**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र】
कल से आगे-
दुलारेलाल -आप लोग बड़े भद्र पुरुष मालूम होते हैं।
U पंडा -अभी क्या है जब हमारे पंडित जी का दर्शन करोगे तो निहाल हो जाओगे। हमारे पंडित जी की एक पाठशाला है, एक गौशाला है और (रास्ते में खड़े होकर वह दुलारेलाल को खासतौर पर मुखातिब करके और गर्दन व आँख मटका कर) भूखे प्यासे के लिए छोटा-मोटा सदाव्रत भी खुला हुआ है, पचास साठ प्राणियों को रोज अन्न बँट जाता है।
दुलारेलाल-(हैरान होकर) हर रोज पचास साठ आदमियों को ?
पंडा -जी हां, मालूम होता है आप पहले ही बार कुरुक्षेत्र आये हैं ?
दुलारेलाल -हां पहली दफा आये हैं।
( सब रास्ता चलने लगते हैं )
पंडा- कुरुक्षेत्र में दान करने का बड़ा ही फल है, कोई कोई राजा अपनी रानी दान कर देते हैं ।
इंदुमती -हैं, रानी ?
पंडा-हाँ महाराज!और रानी तक दान कर देते हैं। आप जानते हैं कि संसार में एक से बढ़कर एक दानी भरे हैं।
दुलारेलाल -मगर रानी दान करने का मतलब मेरी समझ में नहीं आता?
पंडा- अरे एक रानी ही नहीं, भूषण और वस्त्र भी साथ देते हैं ।
इंदुमती-वाह! यह अजीब बात है।
पंडा मालूम होता है आप लोगो ने शास्त्र नही पढे।सूर्यग्रहण के मौके पर राजा लोग वत्रों भूषणों से सजा कर रानियों का दान इस हेतु करते है कि स्वर्गलोक में पहुँचने पर वह रानियाँ फिर उनको मिलें। इन बातों को वही पुरुष स्त्री समझ सकते है जिनका आपस में घनिष्ट प्रेम है।
(इंदुमती -राजादुलारेलाल की तरफ ताकती है और राजा दुलारेलाल उसकी तरफ ताकता है। पंडा तिरछी निगाह से देखता है और दोनों का मतलब समझ जाता है)
Yपंडा -महाराज! मनुष्यजन्म तो दुर्लभ है ही पर दान पुण्य के लिए उदारता का पैदा होना और भी दुर्लभ है। संसार को तो इस लोभ ने मार रखा है। दान पुण्य करने से मोह भी छूटता है और परलोक के सुख का भी प्रबंध होता है ।मनुष्य के संग दिया ही चलता है। बाकी तो यहीं का यहीं धरा रह जाता है।
इंदुमती -(राजा दुलारेलाल से) हम लोगों ने तो कभी भी दिल खोल कर दान पुण्य नहीं किया, अबकि मर्तबा कुछ दान जरूर करेंगे।
पंडा- धन्य हो महाराज! भद्र पुरुष इसी तरह अपना जन्म सफल करते हैं। वह देखो जो सामने आश्रम है।
( थोड़ी देर बाद सब आश्रम में दाखिल होते हैं।) क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 1- कल का शीष -(19)
इस अभ्यास के कमाई से, जो कोई सच्चा होकर प्रेम के साथ करेगा, आहिस्ता आहिस्ता मन और इंद्रियों काबू में हो जावेगी और एक दिन सुरत यानी रुह अंतर में चढ़कर अव्वल त्रिकुटी में , जहां वेद मत का असली सिद्धांत है और जहां मन समा जावेगा और वहां से सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल के चरणों में पहुंचकर (जिसको दयाल देश कहते हैं और जो माया की हद के पार है) अजर और अमर हो जावेगी और परम आनंद को प्राप्त होगी , यानी अपने निज घर में, जहां से कि आदि में सुरत उतर कर और पिंड में ठहर कर मन और माया के साथ भोगों में फंस गई थी , पहुँच जावेगी और जन्म मरण से सच्ची मुक्त हो जावेगी।।
( 20 ) जो कोई राधास्वामी दयाल के बचन को मानकर जो जुगत कि उन्होंने बताई है उसका अभ्यास सच्चे मन से शौक के साथ करेगा, उसको पूरा फायदा हासिल होगा , यानी एक दिन उसका सच्चा उद्धार हो जाएगा। और जो अपने मन हठ से या दुनियाँ और उसके सामान की जगह पक्ष धार ने मानेगा, उसका भारी नुकसान होगा, यानी वह जन्म मरण और देहियों के साथ दुख सुख भोगता रहेगा और अमर देश का परम आनंद उसको प्राप्त नहीं होगा और न सच्चे मालिक का दर्शन पावेगा।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत- 8 नवंबर 1932- मंगलवार
दिन ब दिन हमारी मुश्किलों में इजाफा हो रहा है। अब ऐसी ही मौज है ।किसी के दम मारने की गुंजाइश नहीं। आज तड़के खबर मिली कि प्रेमीभाई भोलानाथ राय बहादुर रवाना हो गये। दिल की धड़कन का रोग था। रात को 1:00 बजे तबीयत बिगड़ी और 2:00 बजे कूच हो गया।
दिवंगत हमारे विद्यालयों की मैनेजिंग कमेटी के सद्र थे । उम्र 70 साल के करीब थी। कुछ माह से सर्विस से रिटायर होकर दयालबाग में ठहरे हुए थे। 1911 में मेरी उनसे मुलाकात हुई। आप महाराजा बनारस के यहाँ एकाउण्टेंट जनरल थे। थोड़े ही दिनों में हुई वाकफियत मोहब्बत में तबदील हो गई।
मैंने अपनी उम्र में 5 या 6 आदमियों ही से मोहब्बत का रिश्ता कायम किया। उनमें से महरूम एक थे। सो आज रवाना हो गये। जाओ भाई आराम से मालिक का दर्शन करो। इस मृत्युलोक में सिवाय दुख व क्लैश के क्या धरा है ।
दोनों कॉलेज और गर्ल्स स्कूल्स सुबह से बंद कर दिए गए और सब फैक्ट्रियां और दुकानें 12:00 बजे से बंद कर दी गई। सैकड़ों आदमी श्मशान भूमि तक गये। जैसे तैसे मैं भी पहुंचा। मगर लौटते वक्त तकलीफ बढ जाने से पैदल ना आ सका । जो भाई दयालबाग में सेवा करें उनकी इज्जत करना और श्मशान भूमि पहुंचकर उसके जिस्म को अलविदा कहना हमारा फर्ज है।मैने चिता में छोटी सी लकड़ी डालकर अलविदा कही। उपस्थित जन ने "तेरे चरनों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो" शब्द गाया। शब्द गाते वक्त खास तरह का समां बंध गया।
रात के सतसंग में बयान हुआ किसी से उम्मीद करना कि घर में मौत हो जाने पर तकलीफ ना माने निरर्थक है । अलबत्ता परमार्थी को चाहिये कि मौज पर निर्भर बरतने की कोशिश करें और अफसोस में न पडे जबकि कुदरत व्यक्ति विशेष के लिए परवाह नहीं करती सिर्फ वर्ग कायम रखने कि फिक्र करती है, हम लोगों पर भी फर्ज है कि किसी बुजुर्ग के मर जाने पर यही फिक्र करें कि घर का इंतजाम बदस्तूर चलता रहे।
वह घर मुबारक हैं जिसमें एक बुजुर्ग के गुजर जाने पर दूसरा मेम्बर दिवंगत की जिम्मेदारियां सर पर लेने के लिए तैयार हो जाता है और वह सोसाइटी भी मुबारक है जिसके एक ओहदेदार के कूच करने पर दूसरि काबिल शख्स भी अपनी सेवाएं पेश करने के लिए तत्पर हो जाता है। जिन घरानों और सोसायटियों में इस उसूल पर अमल नहीं होता वह जल्दी ही नष्ट हो जाती है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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