Friday, June 26, 2020

26/06 को सुबह शाम का पाठ और वचन






राधास्वामी!!

 26-04-2020-

आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-

(1) यह आरत दासी रची, प्रेम सिंध की धार। धारा उमँगी प्रेम की, जा का वार न पार।। अब तो कृपा करो राधास्वामी। तुम हो घट घट अंतरजामी।।-(प्रेम नीर का घी अब डारूँ।आरत तुम्हरे सन्मुख वारूँ।।) (सारबचन-शब्द-5,पृ.सं.121)                                             

(2) सुरतिया पियत अमी। गुरु नाम सुमिर धर प्यार।।-(भेद पाय मन सुरत लाय कर। सुनत शब्द धुन घट में सार।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-129,पृ.सं.260)                                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


राधास्वामी!!

 26-06-2020- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-                               

 (1) फागुन की ऋतु आई सखी। मिल सतगुरू खेलो री होरी।।-(ऐसी होली खेल सतगुरू सँग। राधास्वामी चरनन जाय मिलो री।।) (प्रेमबानी-3- शब्द-4,पृ.सं.293)                                   

(2) क्या सोच करे मन मेरे ऋतु आई बसंत।।टेक।। प्रेम सहित नित सतसँग करती सेवा की मन चाह बढंत। सेवा करत प्रीति हिये जागी तडप उठी कस पाऊँ कंत।।-(राधास्वामी सतगुरु काज बनाया सोये भाग उन दिए जगंत। बार बार उन चरन नमामी गाऊँ महिमा नित्त नितंत।।) (प्रेमबिलास-शब्द-137,पृ।सं.203)                               

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग 1-कल से आगे!                         
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


 राधास्वामी!! 26-04-2020-


आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन-

कल का शेष-

सरदार साहब'शब्द-सुरत'का अभिप्राय शब्द का विचार और शब्द का अर्द चित्तवृत्ति लेते है। जो हो, यहाँ तो यह अर्थ लगा लिया पर उन कडियों के ,जो पृ 149 पर लिखी है, क्या अर्थ लिये जायेंगे?--

बाणी मुखहो उचारिये, होय रूशनाई, मिटे अँधारा। ज्ञान गोष्ट चर्चा सदि अनहद शब्द उठे धुनतारा ।। और पृष्ठ 375 पर लिखे बचन का क्या अर्थ होगा?                                                             

 " (669) वचन होआ- मन नीवें कर सिक्खी प्राप्त हुन्दी है, जो तुसाडे शरीर पासों सेवा सीखो दी होय आवे - सो करनी।                                   

ते पिछली रात उठकै स्नान करकै शबद दा अभ्यास करना। ते वाहेगुरु नो स्वामी , अत्ते आपनूँ सेवक जाणना, ते साधसंगत विच जाएकै प्रीत करके गुरु का शबद  सुणना, ते आपस बिच वाणी का मनन करना"।                                       

अर्थात उपदेश हुआ कि दीनता ग्रहण करने से सिक्खी प्राप्त होती है। आपके शरीर से जो कुछ सिक्खो की सेवा बंन पड़े सो करना और पिछली रात उठ के स्नान करके शब्द का अभ्यास करना और सतगुरु को अपना मालिक और अपने आप को उनका दास समझना।

और साथ संगत में शामिल होकर प्रेम- सहित गुरु वाणी का पाठ सुनना और आपस में वाणी का मनन अर्थात विचार करना।।                                                 

  क्या उपदेशों में " अनहद शब्द उठे धुनकारा का अर्थ भी चित्तवृत्ति लिया जाएगा और "शब्द का अभ्यास करना"  का अर्थ सुरत शब्द योग साधन न लिया जाएगा?  अभ्यास का अर्थ पाठ या पढ़ना नहीं होता।

शब्द अभ्यास संतमत की पारिभाषिक बोली है। जिसका अर्थ वही क्रिया या साधन है जिसके करने वाले सिक्ख "बुद्धू" ठहराए गए हैं ।। इन प्रमाणों को छोड दीजिये क्योंकि आखिर ये श्री ग्रंथसाहब की बाणी नही हैं। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                 

 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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