महात्मा गौतम बुद्ध जी से वार्तालाप
योग्य को यज्ञ एवं स्वयं को समिधा बना लीजिए। पूर्णाहुति डीजे विकारों की विचारों की स्वयं की उसके बाद देखेंगे योग रूपी उस यज्ञ में जल जाने के उपरांत तपन से उसकी अग्नि से आपका दैहिक शरीरउसके तपन मात्र से जो योगिक अग्नि है वह आपको तपा करके स्वर्ण सा कांतिमय या कहें तो स्वर्ण के ऊपर श्रेणी में रख दे उस श्रेणी तक आपको पहुंचा देंगी। वैसा ही आपका व्यक्तित्व निखर कर आएगा और आप स्वर्ण में ही हो जाएंगे।
प्रिय, प्रथम हमें मौत से भी सीखना चाहिए। मृत्यु का अर्थ क्या है?
हमारी दृष्टि से मृत्यु नवजीवन का सृजन का कारण है जिस प्रकार से बालक क्रिड़ाओं से मुक्त होकर के आता है थक जाता है मां भोजन कराती है और माता की गोद में वह थक कर सो जाता है मां लोरी सुनाती है और सुला देती है।
प्रिय बिटिया उसी प्रकार से मृत्यु है वह अर्थ है मौत एवं माता जिस प्रकार से जन्म हुआ आप बीस की हुई, उसके पहले की उम्र हम बताएंगे नहीं वह वय आप जाने। जन्म हुआ एक से बीस तक गए, युवावस्था में आए विवाह हुआ, आपने अर्थ शतक पूरा किया। पच्चास की उम्र में शरीर का थकना शुरू हुआ अस्सी के हुए। आज के कुछ कर्मों के अनुसार उस आयु में जाकर आप थक जाते हैं और फिर आप स्वयं के बस में नहीं होते, परबस में हो जाते हैं, परबस में होते हैं याने नहीं किसी और के बस में।
आपको सेवा की आवश्यकता पड़ती है। आप जब थक जाते हैं तब आपको अनंत काल के लिए आराम की आवश्यकता होती है। अनंत काल के आराम की आवश्यकता का अर्थ क्या है "मृत्यु"।
यह होनी आवश्यक है क्योंकि मृत्यु नहीं होंगी तो नवसृजन कैसे होगा, नवजीवन का निर्माण कैसे होगा? तो फिर मृत्यु से भय कैसा। उसे माता ही मानकर क्यों नहीं चलते। जिस प्रकार बालक के थक जाने पर माता लोरी सुना कर सुला देती है वैसे मृत्यु भी मां है। मनुष्य अनेक प्रकार के कर्म करके जब थक जाता है तब मृत्यु नाम की वह माता आती है कहती है 'आओ सो जाओ, आओ सो जाओ'। और उसके बाद फिर से नवजीवन लेकर के आओ, फिर से ईश्वरीय चिंतन मनन में लग जाओ फिर से उसकी प्राप्ति में लगो। लेकिन अगर आपको मार्ग मिलता है ईश्वर प्राप्ति का और आप उस पर चलना प्रारंभ करते हैं पूरी श्रद्धा रखकर के समर्पण के साथ त्याग के साथ तो अवश्यंभावी है कि आपका यह आवागमन का चक्कर यह चक्र समाप्त होकर के मुक्ति के साधन में परिवर्तित हो जाएगा।
प्रिय पुत्री किसे अर्थ पता है कि योग से मुक्ति किस प्रकार से होती है मुक्ति का अर्थ क्या है?
उस मोह को परब्रह्मा को समर्पित कर देना, उसके मोह में पड़ जाना, उसको मोहन कर देना हमारे शब्दानुसार।
अब आपने किसी मोह को मोहन किया तो क्या निकल कर बाहर आया ''मोहन"। तो देखेंगे कि आपमें भी संसार को मोहित करने का सामर्थ्य होने की कला आ गई। आप अब मायाजाल को मोहित कर पाएंगी और हटा पाएंगी। यह मोहित आप तक नहीं लाएगा मायाजाल को। यह मोहन मोहन का जो मोहन तत्व है आकर्षण तत्व है यह आकर्षण विद्या आपसे बाह्य मोह को छुड़वा करके ब्राम्हिक मोह की ओर आपको उद्धत करेगा उस मार्ग पर उद्धत करेगा।
मृत्यु का अर्थ कई लोग समझते हैं कि मृत्यु के उपरांत, लेकिन वह मुक्ति जो जीवित अवस्था में हो जाए उससे श्रेष्ठ क्या?
हमारा आशय योग से मुक्ति की ओर ईश्वर की ओर जीवित अवस्था ही था। यहां शब्दों का अर्थ कई विद्वानों के मतानुसार बदल दिया गया था। उन्होंने बदला या जनसाधारण ने अपने अपने विवेक के माध्यम से उसकी व्याख्या की मगर सत्य तो यही है।
कई विद्वानों को ज्ञानीजनों को योगियों को जीवित अवस्था में मुक्ति प्राप्त हो गई। मुक्ति का अर्थ है 'मोह से सीमित या असीमित दूरी', तो दूरी बना कर चले मोह से। इसके उपरांत आप आनंदमयी हो जाएंगे, आप स्वयं प्रकृति हो जाएंगे और आप देखेंगे यह बाह्य जगत आपको मोहित नहीं कर सका। क्यों? क्योंकि तब आपके साथ मोहन होंगे तो चले मोहन को जागृत करते हैं।
महात्मा गौतम बुद्ध जी
समय :- 05:10 p.m.
दिनांक :- 12/02/2019
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