*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
रोजाना वाकियात कल का शेष-
आप फरमाते हैं "अमेरिका के हंसी उड़ाना व्यर्थ है और यह उम्मीद करना भी निष्फल है कि अमेरिका दुनिया में मुनासिब दर्जे पर स्थिर हो जब तक कि अमरीका का हर एक शहरी सांसारिक नफा नुकसान के ख्यालात से ऊपर होकर अपनी जिंदगी को लाभप्रद बनाने की कोशिश ना करें। यह उम्मीद करना कि शहरी नीचे दर्जे के ख्यालात में बरतते रहें और कौम का दर्जा ऊंचा हो जाये गलत है "। वर्णित की राय है कि अमेरिका के बाशिंदे गत 10 साल के जीवन दर्शन से तृप्त हो चुके हैं व और भी मुल्क मशरिक से जो अपराध कानून तोड़ने वालें निकृष्ट पॉलिटिक्स, आदर्शों जिंदगी से अवहेलना और घर में और बाहरी दुनिया में इज्जत आबरू के अवनति से हासिल हुआ है तंग आ गए हैं बगैरह। क्या यह सब बातें पढ़ सुनकर हिंदुस्तानी भाई खुश न होंगे कि हरचंद उन्हें हिंदुस्तान में रहते हुए आधी व खुश्क रोटी मिलती है लेकिन वह अमेरिका की सारी व चुपड़ी रोटी से हजार दर्जा बेहतर है।
इंजील में औरतों का गिरजाघर में नंगे सिर जाना सख्त दोषपूर्ण करार दिया गया है। एक जगह पर सेंट पॉल में कहा है कि जो औरत नंगे सर होकर प्रार्थना करती है वह अपने सर को जलील करती है क्योंकि औरत का अपना सर नंगा करना वही हैसियत रखता है जो सर के बाल मंडवाना। चुनाँचे अब तक हर गिरजाघर में औरतों के लिए लाजमी था कि सर ढक कर बैठें। मगरिब के लोग हम लोगों के घरों के पर्दा की हंसी उड़ाते रहे है हालांकि खुद उनके मुल्क में पर्दा का रवाज जोर व शोर से जारी रहा है। माना कि वहाँ चेहरे के बजाय सर ढकना पड़ता है । मतलब यह है कि मगरिब भी अंधविश्वासों से खाली नहीं है । गिरजाघरों में जाने वाली औरतें यह सुनकर खुश होंगी कि लंदन के सेंट पॉल गिरजाघर में अब औरतों को नंगे सर जाने की इजाजत हो गई है। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【 संसार चक्र】-
कल से आगे:-
दुलारेलाल -पंडित जी ! मेरा दिल चाहता है कि अब अपना समय इन बातों की तहकीकात में लगाऊँ, बहुत कुछ संसार भोग लिया है, पशु की तरह बहुत से खेत चर लिये है अब मनुष्य भी बनना चाहिए; पर अगर संसार मिथ्या है तो फिर इसके संबंध में कोई छानबीन भी फिजूल ठहरती है।।
पंडित जी- संसार मिथ्या नजर आने पर आत्मा सत्य नजर आने लगता है।।
दुलारेलाल- मैं नहीं समझा ।।
पंडित जी- महाराज के समझने की बात है, महारानी जी! आप भी ध्यान दें। गर्मी सर्दी, धूप छाँह और सत्य असत्य का मुकाबला होने पर ही एक दूसरे की पूरी समझ आती है।।
दुलारेलाल -माता !क्या हम आपकी सेवा कर सकते हैं? हमने आज आपको बड़ा कष्ट दिया पर आपके आने और पंडित जी के उपदेश से हमारे दिल का दुख हल्का हो गया।।
बुढिया- मेरी क्या सेवा? 4 दिन जीने के बाकी है सो आप ही कट जायँगे, बहुत गई, रही थोड़ी सी। पर एक बात तुम्हे बताती हूँ- तुम जब तब महात्माओं के बचध बानी का पाठ सुना करो। इस दिल को बड़ी ढारस बँधती है और समय मिलने पर तीर्थ यात्रा भी करना। साध संग से भी बडा लाभ होता है।।
पंडित जी- महात्माओं के अमृत वचन प्रचंड से प्रचंड अग्नि को शांत कर देते हैं ।।
बुढ़िया- मेरा जब जी घबराता है पड़ोस में कथा में जा बैठती हूं वहां बैठते ही संसार भूल जाता है।
इंदुमती-माता! कभी-कभी यहां भी आया करो ये लो बीस रुपये ले जाओ ।।
बुढिया- आप राजा महाराजा है, हम प्रजा है, आपके पुत्र हैं, सेवक हैं , आपका दिया सिर माथे पर , पर जो आज्ञा हो तो एक भजन सुना दूँ ,फिर जाऊँ?
इंदुमती -जरूर सुनाओ।।
( बुढिया गाती है)
साधो जी! तन नगरी नहीं फंसना ।।टेक।।। इस नगरी में चोर बसत है, चोरन बस क्या बसना। दाव पडे पर लें तोहिं लूटी, करी है नेक तरस ना।। कूड जवानी, कूड बुढ़ापा, कूड ही रोना हंसना। कूड भोग और कूड इन द्वारे, नैन श्रवन नस रसना।। अमर लोक के तुम हो बासी, नेक जहाँ पर बस ना। तन नगरी तज वा घर घर चालो, करना नेक अलस ना ।।।
दुलारेलाल -बहुत ठीक! बहुत अच्छा, अब कुछ दिन साध-संग ही करेंगे। क्रमशः
🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे
:-(15 ) जब प्राणों या मुद्रा की पूरी तौर से साधना करने वाले गुप्त हो गये, और अभ्यास की बजाय चढ़ाने मन और प्राणों के सिर्फ मन के ठहराने के वास्ते लाभदायक समझाया गया, यानी थोड़े दिन ऐसा अभ्यास करके लोग अपने आपको पूरा समझने लगे और कसरत से जीव मूरत या निशानों या तीरथ की पूजा में लग गये, और जो कोई थोड़े बहुत विद्यावान थे वे वाचक ज्ञान में मगन हो गए और अपने को ब्रह्म मानने लगे और अक्सर क्रिया योग वाले स्वाँगी बन गये, तब इस तरह मुक्ति का रास्ता बिल्कुल बंद देख कर कुल मालिक दयाल की मौज से संत प्रगट हुए और उन्होंने सब मतों की कसरें दिखला कर सुरत शब्द मार्ग का उपदेश किया। हरचंद शुरू में बहुत कम जीवों ने उनके बचन को माना , फिर बहुत से उनकी बानी और बचन पढ़ने और सुनने लगे और थोड़ी बहुत उनको अपने परमार्थ की कसरों की खबर पडती गई।।।
( 16 ) फिर मौज से साध एक के पीछे कितने ही देशों में प्रगट हुए ,और उन्हें शब्द मार्ग का भेद उसी मुकाम तक का , जो कि वेदों का सिद्धांत है, प्रगट किया इसमें बहुत से जीव लग गये, पर उसमें से पूरे और सच्चे अभ्यासी कम निकले ।लेकिन संतों और साधो ने अपनी दया के बल से बहुत से जीवो का उद्धार किया।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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