें से महरूम एक थे। सो आज रवाना हो गये। जाओ भाई आराम से मालिक का दर्शन करो। इस मृत्युलोक में सिवाय दुख व क्लैश के क्या धरा है ।
दोनों कॉलेज और गर्ल्स स्कूल्स सुबह से बंद कर दिए गए और सब फैक्ट्रियां और दुकानें 12:00 बजे से बंद कर दी गई। सैकड़ों आदमी श्मशान भूमि तक गये। जैसे तैसे मैं भी पहुंचा। मगर लौटते वक्त तकलीफ बढ जाने से पैदल ना आ सका । जो भाई दयालबाग में सेवा करें उनकी इज्जत करना और श्मशान भूमि पहुंचकर उसके जिस्म को अलविदा कहना हमारा फर्ज है।मैने चिता में छोटी सी लकड़ी डालकर अलविदा कही। उपस्थित जन ने "तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो" शब्द गाया। शब्द गाते वक्त खास तरह का समां बंध गया।
रात के सतसंग में बयान हुआ किसी से उम्मीद करना कि घर में मौत हो जाने पर तकलीफ ना माने निरर्थक है । अलबत्ता परमार्थी को चाहिये कि मौज पर निर्भर बरतने की कोशिश करें और अफसोस में न पडे जबकि कुदरत व्यक्ति विशेष के लिए परवाह नहीं करती सिर्फ वर्ग कायम रखने कि फिक्र करती है, हम लोगों पर भी फर्ज है कि किसी बुजुर्ग के मर जाने पर यही फिक्र करें कि घर का इंतजाम बदस्तूर चलता रहे।
वह घर मुबारक हैं जिसमें एक बुजुर्ग के गुजर जाने पर दूसरा मेम्बर दिवंगत की जिम्मेदारियां सर पर लेने के लिए तैयार हो जाता है और वह सोसाइटी भी मुबारक है जिसके एक ओहदेदार के कूच करने पर दूसरि काबिल शख्स भी अपनी सेवाएं पेश करने के लिए तत्पर हो जाता है। जिन घरानों और सोसायटियों में इस उसूल पर अमल नहीं होता वह जल्दी ही नष्ट हो जाती है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
No comments:
Post a Comment