**राधास्वामी!!
21-06-2020
- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) आज आया बसंत नवीन। सखी री खेलो गुरु सँग फाग रचाये।। उँमग उमँग गुरु चरनन लागीं। हिये में नया नया भाव धराय।। (प्रेमबानी-शब्द-7,पृ.सं.288)
(2) जब लग जिव जग रस चहे सहे दुक्ख बहु ताप। नीच ऊँच जोनी फिरे काल करम संताप।। मन मैला अति बलवता सब जग को दुख देय। निर्मल अरु सीतल भया सरन गुरु की लेय।। (प्रेमबिलास-शब्द-133,पृ.सं.198)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
21-06 -2020-
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-
T( 27) पातंजल सूत्रों में आया है-" स्वाध्याय से इष्टदेवता का साक्षात होता है"। इस सूत्र पर व्यास जी अपने भाष्य में लिखते हैं कि देवता , ऋषि और सिद्ध स्वाध्यायशील के दर्शन को जाते हैं और उसके कार्य में सहायक होते हैं (पृष्ठ 106, अनुवाद, योगदर्शन, पंडित राजाराम साहब कृत)।
इसके अतिरिक्त कैवल्यपाद के पहले सूत्र में मंत्र से सिद्धि बतलाई गई है। इन वचनों के अनुसार इन मंत्रपाठियों के मंत्रोच्चारण करने पर उनका इष्ट देवता भी कभी-कभी प्रकट होता है -और अनुभव तो यही बतलाता है की इष्ट देवता का दर्शन तो दूर रहा , गहरा प्रेम अंग जागने पर प्रेमीजन की जिव्हा रूक जाती है आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगती है और वह सिर कटे पक्षी के समान भगवंत का नाम उच्चारण करता हुआ तड़पने लगता है।
ऐसी दशा में कौन मंत्र पढ़े? कौन वाक्-चातुर्य दिखलावे? कौन प्रार्थनाएँ सुनावे? इसीलिए योगदर्शन के पहले पाद में केवल 1 नाम की आराधना के लिए निर्देश किया गया है।।
पर विदित हो इसका यह तात्पर्य नहीं है कि मंत्रों या आयतों का पढना और प्रार्थनाएं पेश करना कोई बुरा काम है; नहीं,ये आरंभिक क्रियाएँ हैं और आरंभ में इनका प्रयोग अत्यंत उचित और लाभदायक है।
हाँ आध्यात्मिक उन्नति की सीढ़ी पर एक पैर रखने के बाद इनका उपयोग छूटकर नाम के सुमिरन अर्थात जप का आरंभ हो जाता है और दूसरा पैर रखने पर अर्थात नाम की आराधना विधिपूर्वक बन पडने पर अभ्यासी के अंतर में आप से आप नाम का जप जारी रहता है और इसके लिए उसे कुछ भी प्रयास नहीं करना पड़ता यही असली सुमिरन की विधि है।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश-
भाग पहला (परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!)**
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