Sunday, June 21, 2020

भक्त केभाव की






#भगवान_तो_प्रेम_के_भूखे_हैं

 दिल को छूने वाली घटना

एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा मंदिर के बाहर बैठा हुआ था।

तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।

उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी।

एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और ज़वाहरात के थाल पकडे़ हुए थे
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता पकडे़ हुए थे
और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।

पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।
बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।

सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अंदर जाकर थाल रख दो।
हम पूजा पाठ संपन्न करने के बाद भगवान  को सारी भेंट समर्पित करेंगें।

बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।

उसने सेठजी से कहा मालिक दो दिनों से भूखा हूं थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।

सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।

बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा, ओ मेम  साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।

सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें को भगवान को चढानें के लिये हैं।
तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।

सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।

कितने भक्ति भाव से अंदर जाने की सोच रहे थे, और इसने अड़चन डाल दी।

पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये।

अरे क्या शांत हो जाइये पंडित जी?
आपको पता है पूरे शहर के सबसे महंगे फल और मिठाईयां हमने ही खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए।

अभी चढायें भी नहीं और पहले ही अड़चन आ गई।
सारा का सारा मूड ही खराब हो गया।

अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या?

पंडित जी बोले अरे यह आदमी तो पागल है, आप इसके पीछे अपना मूड मत खराब करिये सेठ जी ।
चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको ठीक करता हूँ।
आप सेठानीजी के साथ अंदर जाईये।
सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।

पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।

बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।

अंदर जाकर सेठ ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे।

तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।

वो हैरान रह गए!!!

पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये..

जब पूजा संपन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मंगवाई भगवान को भेंट चढानें को..

पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया।
और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गये।

सेठजी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होंने थाल जमीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेडे़ हो गये।
मानो हाथों को लकवा मार गया हो।

ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी।
बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है.

उसी बूढे़ की अड़चन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।

सेठजी बोले हां उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।

सेठानी बोली, हाय क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया?
इनके हाथ टेडे़ कैसे हो गए, अब  क्या करूं मैं, ज़ोर जो़र से रोने लगी....

पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले.
माफ करना एक बात बोलूं आप दोनों से ...

भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं।

बल्कि आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान ने आपको ये दण्ड दिया है।

सेठानी बोली पर हमने क्या किया है?

पंडित जी बोले क्या किया है आपने

मैं आपको बताता हूं।

आप इतने महंगे उपहार लेकर आये भगवान को चढानें के लिये।

पर ये आपने नहीं सोचा के हर इंसान के अंदर भगवान परमात्मा  रूप में बसते हैं। जरूरतमंद व्यक्ति को हमारे पास होते हुए भी यदि हम नहीं देते हैं, ये उस व्यक्ति का तिरस्कार है और भगवान का अपमान है।

आप अंदर भगवान के विग्रह पर भेंट चढ़ाना चाहते थे।

पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे।

उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता
तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।

किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।

आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार कर सकते थे़......

सब जानते है कि भगवान श्रीकृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे थे।

अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सबकुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे किमती उपहार क्या करने हैं।
वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक तुलसी पत्र, थोड़ा सा जल और थोड़े फल से ही खुश हो जाते हैं, जैसे कि भगवान श्रीमद्भगवद गीता में कहते हैं,
"पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम"
उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर ऐहसान करने की हमें कोइ आवश्यकता नहीं है
इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।और हां, अगर किसी मांगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिये।
क्योंकि वो अपनी मर्जी़ से गरीब नहीं बना है।और कहते हैं ना कि भगवान की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दें, और कब किसी राजा को भिखारी बना दें कोई नहीं कह सकता!

इसलिये सदा जपिये
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।Shripatidham Nanadanvan

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